नीतीश कुमार अगर अब पाला बदले, तो हर तरह से घाटे में ही रहेंगे
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,3 जनवरी। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसा नाम हैं, जो अपनी रणनीतिक चालों और गठबंधनों के लिए जाने जाते हैं। लेकिन अब, जब उनकी सरकार राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में चल रही है, सवाल उठ रहे हैं कि अगर वे फिर से पाला बदलते हैं, तो क्या इसका उन्हें कोई फायदा होगा?
नीतीश कुमार ने पिछले कुछ दशकों में बार-बार अपनी राजनीतिक दिशा बदलकर यह साबित किया है कि वे समय और परिस्थिति के अनुसार गठबंधन बदलने में माहिर हैं। चाहे भाजपा के साथ एनडीए का साथ हो या राजद-कांग्रेस के साथ महागठबंधन, उन्होंने अपनी सत्ता को स्थिर बनाए रखने के लिए हर संभव विकल्प अपनाया है। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में, अगर वे अब कोई नया राजनीतिक निर्णय लेते हैं, तो उनके लिए यह हर दृष्टि से घाटे का सौदा साबित हो सकता है।
1. भाजपा से रिश्तों में खटास
नीतीश कुमार ने 2022 में भाजपा का साथ छोड़कर महागठबंधन का दामन थामा। इसका मुख्य कारण उनकी और भाजपा की विचारधाराओं में बढ़ता टकराव था। अगर वे अब भाजपा के साथ दोबारा जाने का निर्णय लेते हैं, तो यह न केवल उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करेगा, बल्कि भाजपा के अंदर उनके लिए कोई स्वागत योग्य माहौल भी नहीं होगा।
भाजपा, जो अब बिहार में अपने दम पर विस्तार कर रही है, शायद ही नीतीश कुमार को दोबारा उतनी अहमियत देगी, जितनी पहले दी जाती थी। इससे उनकी राजनीतिक शक्ति कमजोर हो सकती है।
2. महागठबंधन में विश्वासघात का दाग
राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाना नीतीश कुमार के लिए एक बड़ा राजनीतिक जोखिम था। अगर वे इस गठबंधन को तोड़ते हैं, तो यह महागठबंधन के भीतर विश्वासघात के रूप में देखा जाएगा। इससे उनके समर्थक और कार्यकर्ता हतोत्साहित हो सकते हैं।
राजद प्रमुख तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को महागठबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका दी है। अगर नीतीश अब गठबंधन से अलग होते हैं, तो यह तेजस्वी के नेतृत्व को और मजबूत कर सकता है, क्योंकि वे जनता के सामने एक स्थायी और ईमानदार विकल्प के रूप में उभर सकते हैं।
3. जनता के बीच गिरती छवि
बार-बार पाला बदलने से नीतीश कुमार की छवि एक “अस्थिर” नेता की बन रही है। जनता को एक ऐसा नेता चाहिए, जो स्थिरता और स्पष्टता के साथ निर्णय ले सके। अगर नीतीश कुमार फिर से राजनीतिक गठबंधन बदलते हैं, तो उनकी विश्वसनीयता पर और बड़ा सवाल खड़ा होगा।
4. बिहार में तीसरे मोर्चे की संभावना कमजोर
अगर नीतीश कुमार अब किसी तीसरे मोर्चे की ओर जाते हैं, तो यह कदम व्यावहारिक रूप से बेअसर रहेगा। बिहार की राजनीति मुख्य रूप से दो ध्रुवीय है—एनडीए और महागठबंधन। तीसरे मोर्चे के लिए न तो पर्याप्त समर्थन है और न ही कोई मजबूत आधार।
5. प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा पर सवाल
नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री पद की महत्वाकांक्षा लंबे समय से चर्चा में रही है। महागठबंधन के तहत उन्होंने विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन उनकी यह कोशिश अब तक निर्णायक रूप नहीं ले पाई है। अगर वे गठबंधन बदलते हैं, तो उनके इस प्रयास को बड़ा झटका लग सकता है, और राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि और कमजोर हो जाएगी।
क्या है नीतीश के लिए सही कदम?
नीतीश कुमार के लिए अब सबसे अच्छा विकल्प यह होगा कि वे महागठबंधन में बने रहें और अपनी छवि को स्थिर नेता के रूप में बनाए रखें। तेजस्वी यादव के साथ सत्ता साझा करके, वे अपनी राजनीतिक विरासत को संरक्षित कर सकते हैं। साथ ही, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी सरकार जनता के लिए ठोस विकास कार्य करे।
निष्कर्ष
नीतीश कुमार अगर अब पाला बदलते हैं, तो यह हर दृष्टि से उनके लिए नुकसानदेह होगा। उनकी विश्वसनीयता, राजनीतिक ताकत, और जनता के बीच छवि—सब कुछ दांव पर लग सकता है। वर्तमान परिस्थिति में, उनके लिए यही बेहतर है कि वे अपने वर्तमान गठबंधन के साथ अपनी स्थिति को मजबूत करें और भविष्य के लिए एक स्थिर राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाएं।
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