समग्र समाचार सेवा
मॉस्को, 21 अगस्त: विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गुरुवार को मॉस्को में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव से मुलाकात की। इस अहम बैठक का मुख्य उद्देश्य भारत-रूस ऊर्जा व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंधों की धमकियों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करना और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा की तैयारी करना था।
जयशंकर इस सप्ताह रूस की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं। यात्रा के दौरान उन्होंने दोनों देशों के व्यापार और आर्थिक संबंधों की देखरेख करने वाले एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय निकाय की बैठक की सह-अध्यक्षता भी की। यह बैठक ऐसे समय पर हुई जब नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच व्यापारिक तनाव लगातार बढ़ रहा है।
व्यापारिक संबंधों पर जोर
अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ को 50 प्रतिशत तक बढ़ाए जाने के बीच जयशंकर ने मॉस्को के साथ मजबूत और संतुलित व्यापारिक संबंधों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने रूसी कंपनियों से भारतीय साझेदारों के साथ गहरे स्तर पर काम करने और संयुक्त उद्यमों को आगे बढ़ाने का आह्वान किया।
रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव के साथ हुई बैठक में जयशंकर ने कहा, “हमें और अधिक करना चाहिए और अलग तरीके से काम करना चाहिए।” उन्होंने इस बात पर बल दिया कि दोनों देशों को व्यापार में विविधता लाने की आवश्यकता है।
व्यापार घाटे पर चिंता
भारत-रूस व्यापार पिछले चार वर्षों में पाँच गुना बढ़कर 2024-25 में 68 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा रूसी हाइड्रोकार्बन का है। हालांकि, जयशंकर ने बढ़ते व्यापार घाटे पर चिंता जताई।
2021 में जहाँ व्यापार घाटा 6.6 अरब अमेरिकी डॉलर था, वहीं 2024 में यह लगभग 59 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। जयशंकर ने स्पष्ट कहा कि इस असंतुलन को दूर करना आवश्यक है।
रणनीतिक साझेदारी और नवाचार का आह्वान
जयशंकर ने भारत-रूस व्यापार मंच में रूसी कंपनियों से नए निवेश और नवाचार की दिशा में कदम उठाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि एक स्थायी रणनीतिक साझेदारी का आधार केवल ऊर्जा व्यापार नहीं बल्कि नवाचार, निवेश और तकनीकी सहयोग भी होना चाहिए।
अमेरिकी टैरिफ का असर और भू-राजनीतिक चुनौती
भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में तनाव तब बढ़ा जब वाशिंगटन ने भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ दोगुना कर दिया। जयशंकर ने माना कि यह बातचीत “जटिल भू-राजनीतिक माहौल” में हो रही है, लेकिन भारत-रूस संबंध “समय-परीक्षित और मजबूत” हैं।
जयशंकर की यह यात्रा न केवल भारत-रूस संबंधों को नई दिशा देने का प्रयास है, बल्कि यह अमेरिकी दबाव के बीच नई दिल्ली की रणनीतिक स्वायत्तता को भी रेखांकित करती है। मॉस्को और नई दिल्ली के बीच ऊर्जा और व्यापार साझेदारी भविष्य की वैश्विक राजनीति में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
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