लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और ध्यान का महत्व: उपराष्ट्रपति की महत्वपूर्ण टिप्पणी

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,21 फरवरी।
अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा किए गए हालिया खुलासे पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए, भारत के उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैं चौंक गया हूं कि पूरी जिम्मेदारी के साथ यह स्वीकार किया गया है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित किया गया और चुनावी प्रणाली की शुद्धता को नुकसान पहुंचाने का प्रयास हुआ।” उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह किसी प्रभावशाली और प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा किया गया कृत्य प्रतीत होता है और इसमें बड़ी मात्रा में धन का लेन-देन हुआ है।

लोकतंत्र पर हमले के विरुद्ध चाणक्य नीति आवश्यक

उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि हमें चाणक्य की रणनीति अपनानी होगी, इस साजिश की जड़ तक जाना होगा और इसे पूरी तरह समाप्त करना होगा। “हमें यह पता लगाना चाहिए कि वे कौन लोग हैं जिन्होंने हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला किया। यह हमारा राष्ट्रधर्म है कि हम इन ताकतों को बेनकाब करें और परास्त करें, ताकि भारत अपने सपनों के लक्ष्य—’विकसित भारत’—की ओर मजबूती से आगे बढ़ सके,” उन्होंने कहा।

गैर-प्राकृतिक जनसांख्यिकीय विस्थापन: एक षड्यंत्र

दिल्ली में वैश्विक ध्यान नेताओं के सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए उपराष्ट्रपति ने एक और महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रकाश डाला— गैर-प्राकृतिक जनसांख्यिकीय विस्थापन। उन्होंने इसे “सुनियोजित साजिश” बताया और कहा कि कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या असंतुलन को बढ़ावा देकर भारत के अस्तित्व को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।

धर्मांतरण के लिए प्रलोभन: एक गहरी साजिश

उपराष्ट्रपति ने यह भी बताया कि किस प्रकार धर्मांतरण के लिए प्रलोभन दिया जा रहा है, जो संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग है। उन्होंने कहा, “आज लालच और लोभ के माध्यम से लोगों को धर्मांतरण के लिए प्रेरित किया जा रहा है, और यह एक खतरनाक षड्यंत्र का हिस्सा है।”

भारत की सांस्कृतिक विरासत और उसकी पुनर्स्थापना

उपराष्ट्रपति ने विक्रमशिला, नालंदा और तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों के विनाश का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर पर भीषण आक्रमण हुआ था। उन्होंने गर्व के साथ कहा, “आज, पिछले दस वर्षों में, हम अपनी खोई हुई महिमा को पुनः प्राप्त कर रहे हैं और भारत को उसकी प्राचीन गौरवशाली स्थिति में पुनर्स्थापित करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।”

ध्यान: आत्मसाक्षात्कार और मानसिक शांति का माध्यम

ध्यान के महत्व पर बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “ध्यान कोई अमूर्त विचार नहीं है, यह आत्म-साक्षात्कार की दिशा में एक मार्गदर्शक शक्ति है। ध्यान हमें दूसरों को समझने में सहायता करता है और मानसिक संतुलन प्रदान करता है।” उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में मानसिक विकार, अवसाद और चिंता एक गंभीर चुनौती बन चुके हैं। उन्होंने ध्यान को “अंधेरे में प्रकाश स्तंभ” बताते हुए कहा कि यह कठिन समय में मनुष्यों को राह दिखाता है।

निष्कर्ष

उपराष्ट्रपति की यह टिप्पणी भारत की लोकतांत्रिक संरचना की सुरक्षा और भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना पर केंद्रित थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रवादी मूल्यों को सर्वोपरि रखना होगा, ध्यान को एक जीवनशैली के रूप में अपनाना होगा, और उन ताकतों को बेनकाब करना होगा जो भारत के लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक मूल्यों को क्षति पहुँचाने का प्रयास कर रही हैं। यही भारत के उज्ज्वल भविष्य की कुंजी है।

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