पंजाब में डेरा जमाए केजरीवाल, क्या अब पूरी तरह सुपर CM की भूमिका में आ गए हैं?

समग्र समाचार सेवा
चंडीगढ़,4 अप्रैल।
आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दिनों लगातार पंजाब का दौरा कर रहे हैं। कभी प्रशासनिक बैठकों में नजर आते हैं, तो कभी मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ मंच साझा करते हुए। हाल के दिनों में जिस तरह केजरीवाल पंजाब में सक्रिय हुए हैं, उसने यह सवाल खड़ा कर दिया है — क्या वह अब राज्य में “सुपर CM” की भूमिका निभा रहे हैं?

पिछले कुछ महीनों में अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में न केवल बार-बार दौरे किए, बल्कि सरकारी योजनाओं के शुभारंभ और घोषणाओं में भी वे भगवंत मान के साथ प्रमुखता से मौजूद रहे हैं। चाहे वह बिजली सब्सिडी की बात हो, स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार या फिर स्कूल शिक्षा की समीक्षा — हर जगह केजरीवाल की मौजूदगी दिख रही है।

AAP सरकार की अब तक की कार्यप्रणाली में यह दुर्लभ है कि किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री, किसी अन्य राज्य की प्रशासनिक बैठकों में इतनी नियमितता से भाग लें। सूत्रों के अनुसार, कई बार वरिष्ठ अधिकारियों की मीटिंग में भी केजरीवाल की उपस्थिति देखी गई है, जिससे विपक्ष को हमला करने का मौका मिला है।

पंजाब कांग्रेस और शिअद (अकाली दल) के नेताओं ने बार-बार आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान सिर्फ नाम के लिए मुख्यमंत्री हैं, असली फैसले दिल्ली से लिए जा रहे हैं। कांग्रेस नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा, “पंजाब की सरकार अब दिल्ली से रिमोट कंट्रोल हो रही है। भगवंत मान की भूमिका सिर्फ एक प्रचारक की रह गई है।”

AAP नेतृत्व का कहना है कि अरविंद केजरीवाल पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हैं और उनकी भूमिका पार्टी के विजन को जमीन पर उतारने की है। पार्टी का दावा है कि पंजाब की जनता ने AAP को बदलाव के लिए वोट दिया है और यह बदलाव “साझे नेतृत्व” से ही संभव है।

राजनीतिक विश्लेषक इस पूरे घटनाक्रम को रणनीतिक दृष्टिकोण से भी देख रहे हैं। पंजाब AAP के लिए एकमात्र पूर्ण बहुमत वाला राज्य है, और 2024 के आम चुनाव से पहले पार्टी यहां अच्छा प्रदर्शन दिखाकर खुद को राष्ट्रीय विकल्प के रूप में पेश करना चाहती है। ऐसे में केजरीवाल की मौजूदगी स्वाभाविक भी मानी जा सकती है, लेकिन यह प्रशासनिक संतुलन पर सवाल जरूर खड़े करती है।

कुछ जानकारों का कहना है कि किसी भी राज्य के मामलों में बाहरी व्यक्ति का इतनी गहराई से शामिल होना संविधान के संघीय ढांचे के लिहाज से सवाल खड़े करता है। हालांकि, जब तक राज्य सरकार स्वयं उसे आमंत्रित कर रही है, तब तक यह “अंदरूनी राजनीतिक मामला” ही माना जाएगा।

अरविंद केजरीवाल की पंजाब में बढ़ती सक्रियता ने राजनीति में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह पार्टी की रणनीति का हिस्सा है, या फिर मुख्यमंत्री पद के संस्थागत अधिकारों का ह्रास? फिलहाल जवाब स्पष्ट नहीं है, लेकिन इतना तय है कि पंजाब की राजनीति में अब दिल्ली की छाया और भी गहरी होती जा रही है।

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