केशवराव जेधे ने सामाजिक समानता आंदोलन को महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचाया- वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता उल्हासदादा पवार
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 22अप्रैल। केशवराव जेधे ने महाराष्ट्र के कस्बों में किसान, अशिक्षित लोगों तक सामाजिक समानता आंदोलन को प्रभावशाली ढंग से सरल भाषा में पहुंचा कर समाज प्रबोधन किया, यह प्रतिपादन वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता तथा पूर्व विधायक उल्हासदादा पवार ने 21 अप्रैल को किया.
महान सत्यशोधक नेता केशवराव जेधे की 125 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में ‘केशवराव जेधे तथा सामाजिक समानता के आंदोलन’ विषय पर वे आज 32 में व्याख्यान में बोल रहे थे. विदित हो कि महाराष्ट्र सूचना केंद्र (एम् आई सी) की ओर से महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की गई है.
श्री पवार ने आगे कहा कि बापूराव जेधे अप्पाराव जेधे के सामाजिक आंदोलन की विरासत को आगे ले जाते हुए केशवराव तथा तात्यासाहेब जेधे ने महाराष्ट्र में सामाजिक समानता की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. गैर -ब्राह्मण दल, हरिजन सेवक संघ, हरिजन मंदिर प्रवेश, किसान संघ, किसान कामगार दल, (शेतकरी कामगार पक्ष) आदि के माध्यम से जेधे ने उल्लेखनीय कार्य किया है. उनकी पहल से महाराष्ट्र के समाज कारण में जेधे- गाडगिल, जेधे –मोरे, जेधे –खाडिलकर, जेधे -जावलकर जैसी जोड़ियां बनी और इनके द्वारा किया गया कार्य राज्य के इतिहास में बहुमूल्य सिद्ध हुआ. महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करके तात्यासाहब ने किसान एवं अशिक्षितों को सामाजिक समानता आंदोलन में सहभागी करवाया और उनका प्रभावशाली ढंग से प्रबोधन किया.
सामाजिक समानता की लड़ाई और जेधे का प्रवेश
महाराष्ट्र में सामाजिक समानता की लड़ाई का इतिहास प्रशस्त है. भागवत संप्रदाय के संत शिरोमणि ज्ञानेश्वर से लेकर संत तुकाराम, संत गाडगे, संत टुकड़ोंजी महाराज तक संतों ने आध्यात्मिक माध्यम से समानता के संघर्ष के लिए गौरवशाली काम किया है.
श्री पवार ने बताया कि छत्रपति शिवराय के समय में उत्कृष्ट राज प्रस्तावित हुआ था. सामान्य लोगों से लेकर भटके विमुक्त लोगों तक सभी को सन्मान के साथ जीने का अवसर प्राप्त था. फिर भी कुछ छुपे हुए कार्य चल रहे थे परंतु छत्रपति शिवराय के नेतृत्व में समाज में शांति बनी हुई थी. आगे चलकर पेशवाई के राज में पंडित पंथ हावी होने के प्रयास करता रहा और दैनिक जीवन में लोगों के साथ अन्याय करने की कोशिश चलती रही. उसके पश्चात अगले चरण में इस संघर्ष का रूपांतर ब्राह्मण गैर -ब्राह्मण संघर्ष में हुआ. महात्मा फुले ने समानता की लड़ाई शुरू की और सत्यशोधक आंदोलन शुरू कर दलित, शोषित, वंचित, दबे हुए लोग, सताए हुए तथा शिक्षा और मानवता के अधिकार नकारे गए समाज के घटकों के लिए संघर्ष किया. उनके इस सत्यशोधक आंदोलन में आगे ब्राह्मण और गैर -ब्राह्मण आंदोलन का रूप धारण किया और इसका नेतृत्व जेधे कर रहे थे.
सामाजिक समानता के आंदोलन, सामाजिक संघर्ष, समानता, जाति प्रथा निर्मूलन तथा विषमता को परास्त करने के लिए महाराष्ट्र के लड़ाई में तात्यासाहेब जेधे का नाम अव्वल स्थान पर रहा. स्वाधीनता आंदोलन में कार्य करते हुए तात्यासाहेब ने ब्राह्मण गैर ब्राह्मण आंदोलन का नेतृत्व भी किया. इस काम में उन्होंने तथा उनके सहयोगी जावलकर ने लोकमान्य तिलक का भी वैचारिक विरोध किया, यह भी श्री पंवार ने बताया. उन्होंने आगे कहा कि वर्ष 1926 – 27 में महात्मा गांधी ने पुणे में जेधे मेंशन में रहकर तात्यासाहेब के गैर -ब्राह्मण दल को कांग्रेस में विलीन करने की विनती की, जो जेधे स्वीकार की और इस प्रकार स्वाधीनता आंदोलन को ताकत दी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस से लेकर कर्मवीर भाउराव पाटील, इंदौर के तुकोजीराव होलकर जैसे सभी लोग जेधे मेंशन से संपर्क बनाए हुए थे. राजर्षि छत्रपति शाहू तथा तात्यासाहेब जेधे के संबंध काफी अच्छे थे. छत्रपति शाहू पुणे के दौरे पर आते, तब जेधे मेंशन पर ही रुकते. इससे उनके घनिष्ठ संबंध का पता चलता है.
तात्यासाहेब ने पत्रकारिता में भी योगदान दिया है. उन्होंने दैनिक कैवारी का संपादन किया. काका साहब गाडगिल ने दैनिक मन्वंतर में तात्यासाहेब पर एक लेख लिखा. लोकमान्य तिलक तथा न. चि. केलकर ने जेधे और जवलकर के खिलाफ लिखा तब इन दोनों ने भी तिलक और केलकर के विरुद्ध अपनी भूमिका प्रस्तुत की. इसके पश्चात दोनों भी पक्ष कांग्रेस में शामिल हुए और उनका संघर्ष समाप्त हुआ. लोकमान्य तिलक के साथ वैचारिक संघर्ष था परंतु उन्होंने उनका व्यक्तिगत तौर पर विरोध नहीं किया. पुणे के केसरवाड़ा में गोवा मुक्ति लड़ाई के अध्यक्ष के रूप में तथा संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन समिति के अध्यक्ष जेधे ने अपनी सभाओं का डंका पीटा. इसके पश्चात महाराष्ट्र के समाज कारण में जेधे- गाडगिल, जेधे –मोरे, जेधे- खाडिलकर तथा जेधे -जवालकर जैसी जोड़ियां प्रसिद्ध हुई, जिसने राज्य के सामाजिक आंदोलन को उचित दिशा दी और इन सभी जोड़ियों में एक नाम सांझा है और वह है ‘तात्यासाहेब जेधे’.
श्री पवार ने आगे कहा कि महात्मा गांधी ने शुरू किए हुए हरिजन सेवक संघ में तात्यासाहेब ने काम किया और वह इस संघ के महाराष्ट्र अध्यक्ष के रूप में भी कार्य कर चुके. इसी संघ के माध्यम से 1926 – 27 में पुणे में पार्वती मंदिर और फिर नासिक के कालाराम मंदिर में हरिजन प्रवेश को लेकर हुए संघर्ष में वे नेतृत्व कर रहे थे. उनके साथ काकासाहेब गाडगिल तथा डा बाबासाहब आंबेडकर के सहयोगी बापूसाहेब राजभो भी शामिल थे. वर्ष 1927 में भारत रत्न डा बाबासाहेब आंबेडकर में महानडी में चवदार तल्याचे सत्याग्रह शुरू किया जिसमें तात्यासाहेब जेधे सक्रिय रुप से सहभागी हुए.
श्री पवार ने कहा कि तात्यासाहेब का संघर्ष देहाती और कस्बों में किसान और अशिक्षित लोगों तक पहुंचा. उन्होंने काकासाहेब गाडगिल के साथ समूचे महाराष्ट्र का दौरा कर लोगों को स्वाधीनता संघर्ष और सामाजिक समानता की बात बताई और इस लड़ाई को मजबूत किया. अशिक्षित और किसानों को एकत्रित कर उन्होंने यह काम करते हुए कांग्रेस पार्टी के तहत शेतकरी संघ निर्माण किया. आगे चलकर मतभेद के चलते उन्होंने शेतकरी कामगार पक्ष गठित किया. वरिष्ठ नेता यशवंतराव चव्हाण की विनंती पर उन्होंने इस दल को कांग्रेस में विलीन किया और समानता की लड़ाई को ताकत दी.
श्री पवार ने कहा कि 1929 के सत्याग्रह में जेधे को गिरफ्तार किया गया. फिर 1942 के चले जाओ आंदोलन में भी वह सहभागी हुए थे और उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया था. तात्यासाहेब जेधे के सामाजिक आंदोलन के विभिन्न चरणों की समीक्षा करने पर उन्होंने 65 वर्ष के जीवन में महाराष्ट्र को सामाजिक समानता के द्वार पर लाकर खड़े करने की बात पता चलती है. महाराष्ट्र के इस सामाजिक आंदोलन का गौरवशाली इतिहास ध्यान में रखते हुए हर एक को सामाजिक समानता के मूल्य अपनाने चाहिए जिससे महाराष्ट्र तथा देश के विकास में अपना योगदान दे सके, ऐसा भी श्री पवार ने कहा.
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