समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 23 जून: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व डीन और स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर अश्विनी कुमार महापात्रा ने अमेरिकी हमले के बाद इजरायल–ईरान तनाव पर भारत की विदेश नीति की दिशा पर सवाल उठाया। एएनआई से उन्होंने कहा कि भारत को किसी भी फैसले में जल्दबाजी से बचना चाहिए और रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना चाहिए।
संवाद और मध्यस्थता की भूमिका
महापात्रा ने सुझाव दिया कि भारत इजरायल और ईरान को बातचीत की मेज़ पर लाने का प्रयत्न करे तथा इसका मध्यस्थ्य संवाद को बढ़ावा देते हुए करे, विशेषकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांतिपूर्ण समाधान की ओर कदम बढ़ाए ।
‘इंतजार और समय’ रणनीति
उन्होंने बताया, “भारत को कुछ समय इंतजार करना चाहिए, फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और क्षेत्र में शांति व स्थिरता केंद्रित प्रयासों का समर्थन करना चाहिए।” यह रणनीति भारत के मध्य पूर्व आर्थिक गलियारे (IMEC) जैसे परियोजनाओं के लिए भी लाभकारी होगी।
परिवहन और व्यापार को खतरा
महापात्रा ने चेतावनी दी कि यह संघर्ष अंतरराष्ट्रीय व्यापार और IMEC, चाबहार पोर्ट, व भारत-मध्य⁃पूर्व राजमार्गों को प्रभावित कर सकता है। लाल सागर व ईरानी समुद्री मार्गों में व्यवधान से लागत, शिपिंग और व्यापार मार्ग में अस्थिरता बढ़ेगी।
ऊर्जा सुरक्षा के लिए जोखिम
इस संघर्ष से वैश्विक तेल बाजार और भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। बढ़ी हुई कच्चे तेल की कीमत और होर्मुज जलडमरूमध्य की किश्तबंदी का सीधा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है ।
मध्यस्थता में सहयोगी भूमिका
उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत अकेले इसके लिए उपयुक्त नहीं होगा; बल्कि यूरोपीय संघ जैसे तटस्थ साझेदारों के साथ मिलकर मध्यस्थता करना ज्यादा प्रभावशाली रहेगा ।
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