रवीन्द्र जैन
मप्र की सत्ता में 18 वर्ष लगातार रहने के बाद भी राजधानी स्थित सचिवालय में आग बुझाने के इंतजाम नहीं कर पाये। आज भोपाल का सतपुडा भवन एक असफल सरकार का स्मारक जैसा दिखाई दे रहा है।
लगभग 20 हजार से अधिक फाइलें जलकर स्वाहा हो गईं। करोडों का फर्नीचर जल गया। मप्र के सबसे भ्रष्ट स्वास्थ्य विभाग के भ्रष्टाचार की सभी फाइलों का अंतिम संस्कार हो गया या कर दिया गया। मप्र हाईकोर्ट ने नर्सिंग घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं। जब फाइलें ही नहीं हैं तो जांच काहे की?
आदिवासियों के नाम पर मिलने वाले बजट को डकारना मप्र के अफसरों व नेताओं का जन्म सिद्ध अधिकार है। इससे उन्हें कोई वंचित नहीं कर सकता। बहुत जांच जांच चिल्लाते थे। लो कर लो बेटा जांच। मां का दूध पीया है तो जर्जर सतपुडा भवन की चौथी पांचवीं मंजिल से उठा लाओ फाइलों की राख और ढूंढ लो भ्रष्टाचार के सबूत।
मेरे शब्दों पर लगातार तिलमिलाते भाजपाई मित्रों से निवेदन है कि सीएम पीएम के दो चार इवेंट रोककर उस पैसे से कम से कम भोपाल की सरकारी इमारतों को जलने से बचाने की व्यवस्था करिये। राजनीति तो जीवन भर करनी है। कभी इस चौपट व्यवस्था को सुधारने हमारी आवाज में आवाज मिलाओ भाई।
कल्पना करिये भोपाल में राज्य सरकार के सचिवालय आग को लेकर इतना असुरक्षित है तो मप्र के अन्य भवनों की क्या स्थिति होगी।
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