क्या डॉलर युग का अंत निकट है? चीन की डिजिटल युआन क्रांति से वैश्विक व्यापार का संतुलन बदलता हुआ

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,7 अप्रैल।
अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में एक ऐतिहासिक बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। दशकों से अमेरिका के डॉलर की एकछत्र बादशाहत को अब चुनौती मिलने लगी है, और इस चुनौती का नेतृत्व कर रहा है — चीन का डिजिटल युआन

जहाँ पश्चिमी देश अभी भी SWIFT जैसी पारंपरिक भुगतान प्रणालियों पर निर्भर हैं, वहीं चीन और कुछ उभरती अर्थव्यवस्थाएं अब एक नई वित्तीय दुनिया की नींव रख रहे हैं — एक ऐसी दुनिया जहाँ डॉलर की जगह डिजिटल करेंसी ले रही है, और नियम तय करने वाला केंद्र वॉशिंगटन नहीं, बीजिंग होता जा रहा है।

चीन ने डिजिटल युआन को महज़ एक घरेलू करेंसी अपडेट के रूप में नहीं, बल्कि भविष्य की वैश्विक मुद्रा के तौर पर विकसित किया है। इसे ‘mBridge’ जैसी परियोजनाओं के माध्यम से ASEAN, अफ्रीका और मध्य एशिया में SWIFT के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

अफ्रीकी देशों में चीन की पहले से ही इंफ्रास्ट्रक्चर और वित्तीय पहुंच काफी मजबूत है। ऐसे में डिजिटल युआन के ज़रिए भुगतान को बढ़ावा देना, इन देशों को डॉलर-आधारित लेनदेन से स्वतंत्र करने की दिशा में अहम कदम है।

भारत भी इस वित्तीय बदलाव में कदम ताल करता हुआ नजर आ रहा है। हाल ही में रूस के साथ रूपे और SPFS (रूस का SWIFT विकल्प) को जोड़ने के बाद, भारत ने स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है।

भारत ने रूस, ईरान, श्रीलंका और चीन सहित कई देशों के साथ डॉलर के बिना व्यापार की पहल की है। भारत का रुपे नेटवर्क, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI), और डिजिटल रूपया (CBDC) जैसे प्रयास भारत को एक स्वतंत्र वित्तीय शक्ति के रूप में स्थापित कर सकते हैं।

SWIFT प्रणाली, जो दशकों से अमेरिकी नेतृत्व वाली वैश्विक भुगतान संरचना का आधार रही है, अब भरोसेमंद नहीं रही — खासकर उन देशों के लिए जिन्हें पश्चिमी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है।

रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के बाद, मॉस्को ने अपना वैकल्पिक भुगतान नेटवर्क (SPFS) तैयार किया, और अब वह चीन, भारत और अन्य देशों के साथ इसे जोड़ने में जुटा है।

बड़ा सवाल यह है कि क्या पश्चिम इस बदलते वित्तीय परिदृश्य को अपनाएगा या वह एक ऐसी दुनिया में फंसा रह जाएगा जहाँ चीन डिजिटल भुगतान और वित्तीय विनियम तय करेगा?

चीन की रणनीति केवल मुद्रा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भू-राजनीतिक और भू-अर्थशास्त्रीय शक्ति के पुनर्वितरण की ओर संकेत करती है। अमेरिका और यूरोप को अब यह समझना होगा कि डिजिटल करेंसी सिर्फ तकनीक नहीं, बल्कि भविष्य की शक्ति संरचना है।

दशकों से अमेरिकी डॉलर तेल व्यापार, विदेशी कर्ज, अंतरराष्ट्रीय रिज़र्व और वैश्विक निवेश का आधार रहा है। लेकिन अब डिजिटल युआन, डिजिटल रूपया, और अन्य CBDCs के उदय के साथ यह प्रभुत्व डगमगाने लगा है

हालांकि, डॉलर की ताकत रातों-रात खत्म नहीं होगी, लेकिन यह निश्चित है कि उसका निर्विवाद वर्चस्व अब अतीत की बात बनता जा रहा है

विश्व अब एक ऐसे युग की दहलीज पर खड़ा है, जहाँ डिजिटल करेंसी और भुगतान के नए तंत्र वैश्विक व्यापार की दिशा तय करेंगे। चीन की अगुवाई में शुरू हुआ यह बदलाव सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक शक्ति संतुलन का परिवर्तन है।

जो देश समय रहते अनुकूलन नहीं करेंगे, वे भविष्य की वित्तीय व्यवस्था में हाशिये पर चले जाएंगे।

लेखक: वैश्विक वित्त एवं भू-राजनीति मामलों के वरिष्ठ पत्रकार
संपादक: अंतरराष्ट्रीय व्यापार और मुद्रा नीति डेस्क

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.