हंगरी ने यूक्रेन को सैन्य सहायता एवं सुरक्षा गारंटी के लिए ईयू मसौदा किया खारिज

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,4 मार्च।
हंगरी ने यूरोपीय संघ (ईयू) के उस प्रस्तावित मसौदे को खारिज कर दिया, जो यूक्रेन को सुरक्षा गारंटी और सैन्य सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से तैयार किया गया था। हंगरी के विदेश मंत्री पीटर सिज्जार्टो द्वारा इस निर्णय की घोषणा की गई, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी सरकार उन किसी भी कदम का समर्थन नहीं करेगी, जो रूस-यूक्रेन संघर्ष को और अधिक बढ़ाने का कारण बन सकते हैं। यह घटनाक्रम ऐसे समय पर सामने आया है जब रूस और अमेरिका के बीच शांति वार्ता को लेकर नए प्रयास किए जा रहे हैं।

हंगरी का तर्क: सैन्य सहायता से शांति वार्ता पर असर

बुडापेस्ट में आयोजित एक प्रेस वार्ता में सिज्जार्टो ने बताया कि हंगरी ने यूक्रेन को €20 अरब यूरो की प्रस्तावित सैन्य सहायता देने के मसौदे को अस्वीकार कर दिया है। उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि यूक्रेन को अतिरिक्त सैन्य सहायता प्रदान करने से संघर्ष केवल लंबा खिंचेगा और शांति वार्ता की संभावनाएं जटिल होंगी।” हंगरी का यह फैसला उसकी उस विदेश नीति को दर्शाता है, जिसमें वह पश्चिमी देशों और रूस के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।

ईयू के भीतर मतभेद उजागर

हंगरी के इस कदम से यूरोपीय संघ के भीतर यूक्रेन नीति को लेकर जारी मतभेद और गहरे हो गए हैं। प्रस्तावित €20 अरब यूरो की सहायता केवल सैन्य समर्थन तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें यूक्रेन की सुरक्षा अवसंरचना को मजबूत करने के लिए वित्तीय संसाधन भी शामिल थे। हंगरी के विरोध ने ईयू की एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं और इस बात पर बहस तेज कर दी है कि क्या सभी सदस्य देश यूक्रेन को समर्थन देने के मामले में एकमत हैं।

यूरोपीय आयोग के अधिकारियों ने हंगरी के इस फैसले पर निराशा व्यक्त की। एक अधिकारी ने कहा, “यह आवश्यक है कि हम एकजुट रहें और यूक्रेन का समर्थन करें।” उन्होंने यह भी संकेत दिया कि ईयू को हंगरी की चिंताओं का समाधान निकालने के साथ-साथ कीव के लिए समर्थन सुनिश्चित करने के नए रास्ते तलाशने होंगे।

हंगरी की विदेश नीति: संप्रभुता को प्राथमिकता

प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बान की सरकार ने हमेशा अपनी विदेश नीति में राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है, भले ही यह यूरोपीय संघ की सामूहिक नीति से मेल न खाए। हंगरी ने पहले भी रूस पर प्रतिबंधों और यूक्रेन को सैन्य सहायता देने के मुद्दों पर ईयू से भिन्न रुख अपनाया है। इस कारण से उसे अन्य यूरोपीय देशों, विशेष रूप से मध्य और पूर्वी यूरोप के पड़ोसी देशों की आलोचना झेलनी पड़ी है।

क्या होंगे इस फैसले के प्रभाव?

हंगरी के इस कदम से यूरोपीय संघ के भीतर आने वाले समय में कूटनीतिक चर्चाएं और गहरी होंगी। कुछ सदस्य देश यूक्रेन को लेकर ईयू की रणनीति में बदलाव की मांग कर सकते हैं, जिसमें सैन्य सहायता के बजाय रूस के साथ कूटनीतिक वार्ता को प्राथमिकता देने की बात हो सकती है।

अंततः, हंगरी का यह फैसला यूरोपीय संघ की एकता को चुनौती देता है और रूस-यूक्रेन संघर्ष पर पश्चिमी दुनिया की रणनीति को प्रभावित कर सकता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि ईयू इस गतिरोध को कैसे सुलझाता है और क्या यह हंगरी को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए मना पाता है या नहीं।

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