मैं नालंदा हूँ !

पूनम शर्मा
पूनम शर्मा

*पूनम शर्मा

मैं नालंदा हूँ ,
शेष नहीं,
अवशेष रह गया!
काल गति का,
मैं पात्र विशेष
महिमा मग्न था,
अनभिज्ञ रह गया ।
ज्ञान कलरव,
मेरा शक्तिपुंज बना,
जब,
सृजन,उदय,उत्कर्ष हुआ
विश्व के मानस पटल पर,
अब,
मैं मात्र स्मृति बन,
विशेष रह गया!
मैं नालंदा हूँ ,
शेष था,
अवशेष रह गया ।
धर्मगूँज के,
कर्म स्थल पर ,
सत्य पर्वत
व रत्न रंजक से ,
रत्नसागर के ,
पग तल तक,
आधार पोषण कर ,
विश्व सभ्यता का,
एक,
अनोखा आकार ,
बन रह गया ।
शेष बना,
अवशेष रह गया ।
विस्मृत,
चकित,
अचंभित,
विवश,
खिलजी का ,
आतंक व अन्याय सह गया ,
पूर्ण ज्ञान,
का स्तम्भ ढह गया?!
आह!
स्व गाथा ,
क्यों न कह गया ।
गौरवमयी अतीत,
का सिंहावलोकन
पुन:
हृदय द्रवित,
बार बार कर गया,
शेष बना,
अवशेष रह गया!
अनायास ही,
आज मुझे पल,
वह झकझोर गया जब ,
एक रात्रि  के,
किसी  प्रहर में ,
गहन निद्रा में ,
बेसुध था जब ,
तप्त प्रभंजन,
संकेत दे गया,
कौतूहल वश,
मैं जग गया,
रात्रि का आभास मुझे
दिवस सदृश भान हुआ था ,
धर्म गूँज की,
चीत्कारों में
सत्य पर्वत
के हाहाकारों में,
स्वयं ,
अपनी  प्राचीरों को,
धू- धू कर जलते देखा ,
होम करती सी,
लपटें देखीं,
अट्टालिकाओं को,
गिरते देखा,
अमूल्य ज्ञान ,
के उपादानों को,
ग्रंथों श्लोकों ,
के भण्डारों के साथ
स्वयं को,
स्वयं के अस्तित्व को,
सनातन हिंदुत्व ,
के सागर को ,
उस आतंकित ज्वाला,
में जलते देखा
उन कटु यादों का क्या करूँ?
पर वो स्पर्श, वो यादें
हृदय  को
तरंगित कर गई
फिर से ,
सनातन हिंदुत्व,
के लिए ,
झंकृत ,
कर गया,
स्पंदित ,
कर गया,
आंदोलित ,
कर गया
क्योंकि ,
मैं वही नालंदा हूँ ,
जो अब,
इस नए भारत में
पुन: ,
विशेष ग्रंथ
बन गया ।
एक नया युग ,
बन गया ,
शेष था,
अवशेष बना था ,
अब विशेष बन गया !
 – पूनम शर्मा (*कवयित्री, लेखक,इतिहासकार, सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती पूनम शर्मा शिक्षण कार्य से जुड़ी हैं। ३० से ज़्यादा वर्षों से स्वाध्याय व लेखन कार्य में रत हैं. असम के गुवाहाटी में रहती हैं ।)

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