बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उनके समर्थक कुछ भी कहे,भाजपा के बिना उनका कोई आधार नहीं है.इस सूत्र को उन्होंने अब अच्छी तरह से समझ लिया है.2015 में नीतीश ने एक भारी भूल की थी,जो उन्होंने 2017 में सुधार लिया था.लेकिन तेजी से बदलती हुयी नयी राजनीतिक स्थितियों के तहत वह अब और कोई इस तरह की भूल नहीं करने वाले. देश व प्रदेश के कुछ बौद्धिक आतंकवादीगण कुछ भी कहे,बिहार में भाजपा की मदद से नीतिशे कुमार की सरकार ही बनने जा रही हैं .भले ही दोनों दलों में कई प्रकार की आपसी विसंगितियाँ क्यों न हो.वैसे इस बार नीतीश पार्टी की सीटें पूर्व की तुलना में घटने की आशंका बतायी जा रही है.
नेतृत्व के सवाल पर नीतीश कुमार व तेजस्वी यादव की कोई तुलना नहीं हो सकती.न ही की जा सकती है.ये उसी प्रकार का एक सारगर्भित तथ्य है ,जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी की तुलना कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी से कतई नहीं हो सकती.ये बात सभी को पता है.दोनों पक्षों के समर्थको व विरोधियों को भी.
बिहार में 2020 विधान सभा चुनाव की बिसातें बिछायी जा चुकी है.चुनाव 28 अक्टूबर व 3 नवम्बर को हैं.सभी दल अपने अपने चुनाव प्रचार में जी जान से जुट गए हैं .बिहार चुनाव से नहीं लगता है कि देश में बाढ़ व कोरोना का कोई कुप्रभाव भी है.सत्ता वाले अपने अपने सत्ता पाने की होड़ में हैं.बेचारी जनता पाने अपने तरीके से मरने की कतार में हैं .कहते हैं न –युद्ध व प्यार में सबकुछ जायज़ है .सब चलता है.उसी तर्ज़ पर बिहार के चुनावी युद्ध में भी चल रहा है .बिहार व देश में कोरोना मरीजो की संख्या रोज दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है.जैसे जैसे बिहार में चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं ,वैसे वैसे राजनेता वैक्सीन का खाली लिफाफा आम लोगो को पकड़ाने से बाज़ नहीं आ रहे हैं .सब कुछ भगवान् भरोसे.देश प्रधानमंत्री श्री मोदी के भरोसे.
बहरहाल हम बिहार के इस ऐतिहासिक विधान सभा चुनाव की बात करते हैं.यदि एनडीए बहुमत में आता है तो नीतीश कुमार लगातार चौथी बार बिहार के मुख्यमंत्री बनेगे.एक नया रिकार्ड बनेगा.जिसकी सम्भावना प्रबल बताई जा रही है.55 प्रतिशत युवा बेरोजगारों के इस प्रदेश में 69 वर्षीय नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनकर बिहार को एक नयी दिशा देंगे.कैसे देंगे,उसको हम सब देखंगे 10 नवम्बर 2020 के बाद.
इस चुनाव के मद्देनजर हम बिहार की राजनीतिक व आर्थिक स्थितियों की एक समीक्षा करे,विश्लेषण करे तो हमें कई तरह के चौकाने व आश्चर्यचकित करने वाले तथ्य मिल सकते हैं .क्या हम बता सकते हैं कि नीतीश सरकार के 15 वर्ष के जादुई सुशासन काल में कितने बड़े बड़े उद्योग लगाये गए ? कितने प्रतिशत रोज़गारों का सृजन हुआ ? प्रदेश से पलायन का दर कितना कम हुआ? शायद सरकारी स्तर पर उसका कुछ आंकड़ा मिल भी जाये,लेकिन धरती पर वो सब पहुंचा या नहीं .ये भी एक बड़ा सवाल है.क्योकि नीतीश राज में मीडिया वही बोलता है या लिखता है,जो नीतीश कुमार और उनकी सरकार चाहती है.उसके कई आंतरिक व बाहय कारण है .कुछ सबको पता है.कुछ किसी को भी नहीं.
इन तमाम विसंगतियों के वाबजूद ये भी एक तथ्य व सत्य है कि राज्य में कानून-व्यवस्था अधिकतम नियंत्रण अवस्था में हैं.प्रधानमंत्री श्री मोदी की सुशासन शैली की तर्ज़ पर बिहार में कई सरकारी योजनाये डिजिटल व्यवस्था की वजह से आम लोगो तक पहुँच सकी हैं.पहुंच रही हैं .लेकिन आज भी कई मंत्री भ्रष्ट बताये जा रहे हैं,लेकिन “सब चलता है “की तर्ज़ पर आम के साथ खास लोग भी चुप से हैं.आम व खास जनता में आशावादी भाव को ऊर्जा देना और उस भाव को बनाये रखने में जो दल सफल है ,वही दल बेहतर दल हैं .वही दल सुशासन वाला हैं .भले आम जनता कष्टों से शीर्षासन क्यों न करते रहे .
राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय पटल पर बार बार ये सवाल गूंजता रहता है कि बिहार के पास सबकुछ है.फिर भी बिहार गरीब क्यों हैं ? मेरी समझ से इसका जवाब किसी के पास नहीं होगा.देश व प्रदेश क सबसे विद्वान् कहे जाने वाले केन्द्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद जैसो के पास भी नहीं.क्योकि श्री प्रसाद ने आजतक दिल्ली की गणेश परिक्रमा महिमा को ज्यादा तरजीह दी,बिहार के विकास को अपेक्षाकृत कम.श्री प्रसाद की भाजपा के साथ साथ कांग्रेस पर भी गहरी पकड़ हैं.उसी प्रकार भाजपा कोटे के सबसे युवा 68 वर्षीय उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के चाहने वाले भाजपा में कम जदयू में ज्यादा बताये जाते हैं.
बिहार विधान सभा चुनाव मैदान में एनडीए में भाजपा,जदयू,हम और वीआईपी पार्टी सक्रिय है,जबकि दूसरी तरफ राजद,कांग्रेस ,वाम दलों के सभी सहोदर भाई गण हैं.ये वामपंथी दल बिहार व देश के राजनीतिक परिदृश्य से धीरे धीरे गायब होते जा रहे हैं.क्योकि देश की जनता पहले से ज्यादा जागरूक हो चुकी हैं.इन दो गुटों के अलावा एक तीसरा धडा लोक जन शक्ति पार्टी का बन गया है.लोजपा आज भी केंद्र सरकार के गठबंधन का हिस्सा है,जो नीतीश कुमार की जिद के कारण बिहार चुनाव गठबंधन से बाहर है.
ये भी एक चौकाने वाला तथ्य है कि लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान प्रधानमंत्री श्री मोदी की तारीफ़ करते नहीं अघाते.वह स्वयं को प्रधानमंत्री श्री मोदी का हनुमान बताते हैं .दूसरी तरफ नीतीश कुमार को अगला मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते हैं.श्री पासवान का कहना है कि उनको ख़ुशी होगी कि इस बार भाजपा का ही मुख्यमंत्री बने.हालांकि इस बारे में प्रधानमंत्री श्री मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा स्पष्ट कर चुके हैं कि लोजपा से एनडीए का किसी भी प्रकार से कोई सम्बन्ध नहीं है .दूसरी तरफ केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना हैं चुनाव के बाद लोजपा के केन्द्रीय गठबंधन की स्थिति पर तदनुसार फैसला लिया जायेगा.उल्लेखनीय है लोजपा के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय रामविलास पासवान मोदी सरकार में काबीना मंत्री थे.ये भी कहा जा रहा है कि रामविलास पासवान के असामयिक निधन का फायदा उनकी पार्टी को मिल सकता है.प्रधानमन्त्री श्री मोदी ने बिहार के चुनावी मंच से स्वर्गीय श्री पासवान को तहे दिल से श्रध्हांजलि दी है.
इस चुनाव में मुद्दे व जातीय समीकरण को लेकर भी भ्रम की स्थिति देखी जा रही है .बाढ़,कोरोना,बेरोजगारी ,ढुलमुल स्वास्थ्य व्यवस्था पर वाकयुद्ध जारी हैं. बाढ़ की विभीषिका बिहार का अभिशाप रहा है.यदि हम मसले की समीक्षा करे तो एक नया उपन्यास लिखा जा सकता है.बाढ़ रोकथाम के विभिन्न सरकारी उपायों से आम जनता व प्रदेश गरीब से गरीब होते गए.जबकि बाढ़ विभीषिका उन्मूलन के तहत कई दरिद्र नेता व अफसरों की औकात चार्टर प्लेन से चलने वाली हो गयी हैं.केंद्र की मोदी सरकार को बिहार के बाढ़ नियंत्रण पर आजतक दिए गए केन्द्रीय मदद के तहत एक विशेष आयोग बनाना चाहिए.देश की जनता प्रधानमंत्री श्री मोदी को असीम आशीर्वादो से नवाजेगी.बिहार कृतज्ञ होगा.एक बिहारी होने के नाते मेरी भी उनसे गुज़ारिश हैं .
कुल मिलकर बिहार विधान सभा चुनाव परिदृश्य को देखा जाये तो ऐसा लगता है कि एक बार फिर प्रधानमन्त्री श्री मोदी के इस चुनाव की भी धुरी बन गए है.विकास व विश्वास के पर्याय बन चुके श्री मोदी का शायद विपक्ष के पास कोई ठोस जवाब नहीं है.संभवतः कांग्रेस नेता राहुल गाँधी भी बिहार चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री श्री मोदी को चीन,बेरोजगारी और कोरोना लडाई पर घेरने की असफल कोशिश करते दिखे.जो भी हो ,बिहार की जनता ने शायद तय कर लिया उन्हें क्या कर हैं.बिहार की जनता की एक बड़ी मजबूरी भी है कि उनके पास नीतीश सरकार की तुलना में कोई ठोस विकल्प मौजूद नहीं हैं.यदि नीतीश के सामने भाजपा होती तो उनकी लुटिया डूब ही जाती,ऐसा जानकारों का मानना हैं.
इन तमाम मसलो के मद्देनजर कई सर्वे एजेंसियों ने एनडीए की बढ़त बतायी है.यानी नीतीश एक बार फिर मुख्यमंत्री बन सकते हैं .राजद गठबंधन को 60-70 सीटों का अनुमान बताया गया है ,वही लोजपा को 5 सीटों तक की भविष्यवाणी की गयी है.
* कुमार राकेश
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