
प्रो. मदन मोहन गोयल, प्रवर्तक – नीडोनॉमिक्स एवं पूर्व कुलपति
भारत में लंबे समय से प्रतीक्षित श्रम सुधार—29 केंद्रीय श्रम कानूनों का चार आधुनिक श्रम संहिताओं में विलय—नियोक्ताओं, कर्मचारियों और राज्य के बीच संबंधों को पुनर्गठित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य-परिस्थितियों से संबंधित ये चार श्रम संहिताएं, व्यवसाय में आसानी, रोजगार के औपचारिकरण और श्रमिक कल्याण को बढ़ाने में सक्षम परिवर्तनकारी सुधारों के रूप में देखी गई थीं।
नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट (एनएसटी), जो “आवश्यकता-आधारित, तार्किक और संतुलित निर्णय” पर आधारित है, इन सुधारों का स्वागत एक महत्वपूर्ण संरचनात्मक हस्तक्षेप के रूप में करता है। परंतु एनएसटी यह भी मूल्यांकन करता है कि क्या ये संहिताएं वास्तव में वादा किए गए परिवर्तन को पूरा करती हैं या केवल पुराने जटिल कानूनों को एक छोटे परंतु समान रूप से जटिल ढांचे में सिमटाती हैं।
1. 29 कानूनों से 4 संहिताओं तक: संरचनात्मक बदलाव, परंतु छलांग नहीं
29 श्रम कानूनों का चार संहिताओं में समेकन एक आवश्यक सरलीकरण माना गया है। दशकों तक भारत की श्रम कानून व्यवस्था एक घने, उलझे हुए और कठिन जंगल जैसी थी। NST स्वीकार करता है कि इस जंगल की छंटाई स्वागत योग्य है। लेकिन केवल रूप में सरलीकरण, आत्मा में सरलीकरण की गारंटी नहीं देता।
एनएसटी के अनुसार यह सुधार तेज छलांग नहीं बल्कि “धीमी रेंग” है। संहिताएं पुराने कानूनों को व्यवस्थित और सरल जरूर करती हैं, परंतु श्रम विनियमन की दार्शनिक आधारशिला को नहीं बदलतीं। कई क्षेत्रों में यह व्यवसाय-हितैषी दिखाई देती हैं, पर बिना बड़े श्रमिक प्रतिरोध के—यह संकेत है कि परिवर्तन क्रमिक है, क्रांतिकारी नहीं।
2. नियोक्ताओं को लचीलापन: व्यावहारिक लेकिन सीमित
छंटनी, ले-ऑफ और इकाई बंद करने की अनुमति की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कर्मचारियों तक करना सबसे चर्चित बदलावों में से है। इससे कंपनियों को कार्यबल समायोजन में अधिक लचीलापन मिलता है।
फिक्स्ड-टर्म रोजगार की अनुमति, महिलाओं को सुरक्षा प्रावधानों के साथ रात की पारी में काम करने का अधिकार आदि सकारात्मक कदम हैं और एनएसटी की लैंगिक न्याय तथा उत्पादक समावेशन की अवधारणा के अनुरूप हैं।
फिर भी एनएसटी चेतावनी देता है कि यह लचीलापन असमान है। फिक्स्ड-टर्म रोजगार का दुरुपयोग नौकरी की असुरक्षा बढ़ा सकता है। लाभों की निगरानी एक चुनौती बनी रहेगी।
3. न्यूनतम मजदूरी की पहेली: जटिलता बनी रही
भारत में अब 24 अलग-अलग न्यूनतम वेतन स्लैब हैं—चार कौशल श्रेणियां × छह कार्य स्थितियां।
एनएसटी पूछता है:
- इतनी जटिल प्रणाली की निगरानी कौन करेगा?
- क्या राज्यों में पर्याप्त क्षमता है?
- क्या इससे नए विवाद पैदा होंगे?
नीडोनॉमिक्स सादगी और पारदर्शिता का समर्थन करता है—इस दृष्टि से यह ढांचा अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता।
4. सामाजिक सुरक्षा: विस्तारित वादे, बढ़ती लागतें
गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाना एक बड़ा और सराहनीय सुधार है। अब वे पीएफ, ईएसआईसी और बीमा लाभों के पात्र हो सकते हैं।
एनएसटी इसे मानव-केंद्रित श्रम व्यवस्था के लिए आवश्यक मानता है।
परंतु कंपनियों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा—औपचारिकरण की ओर बढ़ रही कंपनियों के लिए यह लागत लगभग 50% तक बढ़ सकती है। अधिक लागत से कंपनियां औपचारिक भर्ती से पीछे हट सकती हैं—जो सुधार के उद्देश्य के विपरीत है।
5. वेतन, लाभ और श्रम प्रतिस्पर्धा
वेतन की नई परिभाषा (मूल वेतन + भत्ते) PF योगदान को कम दिखाने की प्रवृत्ति रोकती है—यह श्रमिकों के लिए लाभ है। लेकिन कंपनियों के लिए लागत बढ़ती है।
भारत का श्रम-प्रधान उद्योग कम लागत वाले श्रम पर प्रतिस्पर्धी था। अब ओवरटाइम का दुगुना भुगतान और 125 घंटे की तिमाही सीमा श्रम लागत को और बढ़ाती है।
एनएसटी चेतावनी देता है कि बिना उत्पादकता बढ़ाए श्रम लागत बढ़ने से भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा कमजोर हो सकती है।
6. निगरानी एवं मूल्यांकन: अनुपस्थित रीढ़
सुधारों की सफलता कार्यान्वयन पर निर्भर है।
एनएसटी जोर देता है कि:
- डिजिटल प्रणालियों,
- पारदर्शी शिकायत निवारण,
- मजबूत निरीक्षण तंत्र के बिना प्रावधान केवल कागज़ी रह जाएंगे।
चूंकि श्रम विषय समवर्ती सूची में है, राज्यों की भूमिका और महत्वपूर्ण हो जाती है—और एनएसटी मानता है कि यह बदलाव राज्य हस्तक्षेप को कम नहीं बल्कि बढ़ाता है।
7. एनएसटी का संतुलित मूल्यांकन: आरक्षण सहित सुधार
सकारात्मक पहलू:
• 29 कानूनों का चार संहिताओं में विलय
• नियोक्ताओं को लचीलापन
• महिलाओं को रात की शिफ्ट में काम की अनुमति
• गिग एवं प्लेटफॉर्म कर्मियों को सामाजिक सुरक्षा
• फिक्स्ड-टर्म कर्मियों को लाभ
• वेतन की स्पष्ट परिभाषा
चिंताएं:
• न्यूनतम मजदूरी की अत्यधिक जटिलता
• औपचारिक रोजगार की लागत बढ़ना
• निगरानी तंत्र अस्पष्ट
• राज्य हस्तक्षेप बढ़ने की संभावना
• फिक्स्ड-टर्म से रोजगार असुरक्षा
• श्रम-प्रधान क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धा पर खतरा
नीडोनॉमिक्स संतुलन का सिद्धांत सिखाता है—नियोक्ता के लिए अत्यधिक लचीलापन नहीं, और श्रमिकों के लिए अत्यधिक संरक्षकवाद नहीं।
8. कार्यस्थल पर लोकतंत्र: नीडोनॉमिक्स का निष्कर्ष
एनएसटी श्रम संहिताओं को “कार्यस्थल पर लोकतंत्र” की एक दिशा में उठाया गया कदम मानता है—जहाँ नियोक्ताओं को स्वतंत्रता और श्रमिकों को सुरक्षा मिले। परंतु असली सफलता लागू होने में है, न कि कागज पर लिखे जाने में। भारत को ऐसी श्रम व्यवस्था चाहिए जो: रोजगार सृजन को बढ़ावा दे, औपचारिककरण को प्रोत्साहित करे, अनुपालन को सरल बनाए और उत्पादकता और श्रमिक कल्याण दोनों बढ़ाए Iश्रम संहिताएं दिशा तो ठीक देती हैं, पर गति कम है। यह एक विकासवादी सुधार है, क्रांतिकारी नहीं। एनएसटी नीति-निर्माताओं, उद्योग, ट्रेड यूनियनों और नागरिक समाज से सतत संवाद का आग्रह करता है ताकि श्रम सुधार नीडोनॉमिक्स के सिद्धांतों—सादगी, तर्कशीलता, न्याय और जवाबदेही—के अनुरूप रहें। इसी से भारत 2047 तक विकसित, सम्मानित और सामंजस्यपूर्ण “विकसित भारत” का लक्ष्य प्राप्त कर सकेगा।
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