जापान की कल्याण प्रणाली और भारत के लिए इसकी प्रासंगिकता: बदलाव की पुकार

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,5 जनवरी।
जापान की कल्याण प्रणाली ने सरकारी लाभ और आत्मनिर्भरता की भूमिका पर एक नई बहस को जन्म दिया है। जहां कई देश मुफ्त सेवाएं जैसे कि रसोई गैस, बिजली और राशन प्रदान करते हैं, वहीं जापान का दृष्टिकोण व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर आधारित है: “अपनी जरूरतों के लिए काम करो या इसके बिना जियो।”

इस सोच को पाँच महत्वपूर्ण वक्तव्यों में संक्षेपित किया गया है, जिन्हें भारत में लागू करने पर विचार किया जाना चाहिए:

  1. सम्पत्ति का पुनर्वितरण समृद्धि नहीं ला सकता: “आप गरीबों को अमीर बनाने के लिए अमीरों को गरीब नहीं बना सकते,” यह बताता है कि केवल धन का पुनर्वितरण समग्र आर्थिक वृद्धि नहीं लाता।
  2. मुफ्त सेवाओं की कीमत: “जो कुछ भी एक व्यक्ति बिना काम किए प्राप्त करता है, उसके लिए किसी और को काम करना पड़ता है और उसके प्रयास का इनाम नहीं मिलता,” यह मुफ्त सरकारी योजनाओं में असमानता को रेखांकित करता है।
  3. मुफ्त सरकारी मदद की सच्चाई: “दुनिया में कोई भी सरकार अपने नागरिकों को कुछ भी मुफ्त नहीं दे सकती जब तक कि वह इसे किसी अन्य नागरिक से न ले,” यह सुझाव देता है कि मुफ्त कल्याण सेवाएं करदाताओं द्वारा वित्तपोषित होती हैं, जो आर्थिक गतिविधि को प्रभावित कर सकती हैं।
  4. सम्पत्ति विभाजन से नहीं बढ़ती: “आप सम्पत्ति को विभाजित करके नहीं बढ़ा सकते,” यह नीतियों का समर्थन करता है जो सम्पत्ति सृजन को प्रोत्साहित करती हैं, न कि केवल जनसंख्या के बीच उसे बांटने को।
  5. उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव: “जब आधे लोग कुछ मुफ्त में प्राप्त करते हैं, तो वे उसके लिए कभी काम नहीं करेंगे, और बाकी आधे जो मुफ्त लाभ प्रदान करने के लिए काम करते हैं, वे हतोत्साहित महसूस करेंगे,” जो एक ऐसी प्रणाली की ओर इशारा करता है जहां कड़ी मेहनत का महत्व कम हो जाता है।

इन विचारों के समर्थक तर्क देते हैं कि ऐसी कल्याण प्रणाली किसी भी राष्ट्र की समृद्धि को धीरे-धीरे कमजोर कर सकती है। वे कहते हैं कि समाज को ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जहां हर नागरिक अपनी मेहनत से जो कुछ भी कमाता है, उसके लिए काम करता है, जिससे सभी के लिए निष्पक्षता और प्रेरणा सुनिश्चित हो सके।

यह दृष्टिकोण भारत जैसे देश में प्रासंगिक हो सकता है, जहां कल्याण योजनाएं अक्सर राजनीतिक लाभ और अल्पकालिक समाधान के रूप में देखी जाती हैं। क्या भारत जापान की तरह आत्मनिर्भरता और जिम्मेदारी की दिशा में कदम उठा सकता है? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है जो देश के विकास और समृद्धि के लिए विचारणीय है।

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.