कोल्हापुर ने भारतीय सिनेमा की नीव रखी- डा कविता गगरानी

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 10मई। कोल्हापुर ने भारतीय फिल्म उद्योग को कलात्मक और तकनीकी स्थिति प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अर्थात कोल्हापुर ने भारतीय फिल्म उद्योग की नींव रखी है, यह प्रतिपादन फिल्म अध्ययन करता अध्यापक डा कविता गगरानी ने किया।
नई दिल्ली के महाराष्ट्र सूचना केंद्र की ओर से महाराष्ट्र हीरक महोत्सव व्याख्यान श्रृंखला में कविता गगरानी फिल्म इंडस्ट्री को कोल्हापुर का योगदान विषय पर 48 वा व्याख्यान दे रही थी। उन्होंने आगे कहा कि फिल्म इंडस्ट्री और कोल्हापुर का योगदान इस विषय के दो भाग किए जा सकते हैं। एक -मराठी फिल्म इंडस्ट्री और दूसरा भारतीय फिल्म इंडस्ट्री मे कोल्हापुर का योगदान। इसी प्रकार फिल्मों के भी दो भाग होते हैं एक- मूक फिल्म और दूसरा बोलती फिल्म, मुक फिल्म 1913 से लेकर 1932 तक की है। इसमें भारत का पहला मुक फिल्म राजा हरिशचंद्र, दादा साहब फाल्के ने निर्माण किया। जबकि टॉकीज फिल्म 1932 के बाद से आज तक जारी है।
मराठी फिल्म इंडस्ट्री के भी दो भाग किए जा सकते हैं पहला -1932 से 1960 और फिर महाराष्ट्र निर्माण के बाद -1960 से लेकर आज तक।  डा गगरानी ने आगे कहा कि वर्ष 1932 से 1960 के बीच मराठी फिल्म इंडस्ट्री में कई प्रयोग किए गए। इसमें मनोरंजन, सामाजिक, वैचारिक विषयों पर मूक तथा टॉकी प्रकार के सिनेमा बने।  50 का दशक मराठी फिल्म निर्माताओं की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा। वर्ष 1953 में साने गुरुजी के कथा पर आधारित श्यामची आई फिल्म अत्रे ने निर्देशित किया जिसे राष्ट्रपति पदक से गौरवान्वित किया गया। इसके पश्चात अत्रे ने ऐतिहासिक महात्मा फुले फिल्म भी बनाई। वर्ष 1959 में अनंत माने ने सांगते आयका इस मराठी फिल्म से पूरी नगरी को एक अलग मोड़ दिया। इस फिल्म में बुगडी माझी सांडली ग गीत पर जयश्री गडकर के प्रदर्शन को दर्शक आज तक नहीं भूल पाए हैं।

70 के दशक में पिंजरा तथा सोंगाड्या नामक मराठी फिल्मों को दर्शकों ने काफी सराहा। इसी दशक में दादा कोंडके ने दर्शकों को सिनेमाघरों की ओर आकर्षित किया। देवकीनंदन गोपाला, सिहासन, जैत रे जैत, सामना जैसे वैचारिक फिल्म भी निर्माण हुए। महाराष्ट्र सरकार ने 1975 में टेक्स योजना जारी की। फिर मनोरंजन कर माफ किया गया और आज के दौर में मराठी सिनेमा को अनुदान भी दिया जाता है, ऐसा भी डा गगरानी ने बताया। उन्होंने आगे कहा कि 80 के दशक में पारिवारिक विनोदी मराठी फिल्में अधिक संख्या में आई। इनके साथ ही शापित, उंबरठा, मुलगी झाली हो, कलत न कलत, अक्रीत, अरे संसार संसार जैसे फिल्म निर्माण किए गए। 21 वी शताब्दी के शुरुआत में श्वास नामक मराठी फिल्म ने सचमुच में मराठी सिने जगत को ऑक्सीजन प्रदान किया। इसके पश्चात दहावी फ, पक पकाक, टिंग्या, वलू, किल्ला, कायद्याचे बोला, देऊल, कोर्ट, कास्व, निशानी, डावा अंगठा, सुंभरान, बालक- पालक, मी शिवाजी राजे बोलतोय, वास्तु पुरुष जैसे अलग-अलग विषयों पर सिनेमा निर्माण हुए।

फ्लैशबैक कोल्हापुर फिल्म इंडस्ट्री का

फ्लैशबैक तकनीक कोल्हापुर में विकसित हुई। इसके साथ ही हिंदी सिनेमा को सामाजिक विषयों पर फिल्म निर्माण करने की प्रेरणा मराठी सिनेमा ने ही दी। सामाजिक पाश नाम से मराठी में पहला वास्तविक फिल्म बनाया गया। इस फिल्म में फ्लैशबैक तकनीक का उपयोग हुआ और इसकी शुरुआत बाबूराव पेंटर ने की।

बाबूराव पेंटर का फिल्म इंडस्ट्री को मौलिक योगदान

कला महर्षि बाबूराव पेंटर ने फिल्म निर्माण के लिए देखा हुआ सपना साकार किया। वह एक अच्छे चित्रकार तथा तकनीकी क्षेत्र में विशेषज्ञ थे। 1 दिसंबर 1917 में उन्होंने महाराष्ट्र फिल्म कंपनी शुरू की। इस कंपनी का पहला कलात्मक फिल्म सौरंदरी था। इस फिल्म की विशेषता यह थी कि बाबूराव पेंटर ने बनाए हुए कैमरे से इसकी पूरी शूटिंग की गई, अर्थात स्वदेशी कैमरे से। लोकमान्य तिलक ने इस सिनेमा को देखने के पश्चात पेंटर को सिनेमा केसरी खिताब से नवाजा।

श्री पेंटर के फिल्म इंडस्ट्री को दिए हुए योगदान में कैमरे को गति देने वाला स्पीड मीटर, फिल्म सुखाने के लिए केमिकल वाला ड्रम, लकड़ी ड्रम प्रिंटिंग मशीन, जॉइनिंग मशीन, रिफलेक्टर का उपयोग, शूटिंग के लिए कृत्रिम बिजली का उपयोग, शामिल है। फिल्मों के विज्ञापन करने के लिए पेंटर में पोस्टर्स की शुरुआत की और आगे चलकर सभी ने इसको स्वीकार किया। चेहरे की नजाकत को प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने गॉज का उपयोग किया। साथ ही चमत्कारी दृश्यों के लिए शूटिंग करते समय बाजू में श्वेत पर्दा लगा कर इस तरह से शूटिंग करते कि उस शॉट को स्पेशल इफेक्ट प्राप्त होते। सिंहगड नाम की फिल्म में कीचक के वध की शूटिंग उन्होंने उत्कृष्ट तरीके से की, जिसके कारण मुंबई के गवर्नर ने बाबूराव पेंटर के विरुद्ध मनुष्य वध का अपराध दर्ज कर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया। तब उन्होंने उनको मुंबई ले जाकर शूटिंग कैसे की है यह बताया।

सही मानो में इस फिल्म से सेंसर की शुरुआत हुई, यह कहा जाए तो गलत सही होगा। सिंहगड फिल्म ने सिने जगत इतिहास रचा है। जिसमें से एक यह था कि इस फिल्म को मनोरंजन टैक्स लगाया गया। वी शांताराम ने 1 जून 1929 को प्रभात और फिर राजकमल फिल्म कंपनी स्थापित की। इन कंपनियों के माध्यम से उन्होंने उत्कृष्ट मराठी और हिंदी फिल्में दिए। हिंदी में पहला टॉकी फिल्म आलम आरा में मुख्य भूमिका अदा करने वाले विट्टल बारगीर भी कोल्हापुर से ही थे। आगे चलकर फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें ‘इंडियन डग्लस’ के नाम से पहचाना गया। वी शांताराम ने सौरंदरी फिल्म जैसे टॉकी फिल्म को रंगीन रूप में प्रदर्शित किया और यह पहला रंगीन फिल्म था। इसके साथ ही उन्होंने इस फिल्म की ध्वनि मुद्रिका भी बनाई है।

स्टूडियो की नगरी कोल्हापुर

समय के चलते अनेक परिवर्तन होते गए और कोल्हापुर की परंपरा को अखंडित रखने के लिए और यहां के कलाकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से राजा छत्रपति राजाराम में कोल्हापुर सिनेटोन और उनकी बहन अक्का साहब महाराज रे शालिनी सिने टोन की शुरुआत की। आज के जयप्रभा और शालिनी सिनेटोन और स्टूडियो कोल्हापुर संस्थान द्वारा निर्माण किए गए हैं। भालजी पेंढारकर ने प्रभाकर स्टूडियो, वी शांताराम ने देवास के राजा से शालिनी सिनेटोन स्टूडियो लीज पर लिया और इस स्टूडियो का नाम शांता किरण रखा। आगे चलकर कोल्हापुर में राज सिनेटोन, छत्रपति सिनेटोन ,प्रभात सिनेटोन, श्याम सिनेटोन, श्याम शिवाजी सिनेटोन, माया सिनेटोन, लता मंगेशकर के सुरेल चित्रण और दिनकर पाटील के उदय कला चित्र, अनंत माने के चेतना चित्र जैसे फिल्म कंपनियां कोल्हापुर में आज भी जिंदा है।

पुणे में स्टूडियो बंद होने के पश्चात निर्माता कोल्हापुर की दिशा में बड़े। फिल्म निर्माण के लिए कोल्हापुर में कई निर्माता काम करते रहे। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, कलाकार, तकनीकी उपलब्धता के लिए यह एक पसंदीदा केंद्र बना। इस बीच कई परिवर्तन देखने को आए परंतु मराठी फिल्म उद्योग में फिर से जीवित होकर दर्शकों को आकर्षित करने का काम शुरू किया। डा गगरानी ने बताया कि कोल्हापुर फिल्म इंडस्ट्री के योगदान की समीक्षा करते समय अनेक व्यक्तिमत्व कोल्हापुर द्वारा देने की बात सामने आती है। इनमें गायिका लता मंगेशकर, वी शांताराम, बालजी पेंढारकर, बाबूराव पेंटर, सुधीर फड़के, गदी माडगुडकर, दत्ता डावजेकर, जगदीश खेबुडकर, त्यागराज पेंढारकर, जी काम्बले, आशुतोष गोवारिकर, उषा यादव, अनंत काले, ऑस्कर विजेता भानु अथैया और कई अनेक नाम भी सम्मिलित है।

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के शोमैन माने जाने वाले राज कपूर ने भी अपने करियर की शुरुआत कोल्हापुर से ही की थी। उन्होंने पेंढारकर के वाल्मीकि नामक फिल्म में नारद की छोटी सी भूमिका अदा की थी जिसके लिए उन्हें मानधन भी दिया गया। डा गगरानी ने बताया कि महात्मा गांधी के हत्या के पश्चात जयप्रभा स्टूडियो को तहस-नहस कर दिया गया, परंतु वह फिर से उठ खड़ा हुआ और वहां पर फिल्म निर्माण का काम भालजी पेंढारकर ने शुरू किया। उन्होंने यह भी कहा कि उस समय लोगों में इस तरह का जुनून पाया जाता था।

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