समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,12 मार्च। भारत और भूटान के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामरिक रिश्ते हैं जिन्होंने समय के साथ और भी मजबूत हुए हैं। पिछले महीनों में, भूटान के प्रधानमंत्री ने भारत का दौरा किया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भूटान का नेतृत्व भारत के साथ अपनी निकटता बनाए रखना चाहता है। भूटान के राजा ने प्रयागराज में कुंभ स्नान किया, जो यह साबित करता है कि वे भारत के साथ अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्तों को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
भूटान और भारत के बीच सुरक्षा संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐतिहासिक रूप से, दोनों देश एक प्रोटेक्टोरेट के रूप में रहे हैं, जहां भारत ने भूटान की सीमाओं की रक्षा की है। भूटान ने कभी भी चीन के साथ अपने संबंधों को सामान्य नहीं किया, जबकि सिक्किम के राजा ने चीन के साथ नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की थी, जिसके कारण सिक्किम को भारत में विलय कर लिया गया।
भूटान ने 1983 में भारतीय गोरखाओं को वहां से हटाने का प्रयास किया था, जो उसकी भारत के प्रति नीतियों में एक महत्वपूर्ण बदलाव था। भारत ने भूटान के संविधान के लिए मदद की और उसे एक संवैधानिक राजतंत्र में परिवर्तित कर दिया, जहां चुनाव भी होने लगे। किन्तु भूटान की सीमाओं पर चीन की निगाह बनी हुई है। अब भूटान और चीन के बीच सीमाओं पर बातचीत चल रही है, जिसमें चीन ने भूटान को कई प्रस्ताव किए हैं।
चीन ने कई ऑफर दिए हैं कि भूटान को लुभा सकते हैं, परन्तु भूटान ने कभी भी समझदारी से काम लिया है। भूटान को चीन की नीतियों का पता है कि वह आमतौर पर उसके छोटे पड़ोसियों के खिलाफ होती हैं। चीन की विस्तारवादी नीतियों की वजह से, भूटान को सतर्क रहना होगा।
चीन ने डोकलाम इलाके में घुसपैठ करने का प्रयास किया था, लेकिन भूटान ने भारत के साथ साथ इसका सामना किया। यह स्थिति यह दर्शाती है कि भूटान भारत के साथ है और चीन की विस्तारवादी नीतियों का सामना करने के लिए तैयार है।
भूटान ने अपने विकास के लिए भारत के साथ सहयोग बढ़ाया है। बड़े-बड़े जल विद्युत परियोजनाएं भारत की सहायता से बन रही हैं, जिससे भूटान को आर्थिक लाभ हो रहा है। भारत भूटान से ऊर्जा खरीदता है, जो न केवल भूटान के लिए फायदेमंद है, बल्कि भारत के लिए भी आवश्यक है।
भूटान की हाइड्रो पावर परियोजनाएँ भारतीय पूर्वोत्तर क्षेत्र की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम योगदान कर रही हैं। इसके साथ, भूटान की अर्थव्यवस्था में भी सुधार हो रही है और वह भारत के साथ एक अंतिम व स्थिर संबंध बनाए रखता है।
हालांकि, भूटान की दशा जटिल है। चीन निरंतर भूटान की सीमाओं पर दबाव बनाए हुए है और उसे अपनी भू-राजनीतिक नीतियों के अनुसार अपने प्रभाव में लाने का प्रयास कर रहा है। विस्तारवादी नीतियों का सामना करते हुए भूटान को सावधानी की आवश्यकता है।
भूटान के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत करे, ताकि वह चीन की चालों का मुकाबला कर सके। भूटान सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता को बनाए रखे, और साथ ही भारत के साथ अपने मजबूत संबंधों को भी कायम रखे।
चीन का इतिहास उन अनगिनत क्षणों से भरा पड़ा है जब उसने अपने पड़ोसी देशों के साथ विवादों को बढ़ावा दिया है। तिब्बत पर कब्जा, दक्षिण चीन सागर में विवाद, और बार-बार सीमा विवाद जैसे मुद्दे इस बात के प्रमाण हैं कि चीन अन्य देशों की संप्रभुता का सम्मान नहीं करता। भूटान के मामले में भी चीन ने भूटान की सीमाओं पर दबाव बनाने के लिए कोशिश कई बार की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उसकी नीयत हमेशा से विस्तारवादी रही है।
चीन की इन गतिविधियों को देखते हुए, भूटान को सतर्क रहना होगा। भूटान की सरकार को यह समझना होगा कि चीन के साथ किसी भी प्रकार का समझौता या सहयोग उसके लिए हानिकारक हो सकता है। चीन ने भूटान को कई प्रलोभन दिए हैं, लेकिन भूटान को समझदारी से काम लेना होगा । भूटान का भविष्य न केवल उसकी विदेश नीति पर निर्भर करेगा, बल्कि भारत के साथ उसके संबंधों की मजबूती पर भी। भूटान को यह समझना होगा कि उसकी स्वतंत्रता और विकास के लिए भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना आवश्यक है।
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