समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 22 जुलाई: देश की न्यायपालिका एक बार फिर से सुर्खियों में है। दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित हुए जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। मानसून सत्र के पहले दिन, संसद के दोनों सदनों में 200 से ज्यादा सांसदों ने उनके खिलाफ नोटिस दाखिल किया। विपक्ष और कुछ सत्तारूढ़ दलों के सांसदों ने मिलकर यह कदम उठाया है, जिससे इस मामले ने गंभीर राजनीतिक और कानूनी स्वरूप ले लिया है।
कमेटी करेगी जांच
लोकसभा अध्यक्ष जल्द ही एक तीन-सदस्यीय जांच समिति की घोषणा कर सकते हैं, जो जस्टिस वर्मा के आचरण की विस्तृत जांच करेगी। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश, एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद को शामिल किए जाने की संभावना है। यह समिति तय करेगी कि आरोपों में कितना दम है और क्या महाभियोग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना चाहिए
पूर्व में भी जजों पर लगे हैं आरोप
यह पहली बार नहीं है जब किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की कवायद हुई है। इससे पहले 1993 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी. रामास्वामी पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगा था, लेकिन वह लोकसभा में पास नहीं हो सका। इसके बाद जस्टिस सौमित्र सेन, एस.के. गंगेले, जे.बी. पारदीवाला, सी.वी. नागार्जुन रेड्डी और यहां तक कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ भी महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई थी, लेकिन कोई भी मुकाम तक नहीं पहुंच सकी।
क्या है पूरा मामला?
जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम तब विवादों में आया जब 14 मार्च 2025 को उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर आग लग गई। आग बुझाने पहुंचे दमकल विभाग के कर्मचारियों को घर के स्टोर रूम में भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिली। सामने आए वीडियो फुटेज में 500 रुपये के जले हुए नोटों के बंडल साफ दिखाई दिए। इस घटना के बाद उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन तब से उन पर निगाहें टिकी हुई थीं।
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