सुरक्षा पूर्ति में बागवानी की महत्वपूर्ण भूमिका- नरेंद्र सिंह तोमर

आईआईएचआर, बेंगलुरू के राष्ट्रीय बागवानी मेले का केंद्रीय कृषि मंत्री द्वारा शुभारंभ

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली ,22 फरवरी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरू द्वारा उत्पादक किसानों व अन्य हितधारकों के लाभ के लिए विकसित नवीनतम तकनीकों को प्रदर्शित करने व उनकी आत्मनिर्भरता के लिए अभिनव बागवानी पर आयोजित चार दिनी राष्ट्रीय बागवानी मेले का शुभारंभ आज केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने वर्चुअली किया। इस मौके पर तोमर ने कहा कि यह सुस्थापित है कि किसानों की आय दोगुनी करने के साथ आवश्यक पोषण सुरक्षा पूर्ति करने में बागवानी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बागवानी फसलों के उत्पादन व उपलब्धता में तेजी से हो रही वृद्धि देश की पोषण सुरक्षा के बीच की खाई को पाटने में मदद करेगी।

केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि बागवानी उत्पादन वर्ष 1950-51 के 25 मिलियन टन से 13 गुना बढ़कर 2020-21 के दौरान 331 मिलियन टन हो गया, जो खाद्यान्न उत्पादन से भी अधिक है। 18% क्षेत्रफल से यह क्षेत्र कृषि सकल घरेलू उत्पाद में सकल मूल्य का लगभग 33% योगदान देता है। इस क्षेत्र को आर्थिक विकास के चालक के रूप में माना जा रहा है और धीरे-धीरे एक संगठित उद्योग में बदल रहा है, जो बीज-व्यवसाय, मूल्यवर्धन व निर्यात से जुड़ा हुआ है। कृषि उत्पादों के चार लाख करोड़ रु. से ज्यादा के निर्यात में बागवानी का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार खेती-किसानी को प्राथमिकता देती है, इसलिए वर्ष 2023-24 के बजट में भी कृषि एवं किसान कल्याण के लिए अनेक प्रमुख प्रावधान किए गए। बजट का उद्देश्य गरीबों व मध्यम वर्ग, महिलाओं व युवाओं के अलावा किसानों का समावेशी और व्यापक विकास करना है। यह कृषि को प्रौद्योगिकी से जोड़कर कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने पर जोर देता है ताकि किसानों को दीर्घावधि में व्यापक लाभ मिल सके।

उन्होंने बताया कि बजट में बागवानी क्षेत्र के विकास के लिए, विशेष रूप से आत्मनिर्भर स्वच्छ पौध कार्यक्रम के लिए 2,200 करोड़ रु. के खर्च से उच्च मूल्य वाली बागवानी फसलों के लिए रोगमुक्त, गुणवत्तायुक्त रोपण सामग्री की उपलब्धता को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है। साथ ही, क्लस्टर विकास प्रोग्राम के माध्यम से भी बागवानी क्षेत्र को काफी लाभ मिलेगा। प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक खेती को जन-आंदोलन बनाने की पहल की है, जिसके लिए 459 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। 3 साल में प्राकृतिक खेती के लिए 1 करोड़ किसानों को मदद दी जाएगी, जिसके लिए 10 हजार बायो इनपुट रिसर्च सेंटर खोले जाएंगे। किसान टेक्नालाजी का भरपूर उपयोग कर सकें, इसके लिए भी बजट प्रावधान किया हैं। एफपीओ छोटे व मध्यम किसानों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है, जिसका लाभ इन किसानों को मिलने लगा है। बागवानी के भी एफपीओ किसानों के लिए फायदेमंद हो रहे हैं।

तोमर ने बताया कि भारत सरकार के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 की घोषणा की है, जिसका अधिकाधिक प्रचार-प्रसार करने और मिलेट्स का उपभोग बढ़ाने का उन्होंने आह्वान किया। तोमर ने कहा कि एग्री स्टार्टअप भी इस दिशा में तेजी के साथ काम कर रहे हैं।
उन्होंने किसानों का आह्वान किया कि वे आयात घटाने व निर्यात बढ़ाने में सहायक हों और चुनौतियों के समाधान में योगदान दें। उन्होंने विश्वास जताया कि यह बागवानी मेला टिकाऊ उत्पादन के लिए बागवानी फसलों पर नवीनतम तकनीकों के बारे में किसानों/हितधारकों के बीच जागरूकता पैदा करेगा और भारत को बागवानी क्षेत्र में वैश्विक खिलाड़ी बनाने के लिए प्रसंस्करण और निर्यात प्रोत्साहन की गुंजाइश बढ़ाएगा।

तोमर ने सराहना करते हुए कहा कि आईआईएचआर देश के प्रमुख संस्थानों में एक होने के नाते बड़े पैमाने पर किसानों के सतत व आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए बागवानी फसलों में बुनियादी अनुसंधान करने के लिए जाना जाता है और आईआईएचआर में विकसित प्रौद्योगिकियां देश में लगातार बढ़ते बागवानी क्षेत्र में सालाना 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक का योगदान दे रही हैं। संस्थान 54 बागवानी फसलों पर काम कर रहा है और विभिन्न हितधारकों के लाभ के लिए बागवानी फसलों की 300 से अधिक किस्में और संकर विकसित किए गए हैं, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों सहित अन्य क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं। संस्थान द्वारा कटहल व इमली के संरक्षक किसानों की आजीविका के साथ जैव विविधता को जोड़ना उल्लेखनीय है और इसे अन्य बागवानी फसलों में दोहराया जा सकता है। संस्थान ने विदेशी फलों की फसलों (कमलम, एवोकैडो, मैंगोस्टीन, रामबूटन) पर काम शुरू किया है, जिससे आयात घटाने में मदद होगी, साथ ही संस्थान द्वारा विकसित तरबूज की नई किस्म इसके बीजों के आयात को कम करने में सहायक होगी। तोमर ने कहा कि आयात कम करने को लेकर चुनौती के रूप में स्वीकार करके गंभीरता से काम किया जाना चाहिए।

केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि संरक्षित खेती के तहत खरबूजे व तुरई में मधुमक्खी की सहायता से परागण ने बहुत लोगों को प्रभावित किया है, उच्च तकनीक वाली बागवानी के लाभ के लिए इसे और बढ़ाने की जरूरत है। बीज से बाजार तक प्याज उत्पादन के लिए फार्म मशीनीकरण से जरूरतमंद किसानों को मदद मिलेगी। एसबीआई योनो सीड पोर्टल से बीज-रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रयास सराहनीय है। इससे 28 राज्यों के किसानों तक उद्यानिकी फसलों के बीज पहुंचाना संभव हुआ है। उन्होंने इस बात पर खुशी प्रकट की कि आईसीएआर की वाणिज्यिक शाखा एग्री-इनोवेट के माध्यम से 150 से अधिक तकनीकों का लाइसेंस दिया गया है, जिससे सालाना लगभग 4 करोड़ रुपये का उत्पादन होता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता आईसीएआर के उप महानिदेशक (बागवानी विज्ञान) डॉ. ए.के. सिंह ने की। इस अवसर पर एपीडा के महाप्रबंधक आर. रवींद्र, आईसीएआर-निवेदी के निदेशक डॉ. बलदेवराज गुलाटी, आईआईएचआर के निदेशक डॉ. एस.के. सिंह, एसपीएच के उपाध्यक्ष डॉ. सी. अश्वथ, आयोजन सचिव डॉ. आर. वेंकटकुमार आदि उपस्थित थे। सुशांत कुमार पात्रा, पिंकू देबनाथ, जी. स्वामी, संग्रामकेसरी प्रधान, सुश्री विद्या, सिद्धार्थन व पोलेपल्ली सुधाकर को सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार प्रदान किया गया। अतिथियों ने स्मारिका व ‘सब्जियों की उत्पादन तकनीकें पुस्तिका’ का विमोचन किया।

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