जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: एक दशक बाद लोकतंत्र की वापसी, 18 सितंबर को पहला चरण

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,17 सितम्बर। जम्मू-कश्मीर में एक दशक बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, जिसका पहला चरण 18 सितंबर को आयोजित होगा। इस चरण में कश्मीर क्षेत्र की 24 सीटों पर मतदान होगा, जो राजनीतिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण हैं। राज्य में यह चुनाव 2014 के बाद हो रहे हैं, जब आखिरी बार विधानसभा चुनाव आयोजित किए गए थे। इन चुनावों को लेकर लोगों में उत्साह और राजनीतिक सरगर्मी चरम पर है, क्योंकि यह केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहला विधानसभा चुनाव है।

चुनाव का महत्व

जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य का दर्जा 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद खत्म कर दिया गया था, और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। अब, लगभग एक दशक बाद, विधानसभा चुनाव लोकतंत्र की जड़ों को फिर से मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह चुनाव जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक भविष्य के लिए न केवल निर्णायक होगा, बल्कि राज्य के विकास, स्थिरता और सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

उम्मीदवारों की तैयारियां

चुनाव में कई प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवार मैदान में उतर चुके हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस, और अपनी पार्टी जैसे दलों ने अपनी रणनीति तैयार की है। हर पार्टी की नजर इन 24 सीटों पर है, क्योंकि यह चरण कश्मीर घाटी में राजनीतिक शक्ति संतुलन तय करेगा।

हालांकि, भाजपा के लिए यह चुनाव एक बड़ा अवसर है, क्योंकि पार्टी कश्मीर में अपने पांव जमाने की कोशिश में है। दूसरी ओर, नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP जैसे क्षेत्रीय दल अपने पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत करने के लिए पुरजोर प्रयास कर रहे हैं।

सुरक्षा व्यवस्था

चुनावों के दौरान जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है। सुरक्षा बलों और प्रशासन ने शांतिपूर्ण चुनाव सुनिश्चित करने के लिए विशेष तैयारियां की हैं। कश्मीर घाटी में आतंकवाद के खतरे को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। सीमावर्ती इलाकों और संवेदनशील क्षेत्रों में विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से बचा जा सके।

मतदाताओं का उत्साह

मतदाताओं में चुनाव को लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है। एक दशक के लंबे इंतजार के बाद उन्हें अपने क्षेत्र का प्रतिनिधि चुनने का मौका मिल रहा है। खासकर युवा मतदाता, जो पिछले चुनाव में भाग नहीं ले सके थे, वे इस बार अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए बेहद उत्सुक हैं। कई विश्लेषकों का मानना है कि इस बार का चुनाव कश्मीर की राजनीतिक दिशा को नया मोड़ दे सकता है, क्योंकि यह राज्य में एक नई पीढ़ी का नेतृत्व भी उभरने का संकेत दे रहा है।

चुनाव के मुख्य मुद्दे

चुनाव में कई मुद्दे हावी रहेंगे, जिनमें सबसे प्रमुख हैं:

  • विकास और रोजगार: अनुच्छेद 370 के हटने के बाद राज्य में विकास की गति को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। पार्टियां रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी ढांचे के मुद्दों को चुनावी एजेंडे में रख रही हैं।
  • सुरक्षा और स्थिरता: कश्मीर घाटी में शांति और स्थिरता को लेकर लगातार चिंता रही है। आतंकवाद से निपटने और स्थायी शांति बहाल करने के मुद्दे पर भी चुनाव लड़ा जा रहा है।
  • धारा 370: भले ही यह मामला कानूनी तौर पर समाप्त हो चुका हो, लेकिन कश्मीर के कई राजनीतिक दल इसे चुनावी मुद्दा बना रहे हैं। क्षेत्रीय दल अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग कर रहे हैं, जबकि भाजपा इसे एक ऐतिहासिक कदम के रूप में प्रचारित कर रही है।

निष्कर्ष

जम्मू-कश्मीर में एक दशक बाद हो रहे विधानसभा चुनाव न केवल राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ी परीक्षा हैं, बल्कि राज्य के नागरिकों के लिए भी यह एक अवसर है कि वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करें। 18 सितंबर को होने वाले पहले चरण के चुनावों से यह स्पष्ट होगा कि कश्मीर की जनता किस दिशा में आगे बढ़ना चाहती है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सी पार्टी इन 24 सीटों पर जीत दर्ज करती है और जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक भविष्य कैसा आकार लेता है।

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