आज देश की आर्थिक राजधानी महाराष्ट्र की स्थिति के मद्देनजर हिन्दू ह्रदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे की आत्मा कराह रही होगी.क्या सोच रहे होंगे? सच में,यदि आज शिव सेना के संस्थापक श्री बालासाहेब ठाकरे जिंदा होते तो क्या महाराष्ट्र के पालघर में ऐसी अमानवीय दुर्दांत घटना घटती.क्या देश में उन दो प्रतिष्ठित साधुओं व उनके वाहनचालक की ऐसी नृशंस हत्या होती? ये एक बहुत बड़ा सवाल है महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री व बालासाहेब के प्रिय पुत्र उद्धव ठाकरे के प्रशासन और कार्य शैली पर.क्यों मजबूर है शिव सैनिक उद्धव जी.क्या उन्हें अपने पिता जी के नसीहते याद नहीं? क्या वह अपने राष्ट्रवादी पिताश्री के उपदेशों को हवा में उड़ा दिया? क्या वह सिंह गर्ज़ना के लिए विख्यात अपने पिता बालासाहेब जी के नसीहतो को इतनी जल्दी भूल गए.इसका क्या कारण हो सकता है-निहित स्वार्थों से प्रेरित राज सत्ता या और कुछ? सत्ता बड़ा या राष्ट्र ? शिव सेना का वो हिंदुत्व का शेर कहाँ गया? ये सारे सवाल शिव सेना सरकार के लिए चिंता व चिंतन की अहम् मसला है.समग्र तौर पर देखा जाये तो महाराष्ट्र में साधु मर रहे है,अपराधी हंस रहे है और उद्धव ठाकरे राज सुख में मस्त दिख रहे है.राजनीति प्रथम है,राष्ट्र-राज्य सेवा बाद में.समय मिलने के बाद.
20 अप्रैल 2020 को उन साधुओं के नृशंस हत्या के 5 दिन बीत गए.वो घटना घटी थी,16 अप्रैल 2020 के रात करीब 10 बजे.परन्तु सरकार जागी 4 दिनों के बाद.भला हो सोशल मीडिया का.जिसकी वजह से देश को इस नृशंस घटना की जानकारी मिल सकी.सूत्रों की माने तो इस घटना को किसी तरह अंदर ही अंदर दबाकर महाराष्ट्र सरकार के गृह मंत्रालय व आला पुलिस अफसरों द्वारा रफा-दफा करने की असफल कोशिश की गयी थी.परन्तु सोशल मीडिया के जाल ने उन सभी तंत्रों बुरी तरह बेनकाब कर दिया.बेनकाब हुए-महाराष्ट्र की पुलिस,सत्ता पक्ष,सभी राजनीतिक दलों के साथ हिन्दू विरोधी मरकज़ तरह की राजनीति.पालघर जिले के गडचिलने गाँव का जो वीडियो वायरल हुआ है उसमे एक आवाज़ जोर जोर से आ रही है,मारो शोयब मारो.यदि महाराष्ट्र के विधान परिषद् सदस्य कपिल पाटिल की माने तो उस वीडियो में से वो आवाज़ किसी शोयब आदिवासी की हो सकती है??!!
उस नृशंस हत्या में मारे गए बेरहमी से पीट पीट कर मारे वे दोनों साधू मुंबई के कांदिवली इलाके में रहते थे. दोनों में से एक का नाम 35 वर्षीय महाराज सुशील गिरी जी और दुसरे का नाम 70 वर्षीय कल्प वृक्ष गिरी जी था.दोनों वाराणसी के पञ्चदश जुना अखाडा से जुड़े थे.दोनों मुंबई से सूरत अपने गुरु के अंतिम यात्रा में शामिल होने जा रहे थे.उन्हें क्या पता था कि गुरु की अंतिम यात्रा के दर्शन के पूर्व उन दोनों की वह यात्रा अंतिम होगी.उन दोनों के साथ उनका वाहनचालक भी मारा गया.
इस मामले में सबसे पहले तो पुलिस के वो कर्मचारी व अफसर जिम्मेदार हैं,जिन्होंने उन साधुओं को हाईवे से जाने से रोक दिया.वजह कोरोना की तालाबंदी बताई गयी थी.लेकिन उस वीडियो क्लिप में पुलिस वालो ने कैसे उन दोनों साधुओं को भीड़ के हवाले मरने को छोड़ दिया,इससे पुलिस में व्यापत अमानवीय पहलुओ का पता चलता है.मेरे विचार से इस नृशंस साधु हत्या कांड के लिए पालघर जिले के पुलिस महकमा के साथ जिला अधिकारी को भी बर्खास्त किया जाना चाहिए.परन्तु मेरे को प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख के बयान पूरी तरह बचकाना नजर आता है,जिसके तहत उन्होंने एक शुद्ध सरकारी बयान देकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली.महज़ दो पुलिस वाले को सिर्फ निलंबित कर मामले को निपटाने की राह पर चल पड़े है.हालांकि हिंदुत्व के राह पर चलकर आजकल सत्ता मोह की वजह से मुलायम हिन्दू कहे जाने वाले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा.मामले को राज्य के सीबीसीआईडी को सौंप दिया गया है.देखना आगे क्या होता है-कुछ कारवाई या सिर्फ सरकारी खानापूर्ति.!?
एक बात काबिले गौर है कि यदि उन दोनों मृतकों के नाम अखलाक या पहलु खान होता तो आज पूरे देश में अजीबोगरीब स्वस्फूर्त क्रांति देखने को मिलती.कांग्रेस,एनसीपी,वामदल सहित सभी विपक्षी दल हाय तौबा मचाने से बाज़ नहीं आते.फिर एक दौर शुरू होता-अवार्ड वापसी का या पूरे देश में धरना-प्रदर्शन का कोहराम मचता.देश में सबसे ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस व उसके सहयोगी दल पूरा देश अपने सर पर उठा लेते.
परन्तु आज ऐसा लग रहा है कि सब कुछ शांत है.स्थिति नियंत्रण में है.जैसे कि कुछ दिनों पहले मुंबई के बांद्रा मस्जिद के पास 20 हजार से ज्यादा लोगो को झूठ बोलकर,बहकाते हुए एक जगह जमा करवा कर प्रधानमंत्री मोदी जी के तालाबंदी घोषणा की धज्जियाँ उड़ाई.ये भी गौर करने लायक तथ्य हैं.बाद में हंगामा होने पर महज़ कुछ लोगो को बलि का बकरा बना कर राजकीय कर्तव्यों की खानापूर्ति कर दी गयी.गौरतलब है कि बांद्रा इलाके में शिव सैनिक मुख्यमंत्री उद्धव जी ठाकरे का स्थायी निवास भी है.वहां भी गृह मंत्री अनिल देशमुख का गैर जिम्मेदाराना बयान देखा व सुना गया.ये भी आश्चर्य है कि जब उन इलाकों में कई ड्रोनो की मदद से आकाशीय सर्वेक्षण हो रहा था, .चप्पे चप्पे पर पुलिस मुस्तैद की बात कही गयी थी.फिर भी इतने इंतज़मातो के बावजूद वो हज़ारो की संख्या में लोग एक जगह पर कैसे जमा हो गए? आजतक उसका जवाब नहीं मिल सका है महाअगाडी की सरकार से.मामला साफ़ था –केंद्र की मोदी सरकार की कोरोना मुक्त भारत के प्रयास में तालाबंदी का मखौल बनवाना.जिसमे वे सफल हुए बताये जाते हैं.पर मोदी सरकार चुप क्यों है?सिर्फ केद्रीय मंत्री अमित शाह ने महाराष्ट्र सरकार से सफाई मांगी थी.जैसे 16 अप्रैल के साधु हत्या काण्ड में भी केन्द्रीय गृह मंत्री ने प्रदेश के मुख्यमंत्री से रिपोर्ट मांगी है.
वैसे तो उत्तर प्रदेश के सन्यासी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी साधुओं की हत्या पर शोक जत्ताते हुए दोषियों को सख्त सजा दिलवाने की मांग की.महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने भी उद्धव सरकार को कोसते हुए कड़ी सजा दिलवाने की मांग की हैं.सांसद स्वामी साक्षी महाराज ने भी तालाबंदी के बाद देश भर के साधुओं के साथ पालघर मार्च की घोषणा की है.साधुओं की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी महाराज ने भी घोषणा किया है कि तालाबंदी के बाद सभी अखाड़ों के साधुओं व नागाओं की फौज महाराष्ट्र कूच करेगी.आचार्य नरेन्द्र गिरी जी ने आरोप लगाया-महाराष्ट्र में अब रावण राज आ गया है, उद्धव ठाकरे का राज नहीं है रावण राज है.
नरेंद्र गिरी महाराज ने आरोप लगाया कि पुलिस ने साधुओं को मारने के लिए सुपुर्द कर दिया.ऐसी वीभत्स हत्या, ऐसी दर्दनाक मौत पर मुझे आश्चर्य है कि यह मनुष्य नहीं कर सकता.यह राक्षस हैं और राक्षस लोग ही ऐसा कर सकते हैं.
अभी तक की प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार पालघर काण्ड में 110 लोगो को हिरासत में लिया गया है.जिनमे 9 नाबालिग हैं.सम्बन्धित पुलिस वालो को निलंबित कर दिया गया है.लेकिन इस शाही कारवाई से कुछ होगा.मारने वालों में लोग ज्यादातर एक खास समुदाय से थे.यदि मै उस नमकहराम व राष्ट्र द्रोही समुदाय का नाम लेता हूँ तो सफेद कमीज पहने कुछ कानून विद या राजनेता या मीडिया के नाम पर उन धर्मो के दलाली करने वाले पत्रकारों व पक्षकारो का एक समूह उसे एक नया तूल दे सकते हैं.क्योकि मेरे को लगता है कि पुँराने नीति निर्माताओं के तुष्टिकरण की कुनीतिओं की वजह से 85 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी वाले हिन्दू समाज को दुसरे दर्जे की तरह जीने को मजबूर होना पड़ रहा हैं.ऐसा क्यों? हमारा हिन्दू समाज चुप क्यों रहे? हमारी खता क्या है ? क्यों हम हर वक़्त की तरह चुप रहे? मुझे तो महात्मा कहे जाने वाले मोहन दास करमचंद गाँधी के उस तथाकथित नीतियों पर भी गुस्सा और तरस आता है,जिसके तहत उन्होंने हिंदुस्तान के लाखो हिन्दू परिवारों को मरवा डाला.साथ देने वाले उनके साथ पंडित नेहरु जैसे नेता रहे.
कहते हैं लम्हों ने खता की,सदियों ने सज़ा पाई.खता की महात्मा गाँधी और नेहरु की जुगलबंदी ने.उन दोनों महापुरुषों ने कई ऐतिहासिक गलतियाँ की.जिसका खामियाजा भारत आज़ादी के 72 वर्षो के बाद भी देश से विदेश तक के कई फ्रंटों पर झेलने को विवश हैं.उन ऐतिहासिक गलतियों में से पंडित नेहरु द्वारा चीन को थाली में परोसकर UNSC की सदस्यता दिया जाना और उनकी पुत्री प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा एक संविधान संशोधन कर देश को सेक्युलर और समाजवादी का नाम देना शामिल हैं.जो सम्विधान के मूल भावनाओ के खिलाफ था.इसके अलावा लम्बी सूची है उन गलतियों की,जिसको क्रमवार तरीके से प्रधानमंत्री मोदी दूर करने में जुटे हुए हैं.
परन्तु भला हो 2014 में आई प्रधानमंत्री श्री मोदी की भाजपा सरकार का,जो 67 सालों की ऐतिहासिक गलतियों को एक-एक कर सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.इस करीब 6 वर्षों के छोटे से शासन काल ने करीब 500 साल पुराना बाबरी मस्जिद मसला को न्यायालय के माध्यम से ही सुलझाया गया.71 साल से जम्मू-कश्मीर का उलझाया गया मसला एक झटके में संसद की मदद से सुलझाया गया.मुस्लिम समाज में सदियों से चला आ रहा तीन तलाक मसले को भी कानून के दायरे में लाया गया. समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियत्रंण लो देश में लागू करने के उपक्रमों पर कार्य जारी है.वैसे तो लम्बी फेहरिस्त है मोदी सरकार के जन सरोकारों के कार्यों का.अभी तो पारी शुरू हुयी है.देश तेजी से बदल रहा है और बदलेगा.
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