मालेगांव ब्लास्ट केस में बड़ी राहत: साध्वी प्रज्ञा समेत सभी 7 आरोपियों को NIA कोर्ट ने बरी किया

समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 31 जुलाई: मालेगांव बम धमाके के 17 वर्षों बाद, एनआईए की विशेष अदालत ने आज एक अहम फैसला सुनाते हुए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष विस्फोट का प्रमाण तो पेश कर पाया, लेकिन आरोपियों से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को साबित नहीं कर पाया।

फैसले का ऐसा आधार जो जांच में नहीं था मजबूत

विशेष एनआईए अदालत के जज ने पढ़ते हुए कहा, “प्रत्युत्पादन पक्ष ने यह साबित किया कि विस्फोट हुआ था, लेकिन यह नहीं कि कौन सी मोटरसाइकिल में बम रखा गया।” अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि पीड़ितों की उम्र 101 नहीं, बल्कि 95 साल थी, और कुछ मेडिकल सर्टिफिकेट में हेराफेरी की गई थी।

अदालत ने कहा कि प्रसाद पुरोहित के घर विस्फोटकों के भंडारण का कोई सबूत नहीं मिला, पंचनामा व्यवस्थित नहीं किया गया, घटनास्थल की कोई रूपरेखा नहीं बनाई गई, और फिंगरप्रिंट या डंप डेटा नहीं जुटाया गया।
इसके अलावा, सैंपल खराब थे, चेसिस नंबर अस्पष्ट था, और यह सिद्ध नहीं हो पाया कि बाइकाधिकार साध्वी प्रज्ञा के पास थी।

यूएपीए लागू नहीं हो पाया, कोर्ट ने किया रद्द

अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में यूएपीए (UAPA) अप्रयुक्त रहेगा क्योंकि नियमों के अनुसार अनुमति नहीं ली गई थी। दोनों अनुमति आदेश दोषपूर्ण घोषित हुए।

विस्फोट की घटना क्या थी?

29 सितंबर 2008 की रात लगभग 9:35 बजे, रमजान और नवरात्रि के त्योहार की गतिविधियों के बीच मालेगांव के भीखू चौक में बम ब्लास्ट हुआ। इसमें छह लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सौ से अधिक घायल हुए। मालेगांव, जो कि नासिक जिले का एक मुस्लिम बहुल इलाका है, इस घटना से सदमे में था।

17 साल की सुनवाई के बाद आज का आदेश

अदालत ने 17 वर्ष लंबी सुनवाई के बाद 19 अप्रैल 2025 को सभी आरोपियों के खिलाफ फैसला सुरक्षित रखा था। बाद में सुनवाई की तारीख 8 मई से आगे बढ़कर 31 जुलाई कर दी गई।

कौन-कौन थे सात बरी आरोपी?

अदालत में आज पेश सात आरोपी हैं:

  • साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
  • लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवानिवृत्त) श्रीकांत प्रसाद पुरोहित
  • मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय
  • समीर कुलकर्णी
  • अजय राहिरकर
  • सुधाकर धर द्विवेदी उर्फ दयानंद पांडे
  • सुधाकर चतुर्वेदी

इस केस की आरंभिक जांच महाराष्ट्र एटीएस के तत्कालीन प्रमुख एवं शहीद आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे ने की थी। उन्होंने कुल 12 आरोपियों पर चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें अदालत ने पहले ही पांच को बरी कर चुकी थी।

लंबी इंतजार के बाद न्याय की बाजी

साध्वी प्रज्ञा और अन्य आरोपियों की बरी होने से एक युगांत निर्णय सामने आया है, जिसने लंबे समय से चले आ रहे विवाद और संदेहों को एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा किया। अदालत द्वारा कमजोर सबूतों, दोषपूर्ण परीक्षा और प्रक्रियाओं की कमी को देखते हुए यह फैसला आया है।

यह निर्णय उन लोगों के लिए न्याय का प्रतीक है जिन्हें वर्षों तक आरोपी बनाए रखा गया। माना जा रहा है कि इस फैसले से न केवल आरोपी परिवारों को राहत मिलेगी, बल्कि यह भारतीय न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता की एक बड़ी मिसाल भी बन सकता है।

 

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