समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 25 जुलाई: भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग ने हाल ही में हस्ताक्षरित भारत–यूके मुक्त व्यापार समझौता (FTA) का स्वागत करते हुए इसे एक परिवर्तनकारी कदम बताया है, जिसकी क्षमता दोनों देशों में वाणिज्य प्रवाह, प्रतिस्पर्धात्मकता और नवाचार को फिर से परिभाषित करने की है। इस समझौते पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की उपस्थिति में अंतिम मुहर लगी है, जो शुल्क में भारी कटौती, बेहतर बाज़ार पहुँच और दीर्घकालिक रणनीतिक सहयोग की रूपरेखा प्रदान करता है।
उद्योग की प्रतिक्रिया: आशा और दूरदृष्टि
महिंद्रा समूह के समूह सीईओ एवं एमडी, अनिश शाह ने इस FTA को “एक आधुनिक, मूल्य‑आधारित साझेदारी का खाका” कहा, जिसमें हरित गतिशीलता, डिजिटल टेक्नोलॉजी, और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सतत विकास, नवाचार और उच्च गुणवत्ता वाले रोजगार को बढ़ावा देने की क्षमता है। उनका मानना है कि यह केवल एक व्यापार समझौता नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक मंच पर भारत की बढ़ती आत्मविश्वासी भूमिका का प्रतीक है।
टाटा मोटर्स (पैसेंजर व्हीकल्स) के एमडी और SIAM (भारतीय ऑटो मैन्युफैक्चरर्स संघ) के अध्यक्ष शैलेश चंद्रा ने कहा कि SIAM सरकार के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगा कि समझौता भारतीय ऑटो क्षेत्र के लिए वास्तविक वृद्धि, वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति और तकनीकी प्रगति लाए। चंद्रा के अनुसार, यह समझौता भारत को वैश्विक ऑटोमोटिव मूल्य श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित करता है।
ऑटोमेकर्स के लिए समझौते की खास बातें
इस समझौते की मुख्य खासियत है Tariff Rate Quota (TRQ), जिसका उद्देश्य यूके से आने वाले वाहनों पर आयात शुल्क में भारी कटौती करना है:
- विशाल इंजन वाले कार्स (3000cc से ज्यादा पेट्रोल या 2500cc से अधिक डीज़ल) पर कस्टम ड्यूटी 100%+ से 10% तक घटाकर 15 वर्षों में लागू की जाएगी, 10,000 यूनिट की सीमा से शुरू होकर पाँच वर्षों में 19,000 यूनिट तक विस्तारित की जाएगी।
- मध्यम आकार की गाड़ियां (1500–2500cc डीज़ल या 3000cc तक पेट्रोल) पर प्रारंभ में 50% शुल्क लगेगा, जो पाँचवें वर्ष तक 10% तक कम होकर स्थिर होगा।
- 1500cc से कम छोटी कारें भी क्रमिक शुल्क कटौती का लाभ उठाएंगी, जिससे अधिक किफायती आयात संभव होगा।
इस से Jaguar Land Rover (JLR) जैसे ब्रिटिश उच्च-श्रेणी ब्रांड्स (जो कि Tata Motors के ही हैं) के लिए भारत में प्रवेश आसान होगा, साथ ही यूके के अन्य वाहन निर्माता भी इस बाज़ार में अपनी जगह बना सकेंगे।
भारत की व्यापार नीति में ऐतिहासिक बदलाव
यह समझौता भारत की उस पुरानी नीति में बड़ा उलटफेर है, जहाँ घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए 100% से अधिक श्रेणियों में आयात शुल्क लगाए जाते थे। समझौते के पांचवें वर्ष तक वार्षिक 37,000 तक यूके निर्मित ICE वाहन मात्र 10% शुल्क पर भारत आ सकते हैं—जो वर्तमान दर 110% से भारी अंतर है।
फिर भी यह केवल आर्थिक समझौता नहीं है; यह भारत के वैश्वीकरण की ओर झुकाव का संकेत है—जहाँ वह मूल्याधारित वैश्विक साझेदारी, तकनीकी सहयोग और प्रतिस्पर्धी विनिर्माण के लिए तैयार दिख रहा है।
अवसर और चुनौतियाँ
ऑटो उद्योग उत्साहित है, पर इस समझौते से घरेलू निर्माताओं पर प्रतिस्पर्धा का दबाव भी बढ़ेगा। उन्हें नवाचारी, क्षमाशील और वैश्विक बनने की ज़रूरत है। बदले में, भारत के निर्माता यूके बाज़ार में प्रवेश पा सकते हैं—जॉकॉइंट वेंचर, R&D साझेदारी, हरित मोबिलिटी परियोजनाओं के साथ।
निष्कर्ष: एक नई दिशा की शुरुआत
यह समझौता केवल व्यापारिक दरों का समायोजन नहीं, बल्कि आर्थिक पुनर्रचना का उत्प्रेरक है। यह भारत की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है—निर्माण प्रधान शक्ति बनने और मोबिलिटी नेतृत्व स्थापित करने की। यदि इसे सफलतापूर्वक लागू किया जाए, यह समझौता भारत की वैश्विक ऑटो पहचान को नया आयाम दे सकता है, और उसे प्रौद्योगिकी, स्थिरता और वैश्विक भागीदारी पर आधारित भविष्य की ओर ले जा सकता है।
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