समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 5 अप्रैल। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) ने भारतीय वायुसेना को 500 किलो का बम सौंपा है। इसे जनरल परपज बम नाम दिया गया है। मध्य प्रदेश के जबलपुर की आयुध निर्माणी में इसे तैयार किया गया है। भारत शांति का पक्षधर रहा है, लेकिन अपनी सीमाओं को लेकर सतर्क रहता है और आक्रामक भी। जब आपके पड़ोसी चीन और पाकिस्तान जैसे शातिर राष्ट्र हों तो अपनी सामरिक शक्ति व नीति को मजबूत करना जिम्मेदारी भी बनती है और कर्तव्य भी।
आठ वर्ष में भारत रक्षा क्षेत्र में काफी मजबूत हुआ
बीते करीब आठ वर्ष में भारत रक्षा क्षेत्र में न केवल खुद मजबूत हुआ है बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को भी हथियार बेचने की शुरुआत कर रहा है। आइए समझें विश्व के दूसरे नंबर के हथियार आयातक ने कैसे स्वदेशी के मंत्र से अब हथियारों के निर्यात में कदम बढ़ा दिए हैं।
रक्षा निर्यात बढ़ाने पर सरकार का जोर
सरकार का लक्ष्य है कि 2024-25 तक रक्षा निर्यात को बढ़ाकर 36,500 करोड़ किया जाए। सरकार का ध्यान स्वदेशी हथियार निर्माण पर अधिक है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्र ने आर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड और 41 आयुध निर्माणी फैक्ट्रियों को मिलाकर रक्षा क्षेत्र में सात सार्वजनिक उपक्रम (डीपीएसयू) बना दिए हैं। इसका उद्देश्य प्रशासनिक चुस्ती के साथ कामकाज में पारदर्शिता और तेजी लाना है। बीते आठ वर्ष में भारत के रक्षा निर्यात में करीब छह गुना वृद्धि हुई है। फिलीपींस के साथ 2,770 करोड़ रुपये का रक्षा सौदा मील का पत्थर है।
दक्षिण पूर्व एशिया में भारत धमक
दक्षिण पूर्व एशिया में भारत की धमक भी बढ़ रही है। हथियार निर्यात से केवल देश को आय ही नहीं होगी, बल्कि सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया में हमारी धमक भी बढ़ेगी। फिलीपींस के बाद वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों ने भी हमसे हथियार खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। हमारा पड़ोसी चीन दक्षिण चीन सागर से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक प्रसारवादी नीति के तहत काम करता है। इस क्षेत्र में पुराने साथियों से हमारे संबंधों में नवीनता और प्रगाढ़ता आवश्यक है जो हथियार सौदों से मिल सकती है। ब्रह्मोस मिसाइल के अलावा आकाश एयर डिफेंस प्रणाली की भी खासी धूम है।
करीब 42 देश हमसे रक्षा आयात करते हैं
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात हमसे यह हथियार खरीदना चाहते हैं। करीब 42 देश हमसे रक्षा आयात करते हैं। जिसमें कतर, लेबनान, इराक, इक्वाडोर और जापान आदि हैं। इनमें प्रमुख रूप से युद्धक स्थितियों में शरीर की सुरक्षा करने वाले बाडी प्रोटेक्टिंग उपकरण शामिल हैं। तटीय निगरानी प्रणाली, रडार और एयर प्लेटफार्म में भी कुछ देशों ने रुचि जाहिर की है।
रक्षा बजट बढ़ाने और आयात घटाने का लक्ष्य
मोदी सरकार रक्षा बजट लगातार बढ़ा रही है और रक्षा आयात कम कर रही है। अभी समाप्त हुए वित्त वर्ष में भारत ने 11,607 करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात किया। इस आंकड़े का महत्व समझना हो तो वर्ष 2014-15 के आंकड़े देखिए जब 1,941 करोड़ रुपये का हथियार निर्यात हुआ था। वर्ष 2013-14 से देश का रक्षा बजट अब करीब दोगुना हो चुका है। यह करीब 5.25 लाख करोड़ रुपये है। वर्ष 2020 में 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर रोक लगी और 460 से ज्यादा लाइसेंस जारी किए हैं।
पहले से कम होने लगा रक्षा आयात
स्टाकहोम इंटनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) की रिपोर्ट कहती है कि 2012-16 और 2017-21 में रक्षा आयात 21 प्रतिशत कम हुआ है। रक्षा आयात कम होने से करीब प्रतिवर्ष करीब 3,000 करोड़ रुपये बचेंगे।
विदेश में दूतावास भी मिशन पर
सरकार ने देश की हथियार निर्माण की बढ़ती शक्ति को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए विभिन्न देशों में मौजूद भारतीय दूतावासों को भी जिम्मेदारी दी है। अधिकारियों से रक्षा उपकरणों के निर्यात पर भी मदद करने को कहा गया है। सिपरी के मुताबिक भारत ने 2011 से 2020 के बीच रक्षा बजट में 76 फीसद इतनी वृद्धि की है। विश्व में बीते नौ वर्ष में विभिन्न देशों के रक्षा बजट में 9 फीसद औसत वृद्धि हुई।
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