समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,7 अप्रैल। भारत के इतिहास लेखन पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। केंद्र में बहस है मुग़ल शासक औरंगज़ेब की छवि — जिसे दशकों तक भारत के पाठ्यक्रमों में एक उदार शासक के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि ऐतिहासिक साक्ष्य उसे एक क्रूर, कट्टर और सांप्रदायिक शासक के रूप में दर्शाते हैं।
विशेषज्ञों, इतिहासकारों और सामाजिक चिंतकों का मानना है कि यह छवि वामपंथी इतिहासकारों की एक सुनियोजित साजिश के तहत गढ़ी गई, ताकि भारत के सांस्कृतिक मूल्यों, गौरवशाली परंपराओं और सनातन विरासत को दबाया जा सके।
भारतीय इतिहास लेखन में पिछले कई दशकों तक एक विशेष विचारधारा हावी रही, जिसे तथाकथित वामपंथी इतिहासकारों ने दिशा दी। इनके लेखन में मुग़ल शासकों को गौरवशाली राष्ट्र निर्माता, जबकि हिंदू प्रतिरोध के प्रतीकों को गैर-प्रासंगिक या साम्प्रदायिक के रूप में चित्रित किया गया।
औरंगज़ेब, जिसने न केवल हज़ारों मंदिरों को ध्वस्त किया, बल्कि गुरु तेग बहादुर जी जैसे महान संतों को शहीद करवाया, उसे इतिहास की पुस्तकों में एक प्रशासकीय दृष्टि से सफल, न्यायप्रिय और धार्मिक सहिष्णु शासक के रूप में दिखाया गया।
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माथुरा, काशी और सोमनाथ जैसे प्रमुख मंदिरों के विध्वंस के आदेश औरंगज़ेब ने स्वयं दिए थे।
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हिंदुओं पर जज़िया कर फिर से लागू किया गया, जिसे उनके पूर्ववर्ती अकबर ने हटा दिया था।
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मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज को नीचा दिखाने की कोशिशों से लेकर सिखों पर अमानवीय अत्याचार — सब कुछ औरंगज़ेब की कट्टरता का प्रमाण हैं।
इतिहासकार सतीश चंद्र, रोमिला थापर, इरफान हबीब आदि पर यह आरोप है कि उन्होंने इन साक्ष्यों को या तो दबाया या उसका तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की आड़ में निष्कलंक चित्रण किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार अब भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास को पुनर्परिभाषित करने की दिशा में कार्यरत है। NCERT की नई पाठ्यपुस्तकों में अब छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह, रानी दुर्गावती जैसे स्वाभिमान और संघर्ष के प्रतीकों को वह स्थान दिया जा रहा है, जिसके वे वास्तविक हक़दार हैं।
संस्कृति मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (ICHR) जैसी संस्थाओं द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों की पुनर्समीक्षा की जा रही है।
इतिहास केवल अतीत की घटनाओं का संकलन नहीं, बल्कि यह एक राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना और पहचान का आधार होता है। जब समाज को अपने नायकों और दुश्मनों की पहचान ही न हो, तो राष्ट्र का आत्मविश्वास डगमगा जाता है।
इसलिए यह जरूरी है कि भारत के नागरिक इतिहास की पुनःजांच करें और वामपंथी षड्यंत्रों से मुक्त होकर अपनी प्रामाणिक विरासत को समझें और संजोएं।
औरंगज़ेब को उदार बताने की कोशिश एक ऐतिहासिक धोखा था, जिसने भारत की पीढ़ियों को भ्रमित किया। अब वक्त है कि भारत अपनी सांस्कृतिक स्मृति को पुनर्जीवित करे और इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से पुनः लिखे — सत्य, सम्मान और स्वाभिमान के साथ।
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