राष्ट्रपति नहीं तो… राज्यपाल बना दो- रवीन्द्र जैन

रवीन्द्र जैन।

राष्ट्रपति नहीं तो… राज्यपाल बना दो
मप्र कोटे से केंद्र में मंत्री बनाए गए भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने पार्टी के सामने राज्यपाल बनने के लिए मंत्री पद छोड़ने की पेशकश कर दी है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर बैठकों के दौर शुरू किए तो इन मंत्री जी ने प्रधानमंत्री से लेकर पार्टी संगठन तक संदेश भेजा कि वे अब मंत्री पद के बजाय किसी राजभवन की शोभा बढ़ाना चाहते हैं। मजेदार बात यह है कि जिन मंत्री जी ने राज्यपाल बनने की इच्छा व्यक्त की है, चार साल पहले उनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए लगभग तय हो गया था, लेकिन उनके खिलाफ कुछ ऐसे दस्तावेज दौड़ाए गए कि वे राष्ट्रपति बनते-बनते रह गए। विरोधियों ने इन पर आरोप लगाया कि मप्र में मिलने वाली मीसाबंदी पेंशन के लिए इन्होंने जेल रिकार्ड में हेराफेरी करके गलत प्रमाण पत्र प्राप्त किया था। फिलहाल वह मुद्दा तो अब शांत हो गया है। अब मंत्री जी को लगता है कि राष्ट्रपति नहीं तो राज्यपाल ही बना दो।

डाबी पर भारी… अभय तिवारी
मप्र में कांग्रेस और भाजपा के बीच सोशल मीडिया पर बढ़त बनाने का विवाद बेवजह तूल पकड़ रहा है। पिछले दिनों भाजपा के प्रभारी मुरलीधर राव ने प्रदेश की आईटी से को निर्देश दिए थे कि मप्र में सोशल मीडिया पर भाजपा को कांग्रेस से आगे होना चाहिए। यह खबर मीडिया में आने के बाद भाजपा मीडिया सेल के प्रभारी शिवराज सिंह डाबी ने ट्वीटर पर कांग्रेस के 919 हजार फॉलोअर की संख्या को फर्जी बताते हुए लिस्ट जारी कर दी कि कितने फॉलोअर फेक हैं। डाबी के इस खुलासे के कुछ देर बाद ही कांग्रेस के आईटी सेल के प्रभारी अभय तिवारी ने भी सूची जारी करते हुए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सहित तमाम नेताओं के फॉलोअर को बड़ी संख्या में फेक बता दिया। दरअसल एक वेबसाइट है जो ट्वीटर पर फॉलोअर के एक्टिव और अनएक्टिव की संख्या बताती है। जिस वेबसाइट से डाबी ने कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया था उसी का उपयोग अभय तिवारी ने किया और भाजपा के तमाम नेताओं के कथित फेक फॉलोअर के आंकड़े जारी कर दिए। मजेदार बात यह है कि यह वेबसाइट अनएक्टिव फॉलोअर को फेक फॉलोअर मानती है। फिलहाल इस विवाद में डाबी पर अभय तिवारी भारी दिखाई दिए।

दंत विहीन लोकायुक्त
आजकल मप्र के लोकायुक्त राज्य सरकार से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। राज्य सरकार ने छह महीने पहले एक आदेश निकालकर लोकायुक्त संगठन के तमाम अधिकारों को एक झटके में छीन लिया है। शासन के इस आदेश के बाद मप्र लोकायुक्त संगठन सहित भ्रष्टाचार की जांच से संबंधित सभी एजेंसियां दंत विहीन हो गई हैं। सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में धारा 17(ए) जोड़ते हुए आदेश दिया है कि किसी भी लोक सेवक के खिलाफ एफआईआर या पूछताछ करने से पहले एजेंसी को राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। इस आदेश के बाद ईओडब्ल्यू तो खामोश रहा, लेकिन लोकायुक्त ने छह महीने में इसका परीक्षण कराकर राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग को तीखा नोटिस जारी कर दिया है। इस नोटिस में यहां तक कहा गया है कि यह आदेश जारी करने वाले अतिरिक्त मुख्य सचिव के खिलाफ क्यों न भ्रष्टाचार के अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाए? लोकायुक्त की नाराजगी के बाद सामान्य प्रशासन विभाग में हड़कंप जरूर है, लेकिन लगता है कि राज्य सरकार ने लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के अधिकारों को पूरी तरह अपने अधीन करने का निर्णय कर लिया है। फिलहाल इस मामले में लोकायुक्त राज्य सरकार से दो-दो हाथ करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं।

फ्री बैठे हैं उमा प्रभात
क्या यह मान लिया जाए कि मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा की राजनीतिक पारी समाप्त हो गई है? यह दोनों तेज-तर्रार नेता पिछले लंबे समय से फ्री बैठे हैं। इनके पास सत्ता या संगठन की कोई जिम्मेदारी नहीं है। उमा भारती ने अपना राजनीतिक रसूख दिखाने के लिए पिछले दिनों शराब बंदी आंदोलन छेड़ने की घोषणा की थी। लेकिन संगठन की चेतावनी और पर्याप्त जन सहयोग न मिलने के कारण उनके आंदोलन फिस्स हो गया। अब उमा भारती ने चुनावी राजनीति में उतरने का ऐलान कर दिया है। दूसरी ओर 65 साल की उम्र में भी ऊर्जा से भरपूर प्रभात झा भी अपनी नई भूमिका की तलाश में हैं। प्रभात जी ज्यादा दिन फ्री बैठने वाले व्यक्ति नहीं हैं। पिछले दिनों अटकलें लगी थीं कि प्रभात झा राज्यपाल बनाए जा सकते हैं। लेकिन प्रभातजी की नई भूमिका को लेकर इंतजार कुछ ज्यादा ही लंबा होता जा रहा है।

घपले घोटालों का ट्रस्ट
बुंदेलखंड में टीकमगढ़ के पपौरा धार्मिक ट्रस्ट में पिछले लंबे समय से चल रहे घपले-घोटालों की परतें खुलना शुरू हो गई हैं। जिला प्रशासन ने अपनी लंबी-चौड़ी जांच में इस ट्रस्ट में बड़ी आर्थिक अनियमितताएं पाई हैं। जिला प्रशासन ने ट्रस्ट के सभी 9 पदाधिकारियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करा दी है। स्वयं को बड़ा समाजसेवी बताने वाले ट्रस्ट के सभी 9 पदाधिकारी फरार हो गए हैं। फिलहाल इस ट्रस्ट के घपले घोटालों का मामला भोपाल मंत्रालय से होता हुआ जिला न्यायालय और हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। लगभग दो सौ करोड़ की सम्पत्ति वाले इस ट्रस्ट में कुछ राजनेता रूचि ले रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री और भाजपा के ट्रस्ट के खिलाफ सख्त रूख को देखते हुए इन नेताओं ने भी चुप्पी साध ली है।

जजों पर गंभीर आरोप!
मप्र में लंबे समय बाद किसी जिला न्यायालय के जजों पर कथित भ्रष्टाचार के आरोप उसी न्यायालय में जज रहे एक व्यक्ति खुलेआम न केवल लगा रहे हैं बल्कि जजों के खिलाफ कोर्ट परिसर में विशाल प्रदर्शन की तैयारी में भी लगे हैं। इंदौर जिला न्यायालय में जज रहे एनके जैन आजकल वकालत कर रहे हैं। वे मप्र बार काउंसिल के सदस्य भी हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर इंदौर जिला न्यायालय में जजों के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ 29 जून को विराट प्रदर्शन करने की घोषणा की है। यह प्रदर्शन इंडिया अर्गेस्ट जूडिशियल करप्शन के बैनर पर किया जाना है। बिना ठोस प्रमाण के जजों के खिलाफ इस तरह प्रदर्शन करना न्यायालय के अवमानना के दायरे में आता है कि नहीं यह तो कोर्ट तय करेगा लेकिन एनके जैन इस तरह के प्रदर्शन पर अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि उन्होंने किसी जज का नाम लेकर आरोप नहीं लगाया है। यदि अवमानना का नोटिस मिलेगा तो वह जवाब देने को तैयार हैं।

और अंत में…
मप्र में लगभग 45 आईएएस अधिकारियों की तबादला सूची एक महीने से तैयारी रखी है। इस सूची पर तीन बार मुख्यमंत्री से चर्चा भी हो चुकी है। कुछ नाम आगे पीछे भी हुए हैं, लेकिन लंबी प्रतिक्षा के बाद भी यह सूची जारी नहीं हो पा रही है। शायद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तय नहीं कर पा रहे कि पहले आईएएस अधिकारियों की जमावट की जाए या मप्र के मंत्रियों को जिलों के प्रभार सौंपे जाएं?

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