*रवीन्द्र जैन
मंत्री-प्रमुख सचिव में तू-तड़ाक
मप्र में एक कबीना मंत्री और उनके विभागीय प्रमुख सचिव के बीच मामूली मनमुटाव अब तू-तड़ाक पर पहुंच गया है। विभाग के कामकाज को लेकर मंत्री की पटरी प्रमुख सचिव से नहीं बैठ रही है। मजेदार बात यह है कि विभाग की कुछ महत्वपूर्ण फाईलों पर प्रमुख सचिव ने मंत्री को दिखाए बिना निर्णय कर लिए। इस मुद्दे पर मंत्री ने अपनी तीखी आपत्ति व्यक्त की तो प्रमुख सचिव तू-तड़ाक पर उतर गईं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि कौन सी फाईल मंत्री को भेजनी और कौनसी नहीं यह मुझे तय करना है। विभाग की कई योजनाएं भारत सरकार को आर्थिक मदद के लिए भेजी जानी है। इस मुद्दे पर प्रमुख सचिव ने अपने स्तर पर पत्राचार किया। मंत्री को इसकी कोई जानकारी नहीं लगने दी। इसी को लेकर यह विवाद तू-तड़ाक पर पहुंचा है। मंत्री ने अपना पक्ष मुख्यमंत्री के सामने रखकर प्रमुख सचिव को हटवाने की मुहिम चला दी है। प्रमुख सचिव महिला हैं और मंत्री को पहले दिन से ही भाव नहीं दे रही हैं।
अपनों से परेशान, इसलिए छोड़ा मैदान
मप्र कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरूण यादव ने खंडवा लोकसभा उपचुनाव लड़ने से अचानक मना क्यों किया? दरअसल इसके दो अहम कारण सामने आ रहे हैं। पहला – कांग्रेस में सज्जनसिंह वर्मा, रवि जोशी, झूमा सोलंकी और विजय लक्ष्मी साधौ जैसे कमलनाथ समर्थक नेताओं ने यादव के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया था। दिल्ली में शिकायत भिजवाई गई कि तीन बार हारने वाले को टिकट न दिया जाए। दूसरा – अरूण यादव लगातार पार्टी से मांग कर रहे थे कि यदि उन्हें चुनाव लड़ना है तो कम से कम कांग्रेस के मंडल अध्यक्ष उनकी पसंद के बनाये जाएं, लेकिन कमलनाथ ने यह स्वीकार नहीं किया। ऐसे में यादव ने मैदान छोड़ना ही उचित समझा। फिलहाल वे कांग्रेस में ही रहेंगे, लेकिन कब तक इसकी कोई गारंटी नहीं है !
स्पीकर की गजब की कार्यशैली
मप्र में लंबे समय बाद विधानसभा को ऐसा स्पीकर मिला है जिसकी कार्यशैली को लेकर विधानसभा के लगभग 700 कर्मचारी अधिकारी लंबे समय बाद खुश दिखाई दे रहे हैं। अभी तक स्पीकर विधानसभा सचिवालय के अधिकांश निर्णय वरिष्ठ अधिकारियों की इच्छा से करते थे। लेकिन मौजूदा स्पीकर गिरीश गौतम की कार्यशैली सबसे हटकर है। वे सबसे ज्यादा समय कार्यालय में बैठ रहे हैं। सचिवालय के प्रमुख सचिव से लेकर चपरासी तक की समस्या को न केवल सुनते हैं बल्कि उसका निराकरण भी तत्काल करने की कोशिश करते हैं। विधानसभा का कोई भी कर्मचारी कभी भी स्पीकर से मिल सकता है। खास बात यह है कि कर्मचारी अपनी समस्या लेकर स्पीकर के पास पहुंचते हैं तो वह बिना दबाव के बात कर सके इसलिए स्पीकर अपने कक्ष से सभी को बाहर निकालकर अकेले में समस्या सुनते हैं। स्पीकर की इस कार्यशैली के कारण ही विधानसभा के कर्मचारी उन्हें “महादेव” कहकर बुलाने लगे हैं।
पटवारी से परेशान कांग्रेस और भाजपा
अलीराजपुर जिले की जोबट तहसील के एक पटवारी की लोकप्रियता ने भाजपा और कांग्रेस दोनों की चूलें हिलाकर रख दी हैं। आदिवासी समाज से आने वाले नीतेश अलावा जोबट में पटवारी हैं। वे अपने समाज के लिए भी संघर्ष करते हैं। पिछले दिनों जयस के बैनर पर नेमावर, मानपुर और कसरावद में हुए प्रदर्शन में नीतेश शामिल हुए थे। इससे नाराज होकर अलीराजपुर कलेक्टर ने नीतेश को निलंबित कर दिया। उनके निलंबन के खिलाफ हजारों आदिवासियों ने एसडीएम कार्यालय पर प्रदर्शन किया। नीतेश की पत्नी भी पटवारी हैं और उनके साले भाजपा के मंडल अध्यक्ष हैं। जोबट विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने हैं। जयस ने नीतेश की लोकप्रियता को भुनाने के लिए उन्हें चुनाव में उतारने का निर्णय लिया है। नीतेश ने भी पटवारी पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है। नीतेश की संभावित उम्मीदवारी से कांग्रेस और भाजपा दोनों के समीकरण बिगड़ सकते हैं। भाजपा का प्रयास है कि नामांकन की अंतिम तारीख तक नीतेश का इस्तीफा मंजूर न हो। दूसरी ओर कांग्रेस भी नीतेश और उनकी टीम को अपने पाले में करने के लिए हरसंभव प्रयास में जुट गई है।
कन्हैया के साथ अंशुल भी हुए कांग्रेसी
इस सप्ताह कम्युनिस्ट नेता कन्हैया कुमार के कांग्रेस में आने की खबर राष्ट्रीय स्तर पर छाई रही। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि कन्हैया के साथ मप्र के अंशुल त्रिवेदी ने भी कांग्रेस की सदस्यता ली है। मप्र के वरिष्ठतम पत्रकारों में शुमार उमेश त्रिवेदी के बेटे अंशुल त्रिवेदी भोपाल के रहने वाले हैं। पिछले लंबे समय से वे दिल्ली में रहकर कन्हैया कुमार से भी जुड़े रहे हैं। अंशुल का झुकाव कम्युनिस्ट की बजाए कांग्रेस की ओर रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में अंशुल ने भोपाल में कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह की चुनावी रणनीति बनाने का काम किया था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता नहीं ली थी। अंशुल ने कन्हैया कुमार के साथ दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की और उन्हें संविधान के प्रति भेंट करते हुए राहुल गांधी के हाथों कांग्रेस की विधिवत सदस्यता ले ली है।
इस नियुक्ति में कमलनाथ की नहीं चली!
मप्र में कांग्रेस के अधिकांश निर्णय कमलनाथ की इच्छा से होते हैं, लेकिन मप्र भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर कमलनाथ के सुझाव को दरकिनार कर दिया गया है। कमलनाथ चाहते थे कि एनएसयूआई का प्रदेश अध्यक्ष ग्वालियर चंबल संभाग से हो और ज्योतिरादित्य सिंधिया का कट्टर विरोधी हो। उन्होंने ग्वालियर में सिंधिया को बेशर्म के फूल भेंट करने वाले एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष सचिन द्विवेदी का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित किया था। लेकिन दिल्ली ने रीवा के मंजुल त्रिपाठी को एनएसयूआई का अध्यक्ष घोषित कर दिया है। खबर आ रही है कि मंजुल को अध्यक्ष बनवाने में निवृत्तमान अध्यक्ष विपिन बानखेड़े की अहम भूमिका रही है। वानखेड़े का मानना था कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष महाकौशल से हैं। युवा कांग्रेस अध्यक्ष मालवा से हैं। इसलिए एनएसयूआई अध्यक्ष का पद विन्ध्य क्षेत्र को दिया जाना चाहिए। आने वाले समय में कमलनाथ ग्वालियर के सचिन द्विवेदी को किसी अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से उपकृत कर सकते हैं।
और अन्त में…
बुंदेली बौछार वाले पत्रकार सचिन चौधरी को तो आप जानते ही होंगे। अपनी मेहनत और लगन से सचिन ने बुंदेली बौछार को मप्र के कई रीजनल समाचार चैनलों से आगे पहुंचा दिया है। बुंदेली बौछार के फेसबुक पर 5 लाख से ज्यादा फालोअर और यूट्यूब पर सवा दो लाख सस्क्राइबर हैं। सचिन चौधरी अब एक नया और बड़ा प्रयोग करने वाले हैं। समाचार के साथ ही अब बुंदेली में मनोरंजन की नई दुनिया बसाने की तैयारी है। “बौछार” के नाम से पहला बुंदेली ओटीटी प्लेटफार्म लांच होने जा रहा है। जिसमे एचडी क्वालिटी की बुंदेली फ़िल्में, वेब सीरीज, नाटक,लोक कला संस्कृति की प्रस्तुतियां शामिल होंगी। सचिन का सपना बुंदेली को भोजपुरी के जैसा बड़ा बाजार के रूप में स्थापित करने का है। ख़ास बात यह है कि यह पूरी योजना किसी फाइनेंसर के बल पर नहीं बल्कि जन सहयोग से करने का इरादा है। इसके तहत बीते 4 महीने में दमोह, ओरछा,झांसी ,भोपाल में कई फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। इनमे चंद्रशेखर आजाद पर बनी फिल्म में कई ऐतिहासिक खुलासे भी होंगे। इस युवा पत्रकार को एडवांस में बधाई।
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