मद्रास विधान परिषद ने शासन के एक पूर्ण प्रतिनिधि लोकतांत्रिक स्वरूप के बीज बोए थे जो स्वतंत्रता के बाद महसूस किए गए: राष्ट्रपति कोविन्द

समग्र समाचार सेवा
चेन्नई , 3 अगस्त। भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द ने कहा कि मद्रास विधान परिषद ने शासन के पूर्ण प्रतिनिधि लोकतांत्रिक स्वरूप के बीज बोए थे, जो स्वतंत्रता के बाद महसूस किए गए। वे आज (2 अगस्त, 2021) चेन्नई में मद्रास विधान परिषद की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने इस अवसर पर तमिलनाडु विधान सभा के परिसर में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. कलाईनार एम. करूणानिधि के एक चित्र का भी अनावरण किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि मद्रास विधान परिषद ने कई दूरदर्शी कानून बनाए और अपने शुरुआती दशकों में कई बदलाव भी किए। लोकतंत्र की यह भावना राज्य विधानमंडल के लिए आगे का रास्ता दिखाने वाली रोशनी की तरह बनी हुई है। यह कहना गलत नहीं होगा कि यह विधानमंडल कई प्रगतिशील कानूनों का स्रोत बन गई, जिन्हें बाद में समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए पूरे देश में दोहराया गया। इस विधानमंडल को गरीबों के उत्थान और सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए शासन पर ध्यान केंद्रित करके लोकतंत्र की जड़ों को पोषित करने का श्रेय दिया जा सकता है। इस क्षेत्र में सकारात्मक व तर्कसंगत सामग्री के आस-पास राजनीति व शासन विकसित हुआ, जो हाशिये पर रहने वालों के कल्याण को लक्षित करता था। देवदासी प्रथा का उन्मूलन, विधवा पुनर्विवाह, विद्यालयों में मध्याह्न भोजन और भूमिहीनों को कृषि भूमि का वितरण कुछ क्रांतिकारी विचार थे, जिन्होंने समाज को बदल दिया। कल्याणकारी राज्य की अवधारणा ने इस विधानमंडल में गहरी जड़ें जमा ली हैं, यहां कौन शासन कर रहा है, ये कोई मायने नहीं रखता है।

तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. कलाईनार एम. करूणानिधि को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि ‘कलाईनार’ ने अपने शुरुआती किशोरावस्था में ही अपना राजनीतिक जीवन शुरू कर दिया था, जब भारत आजादी के लिए संघर्ष कर ही रहा था, और हाल ही में वे हमें छोड़ गए। जब एक युवा लड़का आदर्शों से प्रेरित हुआ, तो उन्होंने दलितों के लिए काम करना शुरू कर दिया, उस समय भारत बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, लंबे समय तक विदेशी शासन के तहत शोषण किया गया, गरीबी और अशिक्षा से पीड़ित था। जब उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली, तब वे इससे जरूर संतुष्ट होंगे कि इस धरती व इसके लोगों ने सभी मोर्चों पर आश्चर्यजनक प्रगति और विकास किया है। उन्हें इसलिए भी संतुष्टि हुई होगी कि उन्होंने राज्य के लोगों व राष्ट्र की भी सेवा में अपने लंबे और रचनात्मक जीवन के प्रत्येक सक्रिय क्षण को बिताया।

तमिल साहित्य और सिनेमा में करूणानिधि के योगदान का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि बहुत कम राजनीतिक नेता हैं, जो भाषा को लेकर बहुत ही भावुक हैं। करूणानिधि के लिए उनकी मातृभाषा पूजा का विषय थी। राष्ट्रपति ने कहा कि निस्संदेह तमिल मानव जाति की सबसे महान और सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है। पूरा विश्व अपनी समृद्ध विरासत पर गर्व महसूस करता है। लेकिन करुणानिधि थे जिन्होंने इसे एक शास्त्रीय भाषा के रूप में आधिकारिक मान्यता दिया जाना सुनिश्चित किया। कलाईनार अपनी तरह के एक नेता थे। वह हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के शख्सियतों के आखिरी कड़ी में से एक थे।

 

 

राष्ट्रपति ने कहा कि जब देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, वे राष्ट्रीय आंदोलन के शख्सियतों को याद करना चाहेंगे। हमारा राष्ट्रीय आंदोलन 1857 से, या उससे भी पहले से लेकर 1947 तक विस्तृत है। इन दशकों के दौरान रूढ़िवादी और क्रांतिकारी थे। उस समय शांतिवादी और संविधानवादी थे। उनके पास अलग-अलग तरीके और अलग-अलग दृष्टिकोण थे। लेकिन वे सभी मातृभूमि की भक्ति में एकजुट थे। हर किसी ने अपने तरीके से भारत माता की सेवा करने के लिए प्रयास किया। एक नदी में एक साथ आने वाली विभिन्न सहायक नदियों की तरह वे सभी राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए एक साथ आए।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने गांधीजी में एक संगम पाया। महात्मा गांधी ने हमारी संस्कृति और परंपरा में जो सबसे अच्छा था, न केवल उसे मूर्त रूप दिया, बल्कि उन्होंने कई पश्चिमी विचारकों के विचारों में भी सुधार किया। उनके साथ देशभक्तों-वकील, विद्वान, समाज सुधारक, धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं के साथ अन्य लोगों की एक सेना थी। उनमें से हर कोई अतुलनीय था। डॉ. बी. आर. आंबेडकर के बारे में सोचिए: इतने महान और दूरदर्शी! लेकिन इतिहास की पुस्तकों में लिखे गए प्रत्येक नाम के बीच ऐसे अनगिनत लोग थे, जिनके नाम कभी दर्ज ही नहीं किए गए। उन्होंने आराम, यहां तक कि करियर और कभी-कभी अपने जीवन तक का त्याग कर दिया, जिससे हम एक स्वतंत्र राष्ट्र में जी सकें।

राष्ट्रपति ने कहा कि उन कुछ दशकों ने धरती पर देखी गई अब तक की कुछ महानतम पीढ़ियों को जन्म दिया। उनके प्रति, यह देश हमेशा ऋणी बना रहेगा। उनके लिए, जो एकमात्र श्रद्धांजलि हम दे सकते हैं, वह यह कि हम उनके जीवन और उनके आदर्शों से लगातार प्रेरित होते रहें। उन्होंने हमें स्वतंत्रता का उपहार दिया लेकिन इसके साथ हमें जिम्मेदारी भी दी। उनका दृष्टिकोण साकार हो रहा है, लेकिन यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। जिस तरह से उन सभी ने अपनी-अपनी भूमिका निभाई थीं, उसी तरह हम सभी को राष्ट्र को सफलता को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी।

राष्ट्रपति ने विशेष तौर पर युवाओं से वर्तमान को समझने और भविष्य में उन्नति के लिए अतीत से निरंतर जुड़े रहने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी, सुब्रमण्यम भारती और अन्य लोगों के जीवन से उनके मस्तिष्क में उठने वाले सवालों के जवाब मिल जाएंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि वे पाते हैं कि युवा पीढ़ी हमारे हाल के इतिहास में अधिक से अधिक रुचि रखती है। वे उन्हें आशान्वित करते हैं कि ज्ञात और अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों के साथ शुरू किया गया कार्य आगे भी जारी रहेगा। अपने ज्ञान के साथ वह भारत, इस सदी में विश्व का मार्गदर्शन करेगा।

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