6 महीने बाद जेल से बाहर आए ISKCON के पुजारी चिन्मय दास! बांग्लादेश में थी गिरफ्तारी, जमानत मिलने पर फूट पड़ा भक्तों का आक्रोश और आंसू
ढाका/कोलकाता: अंतरराष्ट्रीय धार्मिक संगठन ISKCON से जुड़े एक सन्यासी की रिहाई ने पूरे दक्षिण एशिया में सियासी और धार्मिक हलचल मचा दी है। हम बात कर रहे हैं चिन्मय दास की — वही पुजारी जो पिछले 6 महीनों से बांग्लादेश की जेल में बंद थे। अब उन्हें अदालत से जमानत मिल गई है, लेकिन सवाल यह है कि एक शांतिपूर्ण संत आखिरकार किस अपराध की सजा काट रहा था?
चिन्मय दास को नवंबर में बांग्लादेश पुलिस ने “धार्मिक भावनाएं आहत करने” के आरोप में गिरफ्तार किया था। आरोप है कि उन्होंने कथित रूप से किसी सार्वजनिक प्रवचन के दौरान स्थानीय धार्मिक समूहों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई। जबकि ISKCON और चिन्मय दास के समर्थकों का कहना है कि यह एक सुनियोजित साजिश थी — हिंदू धर्म प्रचार को दबाने की कोशिश।
सूत्रों के मुताबिक, चिन्मय दास को जेल में मानवाधिकारों का उल्लंघन झेलना पड़ा। उन्हें धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार भोजन, पूजा और साधना की अनुमति नहीं दी गई। ISKCON के अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मामले को बार-बार उठाया गया, लेकिन लंबे समय तक कोई सुनवाई नहीं हुई।
बांग्लादेश की एक अदालत ने अब अंततः चिन्मय दास को सशर्त जमानत दे दी है, लेकिन मुकदमा अभी भी जारी है। उनकी रिहाई की खबर जैसे ही भारत और बांग्लादेश में फैली, ISKCON के लाखों भक्तों में खुशी की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया पर #FreeChinmoyDas ट्रेंड करने लगा, और सैकड़ों मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया गया।
ISKCON के प्रवक्ता ने तीखी प्रतिक्रिया दी:
“यह सिर्फ चिन्मय दास का मामला नहीं है, यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। अगर एक संत जेल में ठूंसा जा सकता है तो फिर आम श्रद्धालु की सुरक्षा कहां है?”
चिन्मय दास की रिहाई तो हो गई है, लेकिन उनके खिलाफ चल रही कानूनी प्रक्रिया ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संवेदनशील बना दिया है। भारत सरकार से भी इस मुद्दे पर कूटनीतिक हस्तक्षेप की मांग उठ रही है।
एक शांतिप्रिय संत, एक सीमापार जेल, और एक विवाद जिसने पूरे उपमहाद्वीप में धार्मिक चेतना को झकझोर दिया है। चिन्मय दास की जमानत सिर्फ एक राहत नहीं, बल्कि एक प्रतीक है — धार्मिक अधिकारों के संघर्ष का।
अब सवाल यही है कि क्या चिन्मय दास को मिलेगा पूरा न्याय? या फिर यह मामला भी राजनीतिक और धार्मिक दबावों की भेंट चढ़ जाएगा?
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