दिल्ली के ‘मालिक’ के राज में कैसे बचेगी पत्रकारिता ?

कुमारी अन्नपूर्णा चौधरी।
बीते छह मई की बात है। दिल्ली सरकार मीडिया सेल से सात पत्रकारों को बाहर निकाल दिया गया। ये सभी पत्रकार एक अंग्रेजी दैनिक के हैं। लेकिन इसके बाद से चारों तरफ सन्नाटा है। दुख की बात यह है कि दिल्ली सरकार के इस रवैए के बाद ना एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया की कोई प्रतिक्रिया आई् और ना दिल्ली प्रेस क्लब से। दिल्ली पत्रकार संघ में भी चुप्पी छाई है। ऐसी परिस्थितियों के बीच केजरीवाल सरकार में कैसे बचेगी पत्रकारिता ?

लुटियन मीडिया वालों के बीच पत्रकारों से जुड़ी खबरें चर्चा का विषय तो बनती हैं लेकिन दिल्ली की मीडिया से अक्सर उनकी खबर गायब रहती है। संभव है कि इसी कमी को भरने के लिए कुछ वेबसाइट्स सामने आई जो सिर्फ मीडिया की खबर लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। दिल्ली की केजरीवाल सरकार की असहिष्णुता की खबर जब ऐसी वेबसाइट पर भी नहीं चलतीं, इसका मतलब साफ है कि विज्ञापन और पीआर पर दिल्ली वालों का पैसा जो सरकार दोनों हाथों से लुटा रही है, वह केजरीवाल के खूब काम आ रहा है।
बीते छह मई की बात है। दिल्ली सरकार मीडिया सेल से सात पत्रकारों को बाहर निकाल दिया गया। ये सभी पत्रकार हिन्दुस्तान टाइम्स के हैं। केजरीवाल सरकार के मुख्य मीडिया समन्वयक विकास योगी ने हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के सभी पत्रकारों को दिल्ली सरकार के मीडिया समूह से बाहर कर दिया। 200 से अधिक पत्रकारों के समूह में दिल्ली के सात महत्वपूर्ण पत्रकारों को इस तरह बाहर कर दिया गया और इस खबर को लिखे जाने तक ना उन्हें वापस समूह में शामिल किया गया है और ना ही उन्हें समूह से बाहर किए जाने की कोई वजह वाट्सएप समूह में बताई गई है। इन सात पत्रकारों से दिल्ली सरकार अपनी गतिविधियों से जुड़ी जानकारी तक अब साझा नहीं कर रही। मतलब सभी तरह का संंबंध वाट्सएप समूह से निकाले जाने के साथ ही दिल्ली सरकार ने खत्म कर लिया। चूंकि दिल्ली में वामपंथी इको सिस्टम वाली सरकार है, इसलिए कहीं असहिष्णुता जैसा शब्द सुनने को नहीं मिल रहा। यदि यहां बीजेपी की सरकार होती तो सोशल मीडिया से लेकर एक खास इको सिस्टम वाली वेबसाइट और कुछ पूर्व पत्रकारों द्वारा संचालित यू ट्यूब चैनलों पर माहौल कुछ और होता।

सोशल मीडिया एक्टिविस्ट डॉ पश्यंति शुक्ला मोहित के अनुसार, ”सुबह शाम टीवी पर आकर ऑक्सीजन के लिए रोने वाले केजरीवाल की सहिष्णुता की पोल खोलती हिन्दुस्तान टाइम्स की ‘Anatomy of Capital oxygen crisis: 5 things Delhi govt didn’t get right’ (https://www.hindustantimes.com/cities/delhi-news/anatomy-of-capital-oxygen-crisis-5-things-delhi-govt-didn-t-get-right-101620260846250.html) शीर्षक वाली स्टोरी पढ़ी जानी चाहिए। दिल्ली में ऑक्सीज़न को लेकर हिंदुस्तान टाइम्स ने आज  आंखों से परदे हटाने वाली एक स्टोरी की। अखबार की इस स्टोरी में बताया गया है कि-

दिल्ली में कोरोना की क्राइसिस इस हद तक इसलिए हुई क्योंकि 15 अप्रैल तक दिल्ली सरकार ने टैंकर्स आर्डर नही किए थे।
एक हफ्ते पहले तक दिल्ली सरकार के पास सभी अस्पतालों तक कैसे आक्सीजन पहुंचाई जाएगी, इसका कोई प्लान नहीं था।”

पश्यंति के अनुसार हिन्दुस्तान टाइम्स के जिन पत्रकारों को वाट्सएप समूह से बाहर किया गया है, उनके नाम  श्वेता गोस्वामी (जिन्होने यह स्टोरी की), आशीष मिश्रा, अभिषेक डे, अनोना दत्त, फरीहा इफ़ितकार, कायनात और वत्सला श्रांगी है।

अरविन्द केजरीवाल लोकतंत्र में पारदर्शिता की मांग करते हुए राजनीति में आए थे। आम आदमी की राजनीति के अगुआ बनकर आए थे। उनका नाम सूचना के कानून अधिकार से जुड़ा है और वे जन लोकपाल कानून के मुख्यमंत्री बनने से पहले तक घोर समर्थक थे। हाल में प्रोटोकॉल को तोड़कर वे मोदी जी के साथ बातचीत के दौरान सिर्फ इसलिए लाइव हुए क्योंकि वे चाहते थे कि पूरी बातचीत पारदर्शिता के साथ हो। जबकि उसके बाद अधिकारियों के साथ कोविड से निपटने के लिए जो बैठक की, ट्विटर पर सिर्फ उसकी तस्वीर जारी कर दी। उसकी लाइव फुटेज दिल्ली तलाशती ही रह गई। उनकी अपने अधिकारियों से की गई बातचीत उन चैनलों पर भी नहीं चली, जहां प्रोटोकॉल तोड़कर प्रधानमंत्री के साथ केजरीवाल की बातचीत को एक्सक्लूसिव लाइव किया गया था।

दिल्ली सरकार के पत्रकार समूह से जुड़े एक पत्रकार बताते हैं कि इससे पहले भी पत्रकारों को प्रश्न पूछने पर बाहर किया गया है। केजरीवाल सरकार को ऐसे पत्रकारों की जरूरत है, जो सरकारी विज्ञापन लें और प्रश्न ना करे। एक तरह से वे सरकार द्वारा दिए जा रहे विज्ञापन को रिश्वत की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं। जहां विज्ञापन लेने के बाद सरकार के सारे काले कारनामों पर संस्थान को आंख बंद करनी पड़ेगी। ऐसा करना कोई पत्रकार पसंद नहीं करेगा।”
समूह से जुड़े पत्रकार थोड़ा ठहर कर कहते हैं — ”वैसे एनडीटीवी जैसे कुछ संस्थान वर्षों से केजरीवाल के विश्वासपात्र रहे हैं। एनडीटीवी से जुड़े एक पत्रकार के लिए बताया जाता है कि वे केजरीवाल की आईटी सेल को भी समय—समय पर अपनी सलाह देते रहते हैं।”

केजरीवाल प्रतिदिन प्रेस कांफ्रेन्स करते हैं, लेकिन उसे कैसे कोई प्रेस कांफ्रेन्स कह सकता है, जब वहां सवाल पूछने की किसी को इजाजत ही ना दी जाए। ऐसी परिस्थिति में एक खबर जो सरकार को पसंद नहीं आ रही, उसके लिए तानाशाही रवैया अपनाया जा रहा है। ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के पत्रकारों को समूह से बाहर करके और दिल्ली सरकार की तरफ से उनके लिए सारे दरवाजे बंद करके केजरीवाल क्या साबित करना चाहते हैं?

क्या वे पत्रकारों को उनकी सीमा—रेखा दिखा रहे हैं। यदि दिल्ली सरकार को कवर करना है तो पत्रकार सरकारी विज्ञापन लें और केजरीवाल साहब की चाटुकारिता करें। इस तरह के व्यवहार से दिल्ली सरकार अपने शासन में किस तरह की पारदर्शिता ला पाएगी ? यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन केजरीवाल की सरकार में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है।

समूह से पत्रकारों को निकाले जाने की घटना यहां पहले भी होती रही है। लेकिन इस तरह एक बड़े पत्रकारिता समूह के सात पत्रकारों को एक साथ निकाले जाने की यह पहली घटना है। इससे पहले एक बड़े पत्रकारिता संस्थान के राष्ट्रीय ब्यूरो चीफ को अपने एक टृवीट की वजह से नौकरी छोड़नी पड़ी थी क्योंकि दिल्ली के मालिक को उनकी सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणी पसंद नहीं आई। इसलिए उन्होंने एक पत्रकार की नौकरी ले ली।
ऐसे हालात में दिल्ली सरकार की खबर जो सच्चे पत्रकार लिख रहे हैं, वे कितनी चुनौतियों से गुजर रहे हैं, इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है। दुख की बात यह है कि दिल्ली सरकार के इस रवैए के बाद ना एडिटर्स गिल्ड आफ इंडिया की कोई प्रतिक्रिया आई् और ना दिल्ली प्रेस क्लब से। दिल्ली पत्रकार संघ में भी चुप्पी छाई है। ऐसी परिस्थितियों के बीच केजरीवाल सरकार में कैसे बचेगी पत्रकारिता ?

साभार- panchjanya.com

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