यदि सनातन धर्म डेंगू मलेरिया की भाँति बीमारी है तो संविधान निर्माताओं ने सनातन प्रतीकों को संविधान की शोभा क्यों माना था..?

रमेश शर्मा
रमेश शर्मा

रमेश शर्मा
दक्षिण भारत से एक आवाज उठी है । जिसमें आव्हान है कि “सनातन धर्म डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारी है इसे समाप्त करना होगा” इस आव्हान के समर्थन में कुछ और भी स्वर आये । तब यह प्रश्न तो उठता ही है कि यदि सनातन धर्म इतना घातक है तो संविधान निर्माताओं ने सनातन के प्रतीकों को भारतीय संविधान की शोभा क्यों बनाया ?

यह आव्हान करने वाले उदयनिधि स्टालिन हैं । उनका पूरा वाक्य कुछ इस प्रकार का था-”जिस तरह हम मच्छर,डेंगू, मलेरिया और कोरोना को खत्म करते हैं उसी तरह सिर्फ सनातन धर्म का विरोध करना ही काफी नहीं है, इसे समाज से पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए.” जिन उदयनिधि ने सनातन धर्म की तुलना घातक रोगों से की है । उनकी पृष्ठभूमि सनातन धर्म से ही रही है । उदयनिधि नाम भी सनातनी है । और उदयनिधि का ही नहीं उनके पूर्वजों के नाम भी सनातन धर्म के प्रतीकों के अनुरूप हैं । उदयनिधि के पिता का नाम “मुथुवेल करुणानिधि” है । “मुथुवेल” दक्षिण के देवता “मुरुगन” का नाम है । और मुरुगन भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय को कहते है । उदयनिधि की माता का नाम दुर्गा है । इनके पितामह का नाम करुणानिधि है । करुणानिधि भगवान राम को कहा गया है । रामचरितमानस में अनेक बार प्रयोग हुआ है । उदयनिधि की दादी का नाम पद्मावती था । जो सनातन धर्म की देवीलक्ष्मी का नाम है । यही नहीं उदयनिधि के प्रपितामह का नाम और प्रमातामह का नाम भी शुद्ध सनातनी है । जो यह प्रमाणित करते हैं कि उदयनिधि की वंश पृष्ठभूमि और विकास यात्रा पूर्णतः सनातनी है । करुणानिधि मांसाहार छोड़कर पूर्णतः शाकाहारी हो गये थे और निरन्तर योगाभ्यास करते थे । शाकाहार और प्रतिदिन योगाभ्यास का निर्देश सनातन धर्म में ही दिया जाता है । लेकिन अब उदयनिधि अपने नाम के आगे “स्टालिन” लिखते हैं। अब यह “स्टालिन” किसी भय से लगा या लालच से लगा या पसंद से यह तो उदयनिधि या उनके पिता ही जानें। और वह कारक इतना प्रबल है कि उदयनिधि संविधान की मूल अवधावना, संविधान में शोभायमान प्रतीकों और संविधान निर्माताओं की सर्व सम्मत भावनाओं का दमन करने पर उतारू हैं । और सनातन धर्म को समाप्त करने का आव्हान कर रहे हैं। भारत में दासत्व का अंधकार साधारण नहीं था । वह कठिन दौर दोबारा कभी न लौटे इसलिए संविधान निर्माताओं ने सर्वसम्मत भावना से कुछ प्रतीकों को स्थानीय प्रेरणा स्त्रोत माना जिनमें विश्व शांति, विश्व बंधुत्व और प्रगति शैली सुनिश्चित हो ।इसके लिये भारतीय संविधान में कुल बाईस ऐसे चित्रों का समावेश किया गया है इनमें बीस चित्र सीधे सनातन धर्म अथवा सनातन धर्म के अनुयायियों से संबंधित हैं । इनमें हड़प्पा संस्कृति से लेकर गाँधी जी तक के चित्र हैं। इन प्रतीकों का चयन सर्व सम्मत हुआ था और कहा गया था कि ये सभी प्रतीक भविष्य के भारत निर्माण के प्रेरक बनेंगे।

संविधान के आवरण पृष्ठ पर अशोक चिह्न है। सम्राट अशोक सनातन धर्म के अनुयायी थे फिर बौद्ध मत की ओर मुड़े। बौद्धमत भी सनातन धर्म की ही शाखा है । सनातन धर्म के दशावतार क्रम में भगवान बुद्ध नौवें अवतार माने गये हैं। भारत का प्रतीक वाक्य “सत्यमेव जयते” सनातन धर्म के मुंडकोपनिषद से लिया गया है । संविधान के आवरण को पलटकर भीतर के पृष्टों का अवलोकन करें तो इनमें पहला चित्र मोहनजोदड़ो का है । सनातन धर्म का उद्भव समय के आरंभ से माना जाता है । यदि हड़प्पा संस्कृति का जन्म भारत में हुआ तो वह संस्कृति सनातन धर्म का ही अंग रही है । फिर वैदिक काल के गुरुकुल चित्र, भागीरथ की तपस्या और गंगा का अवतरण, नटराज की छवि, भगवान राम की लंका विजय, हनुमान जी का चित्र, भगवान कृष्ण का अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुये, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, मौर्य काल और गुप्त काल की कला कृतियाँ, विक्रमादित्य का दरबार, नालंदा विश्वविद्यालय, उड़िया मूर्तिकला, के साथ सनातन धर्म के ही अनुयायी शिवाजी महाराज, गुरु गोविंद सिंह, महारानी लक्ष्मीबाई, गांधी जी का दांडी मार्च, नोआखली में दंगा पीड़ितों केबीच गांधीजी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, हिमालय, रेगिस्तान तथा महासागर के दृश्य आदि कुल बीस चित्र हैं इनके अतिरिक्त दो और चित्र हैं। एक मुगल बादशाह अकबर का दरबार का और दूसरा टीपू सुल्तान का । यदि 22 में से बीस चित्र सनातन धर्म और सनातन धर्म से संबंधित महापुरुषों के हैं तो यह बात आसानी से समझी जा सकती है कि संविधान निर्माताओं की दृष्टि में सनातन धर्म की परिभाषा क्या रही होगी । लेकिन अब उदयनिधि ने अपनी समझ से संविधान की भावना और संविधान सभा के चिंतन पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है ।

सनातन धर्म संसार में ऐसा अकेला धर्म है के जिसमें प्रतिदिन का पूजन विश्व शांति अंतरिक्ष शांति और पूरी पृथ्वी की शांति की कामना होती है, प्राणीमात्र में सद्भावना उद्घोष होता है । पूरे विश्व को एक कुटुम्ब मानने की कल्पना वेद से लेकर पुराणों तक है। इतनी विशालता और इतनी संवेदना संसार में दुर्लभ है । इसके अतिरिक्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की मूल शक्ति भी सनातन धर्म और उसकी शाखाएँ ही रहीं हैं । स्वतंत्रता संग्राम में “वंदेमातरम” का उद्घोष हो या “रामराज्य” की कल्पना दोनों का संबंध सनातन धर्म से है । यदि हम स्वाधीनता संघर्ष की पुरानी बातें छोड़ कर केवल 1857 से 1947 तक नब्बे वर्ष के संघर्ष का आकलन करें तो इसमें बलिदान देने वालों में या जेल जाने वालों में सनातनी धर्म और उसकी शाखाओं के अनुयायी 99% हैं । इतिहास के पन्ने पलट कर इसे बहुत आसानी से समझा जा सकता है । इतिहास के इस कटु सत्य को भी भुलाया नहीं जा सकता कि स्वतंत्रता संघर्ष के बीच एक धर्मधारा ने भारत विभाजन की नींव रखी और बँटवारे के नाम लाखों लोगों का बलिदान हुआ । तो एक अन्य धर्मधारा अंग्रेजी राज की अंतः शक्ति थी । वह न केवल राजसत्ता संचालन का निर्देशन करती थी अपितु शिक्षा और चिकित्सा पद्धति संचालन भी उनके धर्मगुरुओं की निगरानी में था । यह सनातन धर्म उत्प्रेरणा ही थी कि स्वतंत्रता के बाद पिछला भूलकर संविधान निर्माताओं ने सबको फलने फूलने के अवसर दिये । यदि सनातन धर्म डेंगू मलेरिया, कोरोना आदि जैसा खतरनाक होता तो क्या उदयनिधि इतना खुलकर सनातन धर्म को समाप्त करने का आव्हान कर सकते थे ?

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