L&T चेयरमैन का ’90 घंटे काम’ बयान विवादों में, सैलरी 51 करोड़ रुपये: कर्मचारियों से 534 गुना ज्यादा!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,10 जनवरी।
लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के चेयरमैन ए.एम. नाइक हाल ही में अपने एक बयान को लेकर सुर्खियों में आ गए हैं। उन्होंने कहा था कि हर व्यक्ति को हफ्ते में 90 घंटे काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए, जिससे सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर उनकी काफी आलोचना हो रही है। उनके इस बयान ने वर्क-लाइफ बैलेंस और कर्मचारियों के अधिकारों पर एक नई बहस छेड़ दी है।

सैलरी में भारी असमानता

ए.एम. नाइक की सालाना सैलरी 51 करोड़ रुपये है, जो उनके औसत कर्मचारियों की सैलरी से 534 गुना अधिक है। यह आंकड़ा कॉर्पोरेट दुनिया में वेतन असमानता का एक उदाहरण है। जहां एक ओर कर्मचारियों को अपनी मेहनत के बदले सीमित वेतन मिलता है, वहीं कंपनी के शीर्ष अधिकारी करोड़ों की सैलरी लेते हैं।

बयान पर विवाद क्यों?

नाइक का सुझाव था कि भारत को आर्थिक रूप से और आगे बढ़ाने के लिए लोगों को अतिरिक्त मेहनत करनी चाहिए। उन्होंने जापान और जर्मनी जैसे देशों का उदाहरण दिया, जहां लोग लंबे समय तक काम करने के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, उनके इस बयान को कई लोगों ने कठोर और अव्यावहारिक बताया।

आलोचकों का कहना है कि भारत में पहले से ही लंबे वर्किंग आवर्स, कम वेतन, और वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी बड़ी समस्याएं हैं। ऐसे में ’90 घंटे काम’ करने का सुझाव आम कर्मचारियों पर और ज्यादा दबाव बढ़ा सकता है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं

उनके बयान पर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोगों ने इसे एक अमीर और शक्तिशाली व्यक्ति की वास्तविकता से कटे हुए विचारों का उदाहरण बताया। वहीं, कुछ ने सवाल उठाया कि क्या नाइक खुद अपने कर्मचारियों के लिए बेहतर वर्किंग कंडीशन्स सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करेंगे।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

विशेषज्ञों का मानना है कि लंबी वर्किंग आवर्स न केवल कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, बल्कि इससे उत्पादकता भी घट सकती है। इसके बजाय, कंपनियों को बेहतर तकनीक और कार्यप्रणाली अपनाने की जरूरत है जिससे कम समय में बेहतर परिणाम मिल सकें।

निष्कर्ष

ए.एम. नाइक का ’90 घंटे काम’ वाला बयान भारत के कॉर्पोरेट जगत में असमानता और कर्मचारियों के अधिकारों को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। जहां एक ओर देश को आर्थिक विकास के लिए मेहनत की जरूरत है, वहीं कर्मचारियों के स्वास्थ्य और वेलफेयर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

क्या ऐसी सोच वाकई भारत को आगे बढ़ाएगी, या फिर यह सिर्फ शीर्ष अधिकारियों की सोच का प्रतिबिंब है? यह बहस आने वाले समय में और गहराई ले सकती है।

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