समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 03 अगस्त: 21 जुलाई को संसद के मानसून सत्र के पहले दिन ही उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। ऐसा कहा गया कि उनके कार्यकाल की अवधि 10 अगस्त 2027 तक थी, लेकिन किसी से इस्तीफे का अचानक अनुरोध किए जाने की विपक्ष द्वारा उठाई गई तीखी आलोचना चर्चा का केंद्र बनी।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने सवाल किया कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? उनका साफ उत्तर था: “यह नाम सत्ताधारी गठबंधन द्वारा पहले से तय मतदाता संरचना में तय किया जाएगा। हमें उम्मीद है कि विपक्ष से परामर्श होगा, लेकिन कौन जाने।”
#WATCH | Mumbai | On the next Vice President, Congress MP Shashi Tharoor says, "All we know is that it will be somebody whom the ruling party nominates, as we already know the composition of the electorate… We hope they consult the Opposition too, but who knows." pic.twitter.com/UQ3zznGLbq
— ANI (@ANI) August 2, 2025
उपराष्ट्रपति चुनाव प्रक्रियाः एक नज़र
भारत का उपराष्ट्रपति लोकसभा के निर्वाचित सदस्य एवं राज्यसभा के निर्वाचित और मनोनीत सदस्य द्वारा चुना जाता है। कुल 782 मतदाता होते हैं—लोकसभा 542, राज्यसभा 240। जीत के लिए कम से कम 391 मत आवश्यक होते हैं।
इस साल चुनाव प्रक्रिया 7 अगस्त से शुरू हो रही है, नामांकन की अंतिम तिथि 21 अगस्त तक, और परिणाम 9 सितंबर को घोषित होंगे
क्या NDA का जीतना तय है?
वर्तमान में एनडीए के पास लोकसभा में 293 सदस्य और राज्यसभा में 129 सदस्य हैं—कुल मिलाकर 422 वोट उनके पक्ष में हैं। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि अगर गठबंधन एकजुट रहता है, तो उनका उम्मीदवार उपराष्ट्रपति पद आसानी से जीत सकता है।
धनखड़ के कार्यकाल की खास बातें
धनखड़ ने राज्यसभा की अध्यक्षता में स्पष्टता और अनुशासन लाने की कोशिश की। उन्होंने कई महत्वपूर्ण विधेयकों को विधानसभा में संचालित किया। हालांकि उनके कार्यकाल में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के महाभियोग, विपक्ष के साथ तीखी बहस, और राष्ट्रपति सचिवालय के साथ मतभेदों की भी चर्चा रही। हाल ही में उन्हें नैनीताल के अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था।
इन सबके बावजूद, उनका इस्तीफा अचानक रहा—जिस पर विपक्ष ने अनुरोध पर इस्तीफे का आरोप लगाया।
लोकतांत्रिक परंपरा या राजनीतिक खेल?
उपराष्ट्रपति पद की महत्वाकांक्षा लोकतांत्रिक रुप से निर्वाचित संस्थानों से जुड़ी होती है। लेकिन जब चुनाव प्रक्रिया स्थापित बहुमत से प्रभावित हो जाती है, तो यह केवल नाममात्र की प्रतिष्ठा बनकर रह जाती है।
बहस अब धनखड़ की योग्यता की न होकर राजनीतिक रणनीति और प्रणालीगत अखंडता की खामियों की तरफ उन्मुख हो गयी है।
लोकतंत्र तोड़ा नहीं जाता, समझा जाना चाहिए
धनखड़ का इस्तीफा प्रेस स्वास्थ्य कारणों से दिया गया, लेकिन विपक्ष की आपत्तियों और एनडीए की मजबूत स्थिति के बीच यह सवाल उठता है—क्या यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन है? यदि उपराष्ट्रपति नए परिप्रेक्ष्य से खड़ा करूं, तो लोकतंत्र की इसकी अमरता इस बात में नहीं कि केंद्रीकरण खंबित हो, बल्कि यह सवाल उठाने की शक्ति में है।
चुनावी प्रक्रिया अगर केवल औपचारिकता बनकर रह जाती है तो लोकतंत्र कहीं गुमनाम ना हो जाए।
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