लाहौल-स्पीति का बिजली प्रोजेक्ट: 2009 में आवंटित 320 मेगावाट का प्रोजेक्ट अब तक अधूरा क्यों?

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,19 नवम्बर।
हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, 2009 में तत्कालीन हिमाचल सरकार ने सेली हाइड्रो कंपनी को 320 मेगावाट का बिजली प्रोजेक्ट आवंटित किया था। इस प्रोजेक्ट को लाहौल-स्पीति जिले में स्थापित किया जाना था, जो अपनी ऊंची पर्वत चोटियों और कठिन भूगोल के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, लगभग 15 साल बीत जाने के बाद भी यह प्रोजेक्ट अधूरा है और इसके पूरा होने की कोई स्पष्ट समयसीमा नहीं है।

क्या था प्रोजेक्ट का उद्देश्य?

सेली हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना था। यह प्रोजेक्ट जल विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में राज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा था। लाहौल-स्पीति, जो हिमाचल के सबसे दुर्गम क्षेत्रों में से एक है, में इस प्रोजेक्ट से न केवल बिजली उत्पादन होता बल्कि क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास में भी योगदान होता।

अधूरा प्रोजेक्ट: कारण क्या हैं?

  1. भूगोल और कठिनाईपूर्ण स्थलाकृति:
    लाहौल-स्पीति जैसे दुर्गम क्षेत्र में निर्माण कार्य हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है। यहां की ठंडी जलवायु, ऊंचाई और बर्फबारी ने प्रोजेक्ट के निर्माण में देरी की।
  2. पर्यावरणीय चिंताएं:
    इस क्षेत्र में बेशकीमती वन्यजीव और पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है। परियोजना शुरू होते ही पर्यावरणविदों ने इसका विरोध किया। उनका मानना था कि प्रोजेक्ट से स्थानीय पर्यावरण और जैव विविधता को गंभीर खतरा हो सकता है।
  3. स्थानीय विरोध:
    स्थानीय समुदायों ने भी इस प्रोजेक्ट का विरोध किया। उन्हें डर था कि इससे उनके पारंपरिक जीवन और आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  4. वित्तीय और प्रशासनिक बाधाएं:
    प्रोजेक्ट में बार-बार वित्तीय देरी और प्रशासनिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा। परियोजना की लागत में वृद्धि और सरकारी प्रक्रियाओं की धीमी गति ने इसे और जटिल बना दिया।
  5. केंद्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल की कमी:
    इस प्रोजेक्ट में केंद्र और राज्य सरकार के बीच सही समन्वय नहीं बन पाया। इससे फंडिंग और अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों में देरी हुई।

क्षेत्रीय विकास पर प्रभाव

इस प्रोजेक्ट के अधूरे रहने से लाहौल-स्पीति क्षेत्र को वह लाभ नहीं मिल पाया, जिसकी उम्मीद थी।

  • रोजगार के अवसर: प्रोजेक्ट पूरा होने पर स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर खुल सकते थे।
  • बिजली आपूर्ति: हिमाचल और आसपास के राज्यों को बिजली आपूर्ति में सुधार होता।
  • पर्यटन: क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता।

क्या है आगे की राह?

हिमाचल सरकार ने हाल ही में इस प्रोजेक्ट की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की है।

  • पर्यावरणीय समाधान: सरकार पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए परियोजना के डिजाइन में बदलाव पर विचार कर रही है।
  • स्थानीय समुदाय की भागीदारी: प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए स्थानीय लोगों की सहमति और उनके सुझावों को शामिल किया जाएगा।
  • फंडिंग में सुधार: राज्य सरकार केंद्र सरकार और निजी निवेशकों के साथ मिलकर फंडिंग के मुद्दों को हल करने का प्रयास कर रही है।

निष्कर्ष

लाहौल-स्पीति का सेली हाइड्रो प्रोजेक्ट हिमाचल प्रदेश के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना थी, लेकिन 15 वर्षों में यह परियोजना असफल प्रबंधन, पर्यावरणीय चिंताओं और प्रशासनिक बाधाओं का शिकार हो गई। अगर इसे सही दिशा में आगे बढ़ाया जाए, तो यह न केवल हिमाचल की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा, बल्कि इस दुर्गम क्षेत्र के विकास में भी योगदान देगा। सरकार और स्थानीय समुदाय के बीच बेहतर समन्वय इस प्रोजेक्ट को नई दिशा दे सकता है।

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