लुधियाना उपचुनाव: संजीव अरोड़ा की किस्मत से तय होगा केजरीवाल का सियासी भविष्य, AAP ने झोंकी पूरी ताकत
समग्र समाचार सेवा,
लुधियाना, 13 जून: पंजाब की लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट पर आगामी 19 जून को होने वाला उपचुनाव न केवल एक विधायक के चयन तक सीमित है, बल्कि यह आम आदमी पार्टी (AAP) और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक भविष्य की दिशा भी तय करने वाला माना जा रहा है।
2022 के चुनाव में AAP के विधायक रहे गुरप्रीत सिंह बस्सी गोगी के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। अब इस उपचुनाव में पार्टी ने अपने राज्यसभा सांसद और उद्योगपति संजीव अरोड़ा को मैदान में उतारा है। उनके लिए खुद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मोर्चा संभाल लिया है।
केजरीवाल के लिए ‘करो या मरो’ का मुकाबला
लुधियाना उपचुनाव में संजीव अरोड़ा की जीत महज एक सीट बचाने की बात नहीं है। अगर वे जीतते हैं, तो वह राज्यसभा सीट खाली करेंगे, जिससे अरविंद केजरीवाल को संसद भेजने का रास्ता खुलेगा। लेकिन यदि हार होती है, तो केजरीवाल को 2029 तक राजनीतिक वनवास भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि पंजाब या दिल्ली में कोई राज्यसभा सीट फिलहाल खाली नहीं हो रही है।
इसी रणनीति के तहत अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की है कि यदि अरोड़ा जीतते हैं तो 20 जून को उन्हें मंत्री बनाया जाएगा। साथ ही उन्होंने लुधियाना की जनता से अपील की है कि “आप जीत दिलाइए, हम मंत्री बनाएंगे।”
कड़ा मुकाबला, प्रतिष्ठा दांव पर
लुधियाना पश्चिम सीट पर मुकाबला बेहद रोचक है।
- कांग्रेस ने पूर्व विधायक भारत भूषण आशु को मैदान में उतारा है।
- शिरोमणि अकाली दल (SAD) से एडवोकेट उपकार सिंह घुम्मन चुनाव लड़ रहे हैं।
- बीजेपी से जीवन गुप्ता,
- और अकाली दल (अमृतसर) से नवनीत कुमार गोपी ने ताल ठोकी है।
इस तरह, पांच प्रमुख उम्मीदवारों के बीच सीधा सियासी संग्राम छिड़ गया है।
AAP की साख का इम्तिहान
2024 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में मिली हार और राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव कम होने के बाद यह उपचुनाव आप के लिए इज्जत का सवाल बन चुका है। पार्टी इस सीट को अपने प्रभाव क्षेत्र के रूप में देखती रही है, और अब यहां की हार सीधा संदेश देगी कि पंजाब में आप की पकड़ ढीली हो रही है।
लुधियाना पूरी तरह शहरी विधानसभा क्षेत्र है, जहां AAP को युवाओं और मध्यमवर्ग से समर्थन की उम्मीद रही है। अब अगर संजीव अरोड़ा जैसे मजबूत उम्मीदवार जीत नहीं पाते हैं, तो पार्टी की नीतियों, नेतृत्व और चुनावी रणनीति सब पर सवाल खड़े होंगे।
तीन साल तीन महीने का हिसाब
पंजाब में आप सरकार को तीन साल तीन महीने हो चुके हैं। इस उपचुनाव को पंजाब की जनता के सामने एक फीडबैक रिफ्लेक्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है कि जनता ने पार्टी की नीतियों को कितना समर्थन दिया है। इसे लेकर पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है—घर-घर प्रचार, मोहल्ला मीटिंग्स, और सोशल मीडिया पर आक्रामक अभियान चलाए जा रहे हैं।
लुधियाना उपचुनाव ने एक स्थानीय चुनाव को राष्ट्रीय सियासी संघर्ष का रंग दे दिया है। संजीव अरोड़ा की जीत, केवल AAP की साख या पंजाब की सत्ता में उसकी पकड़ नहीं, बल्कि अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक पुनरुत्थान की भी कुंजी बन सकती है। यही वजह है कि केजरीवाल इस चुनाव को लेकर “अब नहीं तो कभी नहीं” की तर्ज पर सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं।
Comments are closed.