मालेगांव ब्लास्ट केस पर नहीं होगी अपील, 7/11 में अलग रुख से सियासी तूफान

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 6 अगस्त: महाराष्ट्र सरकार के विधि एवं न्याय विभाग से आरटीआई में मिली जानकारी से यह बड़ा खुलासा हुआ है कि सरकार 2008 के मालेगांव बम धमाके के मामले में बरी किए गए आरोपियों के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं करेगी। यह फैसला अंतिम मानते हुए सरकार ने हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का रुख न करने का निर्णय लिया है।

मालेगांव धमाका: अदालत में सबूत नहीं, लेकिन सियासत गरम

इस मामले में पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल पुरोहित और पांच अन्य आरोपियों को NIA की विशेष अदालत ने सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया था। अदालत में यह साबित नहीं हो सका कि इन आरोपियों की संलिप्तता धमाके में थी। 2008 में हुए इस विस्फोट में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।

7/11 मुंबई सीरियल ब्लास्ट: सुप्रीम कोर्ट में अपील और स्टे

इसके उलट, 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सीरियल ब्लास्ट के मामले में, जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया, तो सरकार ने 22 जुलाई 2025 को ही सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी। सिर्फ दो दिन बाद, 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे भी लगा दिया।

इस घटना में 100 से अधिक लोगों की जान गई थी, और 800 से ज्यादा घायल हुए थे। इससे सरकार की गंभीरता और त्वरित कार्यवाही का संकेत मिलता है।

दोहरे मापदंड का आरोप, विपक्ष हमलावर

सरकार के इन दो अलग-अलग मामलों में भिन्न रुख को लेकर विपक्ष ने सख्त प्रतिक्रिया दी है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि सरकार न्यायिक प्रक्रिया में दोहरा मापदंड अपना रही है और इससे न्याय में लोगों का विश्वास कमजोर हो सकता है।

कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (उद्धव गुट) ने सवाल उठाया कि जब 7/11 जैसे मामलों में अपील की जा सकती है, तो मालेगांव जैसे संवेदनशील केस में चुप्पी क्यों?

मालेगांव ब्लास्ट केस में सरकार द्वारा अपील न करने का निर्णय, जबकि 7/11 केस में तेज़ी से सुप्रीम कोर्ट जाना, राजनीतिक और कानूनी बहस को जन्म दे रहा है। इस दोहरे दृष्टिकोण पर लोकतांत्रिक और न्यायिक पारदर्शिता की कसौटी पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। आने वाले दिनों में यह मुद्दा राजनीतिक विमर्श और चुनावी बहस का भी हिस्सा बन सकता है।

 

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