क्या परमाणु हथियार हर वक्त तैयार रहता है? या एक्टिवेशन में लगता है वक्त? जानिए वो खौफनाक सच जो छुपा है दुनिया की सबसे खतरनाक ताक़त के पीछे!

जीजी न्यूज ब्यूरो
नई दिल्ली,15 मई ।
कल्पना कीजिए एक देश का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री रात के दो बजे उठता है, और कुछ ही पलों में फैसला करता है — “परमाणु हमला करना है!”
क्या अगला कदम बटन दबाना होता है? क्या मिसाइलें तुरंत आसमान चीरते हुए निकल पड़ती हैं? या फिर उस फैसले को अंजाम देने में लगता है वक्त?

ये सवाल जितने खौफनाक हैं, जवाब उतने ही चौंकाने वाले!

सच ये है: दुनिया के कुछ देश — जैसे अमेरिका, रूस और चीन — के पास ऐसे परमाणु हथियार हैं जिन्हें “हाई अलर्ट” पर रखा जाता है। यानी वो कुछ ही मिनटों में लॉन्च किए जा सकते हैं। इसे कहते हैं “Launch on Warning” — मतलब जैसे ही दुश्मन के हमले का संकेत मिले, उसी पल जवाबी हमला!

पर सभी देश इस मोड में नहीं रहते। कुछ परमाणु हथियार स्टोरेज मोड में होते हैं — यानी बंकरों या विशेष गोदामों में रखे जाते हैं, उनके वारहेड्स (nuclear heads) और लॉन्च सिस्टम अलग-अलग रहते हैं। इन्हें सक्रिय करने में घंटों या कभी-कभी दिन भी लग सकते हैं।

अब आइए मान लीजिए, किसी देश के नेता ने फैसला कर लिया — “परमाणु हमला करना है!”
यहां से शुरू होता है एक सीक्रेट लेकिन बेहद जटिल और कड़ी सुरक्षा वाला प्रोसेस:

1. ऑथराइज़ेशन कोड्स:

नेता के पास एक “न्यूक्लियर बटन” नहीं, बल्कि एक कोड होता है। अमेरिका में इसे “बिस्किट और फुटबॉल” कहा जाता है। ये कोड वेरिफाई होता है — यानी यह सच में वही नेता है, ये पक्का किया जाता है।

2. दो से तीन लेयर अप्रूवल:

कई देशों में एक व्यक्ति अकेले फैसला नहीं कर सकता। कम से कम दो या तीन लोगों की अनुमति ज़रूरी होती है — जैसे रक्षा मंत्री, आर्मी चीफ आदि।

3. कमांड सेंटर से ऑर्डर:

सिग्नल जाता है — टॉप सीक्रेट चैनल्स के ज़रिए — उस यूनिट को जो लॉन्च करेगी मिसाइल या बॉम्बर। यह सब कोडेड कम्युनिकेशन में होता है, जिसे हैक करना लगभग नामुमकिन होता है।

4. लॉन्च सिस्टम एक्टिवेशन:

अगर हथियार पहले से फ्यूल्ड और असेंबल्ड है — तो सिर्फ 5-15 मिनट में लॉन्च संभव।
अगर हथियार स्टोरेज मोड में है, तो ट्रक, ट्रेन या पनडुब्बी के ज़रिए उन्हें पहले एक्टिव ज़ोन तक पहुंचाया जाता है।

जी हां! इतिहास में कई बार फॉल्स अलार्म यानी झूठे चेतावनी के चलते परमाणु हमले का खतरा मंडरा चुका है। 1983 में रूस के अधिकारी स्टेनिस्लाव पेट्रोव ने अगर संयम न दिखाया होता, तो शायद दुनिया आज खत्म हो चुकी होती!

तो सिर्फ 30 मिनट के भीतर, एक पूरा देश — या उसका बड़ा हिस्सा — खाक हो सकता है। रेडिएशन, न्यूक्लियर विंटर, करोड़ों की मौत और मानवता का विनाश — ये सब एक रियलिस्टिक परिदृश्य बन जाता है।

परमाणु हथियार कोई बटन नहीं जिससे कोई भी कभी भी हमला कर दे — लेकिन अगर नेता ने फैसला कर लिया, तो उसे अंजाम तक पहुंचने में बहुत कम वक्त लगता है। यही वजह है कि इस पूरे सिस्टम को दुनिया में सबसे बड़ा “डिटरेंस” (रोकने वाला डर) कहा जाता है।

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