’इस एक चेहरे में शामिल है कई-कई और चेहरे
इसे तुम देखना तो नज़रे बदल-बदल कर देखना’
पिछले दिनों जब राहुल दुलारे इमरान प्रतापगढ़ी की अतीक वंदना वाली वीडियो वायरल हुई तो कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने मजमा लूट लिया, उन्होंने टीवी कैमरों के समक्ष कई सवाल उठाए जिसका मजमून था कि ’आखिरकार इमरान टाइप लोग पार्टी में इतना आगे कैसे बढ़ जाते हैं?’ सवालों के झुरमुठ से निकला जिन्न अब स्वयं आचार्य जी से सवाल करने लगा है कि आखिरकार उनकी सियासी जमीन को महत्वाकांक्षाओं के दीमक ने क्यों खाया हुआ है? दरअसल, आचार्य का तमगा ओढ़ने से पहले वे प्रमोद कुमार त्यागी थे जो दिल्ली-गाजियाबाद में गर्ल्स हॉस्टल चलाते थे। इनके करीबी इन्हें ’कारीगर’ के नाम से जानते हैं क्योंकि सियासी बाजीगरी में इनको महारथ हासिल है। बाद में इन्होंने पश्चिमी यूपी के कई शहरों में अपने स्कूल व आश्रम खोल लिए। इनकी स्कूल की एक टीचर के लापता होने का मामला भी सुर्खियों में रहा। इनका सियासी सफर 1988-89 में तब शुरू हुआ जब ये हरियाणा के तत्कालीन गवर्नर महावीर प्रसाद से जुड़ गए और उनके करीबी हो गए। महावीर प्रसाद के नहीं रहने पर वे उनके बेटी व दामाद से जुड़े रहे। जब इनकी सियासत की दुकान ज्यादा चली नहीं तो इन्होंने चोला बदल कर धार्मिक गुरू का लबादा ओढ़ लिया और वे प्रमोद त्यागी से आचार्य प्रमोद कृष्णम हो गए। इनके आश्रमों में नेताओं का आना-जाना शुरू हुआ तो एक दौर में वे सलमान खुर्शीद के बेहद करीबी हो गए, सलमान ने उन्हें पहली बार पार्टी संगठन में एडजस्ट करवाया और इन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी का मेंबर बना दिया। फिर धीरे-धीरे वे रॉबर्ट वाड्रा के करीब पहुंच गए और वहां से प्रियंका गांधी तक अपनी पहुंच बना ली। इस कार्य में उन्हें संदीप सिंह ने भी काफी मदद की। फिर इनकी पार्टी में इमरान प्रतापगढ़ी से ठन गई। इनके पास महंगी लक्जरी गाड़ियों का एक बड़ा जखीरा है, इनका दावा है कि ’ये भगवान कल्कि के अवतार हैं,’ संभल में इनका 300 एकड़ जमीन पर बना आश्रम है पर यह जमीन विवादों में जुड़ी बताई जाती है। इन्होंने राजस्थान में सचिन पायलट पर अपना दांव लगा रखा है, मीडिया वालों से इनका खूब याराना है लिहाजा पार्टी में कोई पोस्ट मिले ना मिले हर टीवी डिबेट में इन्हें जगह जरूर मिल जाती है। 2014 का लोकसभा चुनाव इन्होंने यूपी के संभल से लड़ा, जहां वे पाचवें नंबर पर रहें। इनके चुनाव प्रचार में अबु सलेम की गर्ल फ्रेंड रहीं मोनिका बेदी भी आईं, आईं तो महिमा चौधरी भी। वे हर साल संभल में ’कल्कि महोत्सव’ कराते हैं जिसमें चर्चित राधे मां की उपस्थिति भी देखी जा सकती है। ये खुद को प्रियंका का हनुमान दिखाते हैं पर कहते हैं प्रियंका ने इन दिनों इनसे खासी दूरी बना ली है सो, आचार्य जी को अपने लिए एक नए राजनैतिक पुर्नवास की जरूरत आन पड़ी है।
महाठग संजय की कहानी
यूपी के गाजीपुर से ताल्लुक रखने वाले महाठग संजय राय उर्फ संजय शेरपुरिया उर्फ संजय प्रकाश बालेश्वर राय को पिछले दिनों यूपी एसटीएफ ने 16 करोड़ की धोखाधड़ी के मामले में धर लिया है। इस ठग की फोटो पीएम समेत भाजपा के बड़े नेताओं, संघ व विहिप के बड़े नेताओं के साथ सोशल मीडिया पर वायरल है, यह लंबे समय से अपने को पीएमओ का आदमी बता कर लोगों से ट्रांसफर-पोस्टिंग और ईडी-सीबीआई के मामले दफा-दफा कराने के नाम पर पैसे ऐंठता रहा है। इस व्यक्ति की कहानी निहायत फिल्मी है, गाजीपुर के शेरपुरा गांव से ताल्लुक रखने वाला संजय वहां के एक बेहद साधारण परिवार से आता है, कहते हैं पढ़ाई के नाम पर वह सिर्फ दसवीं पास है। नौकरी की तलाश में वह गुजरात चला गया और वहां एक सेठ की गाड़ी चलाने लगा, सेठ की बेटी इसके इश्क में पड़ गई और दोनों ने शादी कर ली। राय सेठ की बड़ी संपत्ति का मालिक बन बैठा। गाजीपुर भूमिहार कनेक्शन लेकर उसने एके शर्मा के मार्फत गुजरात के सीएम ऑफिस में एंट्री पा ली। उसने ‘वाइब्रेंट गुजरात’ में अपने लिए एक अवार्ड भी पा लिया। इसके बाद एक कैमिकल फर्टिलाइजर फैक्ट्री चलाने के नाम पर स्थानीय स्टेट बैंक से लगभग 400 करोड़ का लोन भी ले लिया। अब जाकर शेरपुरिया की गिरफ्तारी के बाद एसबीआई की अहमदाबाद शाखा ने शेरपुरिया की पत्नी व कंपनी के एक अन्य निदेशक के नाम 341 करोड़ से अधिक की वसूली के लिए नोटिस जारी किया है। इसने ‘यूथ रूरल एंटरपिन्योर फाऊंडेशन’ के नाम से एक संस्था बना रखी थी, इसने जानबूझ कर संस्था में कोई पद नहीं ले रखा था, पर ठगी के मोटे पैसे लोगों से संस्था के अकाऊंट में ही ट्रांसफर करा लेता था। एसटीएफ की पूछताछ में यह राज भी बेपर्दा हुआ है कि शेरपुरिया ने अलग-अलग नाम से 52 शेल कंपनियां बना रखी थी जिसका वह निदेशक था। उसके 225 से ज्यादा ई-मेल आईडी थे। वह मीडिया में भी अपने अच्छे रसूख के लिए जाना जाता था, शेरपुरिया इस बार के यूपी विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद सीट से टिकट के लिए प्रयासरत था पर कहते हैं संघ को ही इसके नाम पर आपत्ति थी। सो, यह भाजपा का टिकट पाने से वंचित रह गया। गाजीपुर में इसने अपने पैसों से अपने पिता के नाम एक सड़क बना रखी है। पर अब उसकी उद्दात महत्वाकांक्षाओं के सफर ने उसे एक अलग मंजिल पर ला खड़ा किया है।
क्या राहुल के लिए गद्दी देंगे खड़गे
कर्नाटक के आसन्न विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हौंसले बम-बम है, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त अपने गृह राज्य के चुनाव प्रचार में लगा रहे हैं। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के दावों पर अगर यकीन किया जाए तो वैसे भी इन दिनों खड़गे का मन दिल्ली में रम नहीं रहा। वे दिल्ली के अपने पार्टी दफ्तर भी कम ही जाते हैं, लोगों से मिलना-जुलना भी ज्यादातर वे अपने दिल्ली निवास पर ही कर लेते हैं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी व खड़गे की बीच समन्वय का सारा काम उनके कोऑर्डिनेटर गुरदीप सप्पल ही निपटा लेते हैं। खड़गे की एक और शिकायत है कि पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पवन बंसल उनके बुलाने के बावजूद उन्हें पैसों का हिसाब-किताब देने नहीं आते। पवन बंसल के बारे में माना जाता है कि वे सीधे राहुल गांधी को रिपोर्ट करते हैं और राहुल के दिशा-निर्देशों के मुताबिक ही फंड का बंटवारा करते हैं। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का दावा है कि ’अगर इस बार कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनती है तो खड़गे को वहां मुख्यमंत्री बना कर भेजा जा सकता है।’ डीके शिवकुमार इस बात की मांग पहले ही कर चुके हैं, देर सबेर सिद्दारमैया भी इस बात के लिए मान ही जाएंगे। और अगर एक बार खड़गे बेंगलुरू की राह पकड़ लेते हैं तो उनके द्वारा रिक्त की गई अध्यक्षीय कुर्सी पर राहुल गांधी को बिठाने की मांग जोर पकड़ लेगी, कांग्रेसी इसके लिए सड़कों पर उतर आएंगे, धरना-प्रदर्शन होगा और थक-हार कर राहुल पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हो जाएंगे, बाद में इन्हें पूर्णकालिक अध्यक्ष भी चुन लिया जाएगा।
जाति की राजनीति करते नीतीश
नीतीश कुमार ने भी 2024 के आम चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। इसके लिए वे साम-दाम दंड भेद हर नीति को आजमाने को तैयार हैं। अभी हाल में नीतीश ने नैतिकता के तमाम मापदंडों को धत्ता बताते हुए और विरोध के तमाम सुरों की अनसुनी करते महज़ जातीय संतुलनों को साधने के लिए जेल नियमों में बदलाव कर 27 लोगों की जेल से रिहाई करवाई है, इनमें से एक प्रदेश के बड़े राजपूत नेता आनंद मोहन सिंह भी हैं। रिहा किए गए लोगों में 8 यादव, 5 मुस्लिम, 4 राजपूत, 3 भूमिहार, 2 कोइरी, 1 कुर्मी, 1 गंगोता और 1 नोनिया जाति से संबंध रखने वाले लोग हैं। नीतीश की चिंता इस बात को लेकर थी कि वर्तमान में जदयू और राजद में कोई बड़ा राजपूत नेता नहीं है, प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह राजद के बस चेहरा दिखाऊ नेता ही बच गए हैं। वैसे भी राजपूत वोटरों का झुकाव इन दिनों भाजपा की ओर ज्यादा हो गया है। भूमिहार पारंपरिक रूप से भाजपा के ही वोटर हैं। सो, आनंद मोहन की रिहाई से प्रदेश के 7-8 प्रतिशत राजपूत वोटरों को साधने की बाजीगरी हुई है। माना जाता है कि प्रदेश की दबंग जातियों में शुमार राजपूत जाति प्रदेश की 7-8 लोकसभा और 30-35 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती हैं, नीतीश की सारी कवायद इसी जातीय संतुलन को साधने की है।
शिंदे से भाजपा का मोहभंग
क्या महाराष्ट्र में भाजपा व एकनाथ शिंदे का हनीमून अब खत्म होने वाला है? भाजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो भाजपा शीर्ष ने अभी महाराष्ट्र में एक व्यापक जनमत सर्वेक्षण करवाया है, इस सर्वेक्षण के नतीजों ने शिंदे को लेकर भाजपा को फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है। शिंदे गुट के अपने 42 विधायक हैं और वे भाजपा के समर्थन से राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। पर भाजपा का ताजा जनमत सर्वेक्षण बताता है कि ’अगर आज राज्य में चुनाव हो जाएं तो शिंदे के 42 में से 30 विधायक सीधे-सीधे चुनाव हार जाएंगे। शेष बच गए 12 विधायकों को भी अपनी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा।’ वैसे भी शिंदे गुट के 16 विधायकों पर सुप्रीम कोर्ट में अयोग्य घोषित करने की तलवार लटक रही है, इन 16 में खुद शिंदे भी शामिल हैं। वहीं शिंदे गुट के 30 विधायक सीबीआई, आईटी और ईडी के रडार पर हैं, वे तो बस अपनी जान बचाने के लिए भाजपा व शिंदे के पीछे कदमताल कर रहे हैं।
कर्नाटक में बढ़त पर कांग्रेस
कर्नाटक का विधानसभा चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। चुनाव पूर्व के ज्यादातर सर्वेक्षण प्रदेश में कांग्रेस की बढ़ती रफ्तार की ओर इशारा कर रहे हैं। अगर इन सर्वेक्षणों के लब्बोलुआब निकाले जाएं तो प्रदेश की कुल 224 सीटों में से 126 सीटों पर अभी से कांग्रेस ने बढ़त बना ली है, भाजपा को 70 सीटें मिलने का अनुमान है, जेडीएस 24 सीटों पर सिमट सकता है, एक-दो सीट निर्दलियों के पाले में जा सकती है। कांग्रेस के वोट शेयर में 9 प्रतिशत का उछाल देखने को मिल सकता है। वहीं सट्टा बाजार फिलहाल कांग्रेस को 111-113, भाजपा को 82-84 और जेडीएस को 21-23 सीट दे रहा है। बहुमत के लिए किसी भी दल को 113 सीटों की दरकार होगी, यानी फिलवक्त तो जेडीएस से किंगमेकर का दर्जा छिन गया लगता है।
…और अंत में
महाराष्ट्र की राजनीति में आने वाले तूफान से पहले की शांति है, एकनाथ शिंदे को अपने जाने का आभास हो चला है। अभी मुंबई में हर तरफ भावी सीएम बता कर अजीत पवार के पोस्टर लग चुके हैं, नागपुर में ऐसे ही भावी मुख्यमंत्री के पोस्टर पर देवेंद्र फड़णवीस का चेहरा चस्पां है। पिछले दिनों शिंदे ने भाजपा व फड़णवीस से पूछे बगैर प्रदेश की नौकरशाही में एक बड़ा फेरबदल किया है, पनवेल निकाय प्रमुख समेत 27 आईपीएस अफसर का तबादला हो गया है, उप मुख्यमंत्री फड़णवीस को इस बात की कानों कान खबर तक नहीं हुई। (एनटीआई-gossipguru.in)
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