मालवा राजा- ४ क्षत्रिय कुलों ने देशरक्षा के लिये ली शपथ, कैसे हुआ मालव प्रभुत्व स्थापित

✍🏻अरुण कुमार उपाध्याय
शूद्रक ७५६ ई.पू. (कलि २३४५) में राजा हुआ, जब शूद्रक-शक आरम्भ हुआ (यल्ल का ज्योतिष दर्पण ७१)। उसके राज्य में अर्बुद पर्वत पर यज्ञ हुआ जिसमें अग्नि की साक्षी में ४ क्षत्रिय कुलों-प्रतिहार, परमार, चालुक्य, चाहमान (चौहान) ने देशरक्षा के लिये शपथ ली। इस काम में अग्री (अग्रणी) होने से उनको अग्नि-कुल का कहा गया (शsaतपथ ब्राह्मण २/२/४/२)। चाहमान काल में शाकम्भरी (दुर्गा सप्तशती ११/४९) तथा विष्णु अवतार मगध के अजिन ब्राह्मण के पुत्र बुद्ध के प्रसाद से ६१२ ई.पू. में असुर राजधानी निनेवे ध्वस्त हुई। इस काल से आरम्भ शक का वराहमिहिर ने व्यवहार किया है (बृहत् संहिता १३/३)। उज्जैन के गर्दभिल्ल राजा दर्पण के काल में जैन मुनि कालकाचार्य की बहन सरस्वती का राजा ने अपहरण कर लिया। वह सहायता के लिये हिन्दुकुश के ९६ सामन्तों के पास गये। उन्होंने ईरान राजा डेरियस से बचने के लिये सौराष्ट्र के राजा बलमित्र की सहायता से उज्जैन पर अधिकार कर लिया। शक राजा नहपान या नहसेन को उज्जैन का राजा बना कर उसे जैन दीक्षा देने के कारण कालकाचार्य (५९९-५२७ ई.पू.) को जैन शास्त्रों में वीर कहा गया तथा उनके देहान्त से वीर सम्वत् आरम्भ हुआ। नहपान (५५०-५१० ई.पू.) का दामाद उशवदत्त का पुत्र दिनिक, मित्र आदि शक राजा हुये। ४५७ ई.पू. में हर्ष विक्रमादित्य ने इनको पराजित कर पुनः मालव प्रभुत्व स्थापित किया। शूद्रक से श्रीहर्ष शक (७५६-४५६ ई.पू.) काल को मेगास्थनीज ने ३०० वर्ष का गणराज्य कहा है। उसके बाद कई छोटे शक राजा राज्य करते रहे-जयदमन (४२०-३९०), रुद्रदमन-१ (३९०-३६०), दमजादश्री, जीवदमन, उसका भाई रुद्रसिंह-१ (३६०-३१७), रुद्रसेन-२ (३१७-२९३), पृथ्वीसेन (२९३), रुद्रसेन का भाई संघदमन (२९२), दमसेन (२९२-२७९)। इसके बाद वे केवल क्षत्रप (आज की खाप पंचायत) या अधीनस्थ शासक रह गये-यशोदमन-१ (२७९-२७५),, उसका भाई विजयसेन (२७५-२६५), दमजादश्री-३ (२६५-२६१), रुद्रसेन-२ (२६१-२४१), विष्णुसिंह (२४१-२२६), भरतदमन (२२६-२२०), विष्णुसेन (२२०-२११), रुद्रसिंह-२ (२११-१९८), यशदमन (१९८-१८३), रुद्रदमन-२ (१८३-१६७), रुद्रसेन-३ (१६७-१३७), उसका भांजा रुद्रसिंह (१३७-१३१)। मथुरा में ये ५७ ई.पू. तक बने रहे।
श्रीहर्ष विक्रम के बाद उज्जैन पर परमार वंश राजाओं ने अधिकार किया। प्रमर सामवेदी ब्राह्मण था, अग्निवंशी राजा होने पर यह ब्रह्म-क्षत्र वंश हुआ। ३९२-३८६ ई.पू. में अम्बापुरी (उज्जैन) में राज्य किया। महामर, देवापि, देवदूत के ३-३ वर्ष राज्य के बाद कई छोटे राजा हुये। गन्धर्वसेन ने १८२-१३२ ई.पू. राज्य किया। उसका पुत्र शंख राजा बनने पर संन्यासी हो गया। पुनः गन्धर्वसेन को १०२ ई.पू. में राज्य संभालना पड़ा। १ वर्ष बाद शिव कृपा से उसके पुत्र विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उसने ५ वर्ष की आयु से १२ वर्ष तक तपस्या कर बहुत सिद्धियां पायीं। १९ वर्ष की आयु में ८२ ई.पू. में राजा बना तथा १०० वर्ष तक १९ ई. तक राज्य किया। उनका प्रत्यक्ष शासन सम्पूर्ण प्राचीन भारत पर था तथा ईरान, अरब पर भी प्रभुत्व था। विक्रमादित्य के राज्य के २ ज्योतिषी जेरुसलेम गये थे जिन्होंने ईसा को महापुरुष बताया था। ईरान के राजा की सहायता के लिये उन्होंने सीरिया के सेला में रोमन राजा सीजर को पराजित किया तथा उसे बन्दी बना कर उज्जैन ले आये। इसे रोमन इतिहासकारों ने मिस्र में सीजर का ६ मास अज्ञातवास कहा है। विल डुरण्ट के अनुसार इसी पराजय के कारण सीजर की हत्या ब्रूटस ने की थी। ४६ ईसा पूर्व में जुलियस सीजर ने कैलेण्डर आरम्भ किया तो वह उत्तरायण आरम्भ से आरम्भ करना चाहता था, पर विक्रम सम्वत् १० का पौष मास (कृष्ण पक्ष से) दिन बाद आरम्भ हो रहा था, अतः जुलियन वर्ष भी ७ दिन बाद आरम्भ हुआ। मूल आरम्भ दिन को आज क्रिसमस कहते हैं। विक्रमादित्य ने काबा मन्दिर का जीर्णोद्धार कराकर उसके लिये सोने, कपड़े का उपहार दिया था, जो चोरी हो गये थे। चोरी के काल से विश्वासघात वर्ष शुरु हुआ जो पैगम्बर मुहम्मद के समय तक चलता रहा (अल बरुनी -प्राचीन देशों की कालगणना) । इस सन्देह में इथिओपिया के लोगों को भगाया गया तो इथिओपिया सेना ने काबा को घेर लिया। उसकी रक्षा के लिये विक्रमादित्य ने गज सेना भेजी थी। विक्रमादित्य की प्रशस्ति वहां सोने के थाल पर लिखी हुयी थी जो तुर्की के संग्रहालय में सुरक्षित है। मुहम्मद साहब के चाचा ने भी विक्रमादित्य की प्रशस्ति लिखी थी। विक्रमादित्य के वंशज भोजराज जब अपनी सेना के साथ बल्ख गये थे तो मुहम्मद साहब ने उनसे धर्मयुद्ध में सहायता मांगी थी। उनके साथ कालिदास-३ भी थे जिन्होंने मना किया, पर कई सैनिकों ने सहायता की, जिनको मोहयाली (मुहम्मद के सहायक) कहा गया।
सन्दर्भ-कालिदास का ज्योतिर्विदाभरण (२२/७-२१)
Al-Biruni-Chronology of Ancient Nations at page 39-
Epoch of the Ancient Arabs-Ishmaelite Arabs… used to date from the construction of the Ka’ba by Abraham and Ismael. …. After a long course of time they dated from year of Amr ben Yahya. … Afterwards they dated from death of Ka’b ben Lu’ay till the Year of Treason, in which the Banu-Yarbu stole certain garments which some of the kings of Himyar (Himavat =Bhārata) sent to Ka’ba. Then they dated from Year of the Elephants, when Ethiopians came to destroy Ka’ba. Lord annihilated them. Then they dated from era of Hijra.
भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, (१/६/४५-४७, १/७/७-१७, ३/२/९-२३)
विक्रमादित्य के निधन पर उनका राज्य खण्डित हो गया तथा चीन, तातार, रोमन, कुर्द, बल्ख आदि का सम्मिलित आक्रमण हुआ। चीनी आक्रमण का हुएनसांग ने भी उल्लेख किया है कि तिब्बत के राजा ने भारत पर अधिकार किया था। विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने सभी विदेशियों को सिन्धु नदी के पार भगाया तथा उस उन्नति काल में स्वयं ईसा मसीह ने कश्मीर में तथा उनके शिष्य टामस ने चेन्नई में शरण ली। यही प्रमाण है कि भारत उस युग में सबसे सम्मानित तथा सुरक्षित देश था। ये सभी अग्निवंशी राजा ११९२ ई. तक राज्य करते रहे जिनकी वंशावली भविष्य पुराण तथा राजाओं की अपनी सूची में है।
परमार वंश-१. प्रमर (३९२-३८६ ई.पू.), २. महामर (३८६-३८३), ३. देवापि (३८३-३८०), ४. देवदत्त (३८०-३७७) (३७७-१९५ ई.पू.) तक शक राजाओं का उज्जैन पर अधिकार तथा परमार श्रीशैलम चले गये। ६. गन्धर्वसेन (१८२-१३२ ई.पू.), ७. शंखराज (१३२-१०२)-संन्यासी होकर वनवास तथा देहान्त। गन्धर्वसेन पुनः वापस राजा बने (१०२-८२ ई.पू.) तथा उनके द्वितीय पुत्र विक्रमादित्य का जन्म हुआ (१०२ ई.पू.) । ८. विक्रमादित्य (८२ ई.पू.-१९ ई.), ९. देवभक्त (१९-२९). १०. (२९-७८ ई. तक) अराजकता, ११. शालिवाहन (७८-१३८ ई.)-कश्मीर में ईसा मसीह को आश्रय। ८० ई. में मद्रास (चेन्नई) में सन्त टामस को आश्रय। १२. शालिहोत्र, १३. शालिवर्धन, १४. सुहोत्र, १५. हविहोत्र, १६. हविर्होत्र, १७. माल्यवान, १८. शम्भुदत्त, १९. भूमिपाल, २०. वत्सराज-९ राजा ५०० वर्ष (१३८-६३८ ई.)। २१. भोजराज (६३८-६९३ ई.)-पैगम्बर मुहम्मद से मिले। २२. शम्भुदत्त-२, २३. बिन्दुपाल, २४. राजपाल, २५. महीनर, २६. सोमवर्मा, २७. कामवर्मा, २८. भूमिपाल या वीरसिंह-७ राजा ३०० वर्ष (६९३-९९४ ई.)। २९. रंगपाल, ३०. कल्पसिंह, ३१. गंगासिंह (निःसन्तान)-२०० वर्ष (९९३-११९२ ई.)। अन्तिम राजा गंगासिंह पृथ्वीराज चौहान के साथ तराइन (कुरुक्षेत्र) की दूसरी लड़ाई में ११९२ ई. में मारे गये।
चाहमान राजा-१. चाहमान, २. सामन्तदेव, ३. महादेव, ४. कुबेर, ५. बिन्दुसार, ६. सुधन्वा-इन्होंने २६६३ युधिष्ठिर शक (४८५ ई.पू.) आश्विन शुक्ल मास में शंकराचार्य के ४ पीठ स्थापित किये। ७. वीरधन्वा, ८. जयधन्वा (ये राजा पृथ्वीराज चौहान तक विख्यात धनुर्धर थे। उसके बाद केवल गुरु गोविन्द सिंह जी ने ही धनुष का प्रयोग किया), ९. वीरसिंह, १०. वरसिंह, ११. वीरदण्ड, १२. अरिमन्त्र, १३. माणिक्यराज, १४. पुष्कर, १५. असमञ्जस, १६. प्रेमपुर, १७. भानुराज, १८. मानसिंह, १९. हनुमान, २०. चित्रसेन, २१. शम्भु, २२. महासेन, २३. सुरथ, २४. रुद्रदत्त, २५. हेमरथ, २६. चित्रांगद, २७. चन्द्रसेन, २८. वत्सराज, २९. धृष्टद्युम्न, ३०. उत्तम, ३१. सुनीक, ३२. सुबाहु, ३३. सुरथ, ३४. भरत, ३५. सात्यकि, ३६. शत्रुजित, ३७. विक्रम, ३८. सहदेव, ३९. वीरदेव, ४०. वसुदेव, ४१. वासुदेव-यह ५५१ ई. में राजा बना। इसके पुत्रों ने २ राज्य स्थापित किये। एक शाखा जैसलमेर में थी जिसके वीर गोगादेव ने महमूद गजनवी से मरुभूमि में युद्ध किया था। अन्य शाखा दिल्ली में हुई जिसका अन्तिम राजा पृथ्वीराज-३ ११९२ ई. में तराइन में मुहम्मद गोरी के आक्रमण में मारा गया।
दिल्ली-अजमेर शाखा-४२. सामन्त, ४३. नरदेव या नृप, ४४. विग्रहराज-१, ४५. चन्द्रराज-१, ४६. गोपेन्द्रराज या गोपेन्द्रक, ४७. दुर्लभराज, ४८. गोविन्दराज या गुवक-१ (प्रतिहार राजा नागभट्ट का समकालीन), ४९. चन्द्रराज-२ (८४३-८६८ई.), ५०. गोविन्दराज या गुवक-२ (८६८-८९३), ५१. चन्दन गोविन्दराज (८९३-९१८), ५२. वाक्पतिराज-१ या वप्पयराय (९१८-९४३), ५३क. विन्ध्यराज-अल्प काल के लिये, उसके बाद उसका भाई (५३ख) सिंहराज. इसके ४ पुत्र थे-विग्रहराज-२, दुर्लभराज-२, चन्द्रराज, गोविन्दराज। (५४क) विग्रहराज-२ (९७३ ई. से)-उसने गुजरात के मूलराज को हराकर आशापुरा देवी कामन्दिर भृगुकच्छ में बनाया। सुबुक्तगीन के आक्रमण को रोकने के लिये उसने लाहौर के राजा की सहायता के लिये ९९७ ई. में सेना भेजी। (५४ख) दुर्लभराज-२ (९९८ ई.), ५५. गोविन्दराज-३ (९९९ ई.), (५६क) वाक्पतिराज-२ (९९९-१०१८), (५६ख) वीर्यराज (१०१८-१०३८), (५६ग) चामुण्डराज (१०३८-१०६३)-ये दोनों(५६क) के भाई थे। (५७क) सिंहल-(५६ग) बड़ा पुत्र, (५७ख) दुर्लभराज-३ (१०६३-१०७९, ५६ग का पुत्र), (५७ग) विग्रहराज-३ (१०७९-१०९८, ५७ख का भाई), (५८) पृथ्वीराज-१ (१०९८-११०५), ५९. अजयराज, अजयदेव या सलखान (११०५-११३२)-अजमेर बसाया। ६०. अर्णोराज या अनलदेव (११३२-११५१), (६१क) जगदेव (११५१)-इसने अपने पिता की हत्या की जिसके कारण उसके भाई विग्रहराज-४ ने इसे मार दिया। (६१ख) विग्रहराज-४ या विशालदेव (११५१-११६७)-इसने चालुक्यों को हराया। (६१ग) सोमेश्वरदेव (११६९-११७७, ६१ख का भाई)- पृथ्वीराज-२ के निस्सन्तान मरने पर इनको राजा बनाया। (६२क) अपरगांगेय या अमरगांगेय (६१ ख के पुत्र), (६२ख) पृथ्वीराज-२ (६१क के पुत्र, ६२क को हराकर राजा बने), (६२ग) पृथ्वीराज-३ (११७७-११९२)-दिल्ली का अन्तिम हिन्दूशासक।११९१ ई. में मुहम्मद गोरी को हराया, पर १ वर्ष बाद कन्नौज के जयचन्द के सहयोग से गोरी ने उनको पराजित कर बन्दी बना लिया।
शुक्ल या चालुक्य (द्वारका देश में)-२७ राजा ३९२ ई.पू से ११९२ ई. तक। १. शुक्ल या चालुक्य, २. विश्वक्सेन, ३. जयसेन, ४. विसेना, ५. मदसिंह, ६. सिन्धुवर्मा, ७. सिन्धुद्वीप, ८. श्रीपति, ९. भुजवर्मा, १०. रणवर्मा, ११. चित्रवर्मा, १२. धर्मवर्मा, १३. कृष्णवर्मा, १४. उदय, वाप्यकर्म, १६. गुहिल, १७. कालभोज, १८. राष्ट्रपाल, १९. जयपाल, २०. वेणुक, २१. यशोविग्रह, २२. महीचन्द्र, २३. चन्द्रदेव, २४. मन्दपाल, २५. कुम्भपाल य वैश्यपाल, २६. देवपाल (दिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल का दामाद), २७. जयचन्द्र-उसकी पुत्री संयुक्ता का विवाह दिल्ली के अन्तिम हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान से हुआ। ११९३ में गोरी के साथ युद्धमें मारा गया।
प्रतिहार वंश-(कालिञ्जर)-३५ राजा (३९२ ई.पू.-११९३ ई.)-१. प्रतिहार, २. गौरवर्मा, ३. घोरवर्मा, ४. सुपर्ण, ५. रूपन, ६. कालवर्मा, ७. भोगवर्मा, ८ कलिवर्मा, ९. कौशिक, १०. कात्यायन, ११. हेमवर्मा, १२. शिववर्मा, १३. भाववर्मा, १४. रुद्रवर्मा, १५. भोजवर्मा, १६. गववर्मा, १७. विन्ध्यवर्मा, १८. सुखसेन, १९. बलाक, २०. लक्ष्मण, २१. माधव, २२. केशव, २३. शूरसेन, २४. नारायण, २५. शान्तिवर्मा, २६. नन्दिवर्मा (गौड़ को जीतकर वहां शासन किया), २७. सारंगदेव, २८. गंगदेव, २९. अनंग भूपति, ३०. महीपति-१, ३१. राजेश्वर, ३२. नृसिंह, ३३. कलिवर्मा-२, ३४. धृतिवर्मा, ३५. महीपति-गोरी से कुरुक्षेत्र युद्ध में १९९३ में मारा गया।
✍🏻अरुण कुमार उपाध्याय

Comments are closed.