क्या विजय थलपति की पॉलिटिक्स में एंट्री से डरे हुए हैं स्टालिन? नॉर्थ से नफरत की सियासत की असली कहानी

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,28 फरवरी।
तमिलनाडु की राजनीति में हलचल मची हुई है। दक्षिण भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार विजय थलपति ने जब से राजनीति में कदम रखने की घोषणा की है, तब से राज्य की सत्ताधारी पार्टी डीएमके (DMK) और मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन की चिंता बढ़ गई है। क्या स्टालिन वाकई विजय की एंट्री से डरे हुए हैं? और क्या तमिलनाडु की राजनीति में उत्तर बनाम दक्षिण की बहस को फिर से भड़काया जा रहा है?

विजय थलपति: सिनेमा से सियासत तक

तमिल सिनेमा के मेगास्टार थलपति विजय की फैन फॉलोइंग सिर्फ एक अभिनेता के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी जबरदस्त रही है। वे समाजसेवा के कार्यों से जुड़े रहे हैं और युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता किसी राजनीतिक दल से कम नहीं है।

हाल ही में उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की, जिससे तमिलनाडु की सियासत में भूचाल आ गया। विजय की छवि एक साफ-सुथरे नेता के रूप में बन रही है, जो भ्रष्टाचार और वंशवाद के खिलाफ लड़ने की बात कर रहे हैं। यह वही मुद्दे हैं, जिन पर स्टालिन की डीएमके और करुणानिधि परिवार अक्सर निशाने पर रहते हैं।

स्टालिन की चिंता: क्यों डर रही है डीएमके?

तमिलनाडु में राजनीति हमेशा से डीएमके और एआईएडीएमके (AIADMK) के बीच घूमती रही है। जयललिता के निधन के बाद एआईएडीएमके कमजोर हो गई और स्टालिन की डीएमके मजबूत स्थिति में आ गई। लेकिन विजय की एंट्री ने नया समीकरण बना दिया है।

स्टालिन के डर की तीन वजहें:

  1. युवा वोट बैंक: तमिलनाडु में विजय के करोड़ों युवा प्रशंसक हैं, जो पारंपरिक राजनीति से ऊब चुके हैं। ये वोट बैंक डीएमके के लिए खतरा बन सकता है।
  2. एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर: डीएमके सरकार पर भ्रष्टाचार और वंशवाद के आरोप लगते रहे हैं। विजय एक ‘नया विकल्प’ देकर जनता को अपनी ओर खींच सकते हैं।
  3. फिल्मी सितारों का इतिहास: तमिलनाडु की राजनीति में एम. जी. रामचंद्रन (MGR) और जयललिता जैसी फिल्मी हस्तियां सत्ता तक पहुंच चुकी हैं। विजय भी इस परंपरा को आगे बढ़ा सकते हैं।

‘उत्तर बनाम दक्षिण’ की राजनीति: असली कहानी क्या है?

तमिलनाडु की राजनीति में ‘उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत’ की बहस अक्सर उठाई जाती है। डीएमके के बयानों में कई बार हिंदी, उत्तर भारतीय राज्यों और भाजपा के खिलाफ तीखी टिप्पणियां देखने को मिलती हैं।

लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या वास्तव में तमिलनाडु उत्तर भारत से नफरत करता है, या यह सिर्फ एक राजनीतिक हथकंडा है?

नॉर्थ से नफरत की राजनीति के पीछे के कारण:

  1. भाजपा और डीएमके का टकराव: भाजपा का दक्षिण भारत में खासकर तमिलनाडु में मजबूत जनाधार नहीं है। डीएमके इसे ‘उत्तर भारतीय पार्टियों का हस्तक्षेप’ बताकर क्षेत्रीय अस्मिता का मुद्दा बनाती है।
  2. हिंदी विरोध की परंपरा: डीएमके शुरू से ही हिंदी को ‘थोपा गया भाषा’ बताकर विरोध करती रही है, जो इसे उत्तर भारतीय राजनीति से टकराव में रखता है।
  3. नई राजनीतिक रणनीति: जब भी कोई नया विपक्षी नेता उभरता है, तब उत्तर-दक्षिण विभाजन का मुद्दा उठाकर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश होती है।

क्या विजय राजनीति बदल सकते हैं?

विजय थलपति अगर सही रणनीति अपनाते हैं, तो वे तमिलनाडु की राजनीति में तीसरी ताकत बन सकते हैं। उनके पास युवाओं का समर्थन, एक ईमानदार छवि और बड़ा फिल्मी प्रभाव है। अगर वे सिर्फ दक्षिण बनाम उत्तर की राजनीति में उलझने के बजाय, विकास और भ्रष्टाचार विरोध पर फोकस करें, तो वे डीएमके और एआईएडीएमके दोनों को कड़ी चुनौती दे सकते हैं।

निष्कर्ष

स्टालिन और उनकी पार्टी के लिए विजय थलपति की एंट्री खतरे की घंटी हो सकती है। तमिलनाडु की राजनीति में हमेशा से फिल्मी सितारों का दबदबा रहा है, और विजय इस परंपरा को आगे बढ़ा सकते हैं।

‘उत्तर बनाम दक्षिण’ की राजनीति भले ही एक पुराना मुद्दा हो, लेकिन असल लड़ाई विकास और भ्रष्टाचार के खिलाफ होनी चाहिए। अगर विजय इस पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो वे तमिलनाडु की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत कर सकते हैं।

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