ममता बनर्जी और विक्टिम कार्ड की राजनीति: अंतिम हथियार या रणनीतिक चाल?

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,13 सितम्बर। ममता बनर्जी की राजनीति में “विक्टिम कार्ड” खेलना एक पुरानी और चर्चित रणनीति रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक सफर में कई बार विपरीत परिस्थितियों का सामना किया है, और हर बार उन्होंने अपने आपको एक “पीड़िता” के रूप में पेश कर जनता का समर्थन हासिल करने की कोशिश की है। जो लोग उनकी राजनीति को करीब से देखते हैं, वे यह समझते हैं कि यह उनकी एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चाल है।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत और संघर्ष

ममता बनर्जी का राजनीतिक जीवन संघर्ष से भरा रहा है। एक साधारण पृष्ठभूमि से उठकर उन्होंने कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की। 1990 के दशक में कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया और बंगाल की राजनीति में एक नई लहर पैदा की। लेकिन इस सफर के दौरान उन्हें कई बार विरोधी ताकतों से टकराव का सामना करना पड़ा। हर बार, उन्होंने खुद को एक ऐसी नेत्री के रूप में पेश किया, जिसे शक्तिशाली विरोधी दबाने की कोशिश कर रहे थे।

विक्टिम कार्ड की राजनीति

ममता बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत उनकी ‘विक्टिम कार्ड’ खेलने की क्षमता मानी जाती है। जब भी राजनीतिक या प्रशासनिक संकट आता है, ममता इसे अपने खिलाफ एक साजिश के रूप में पेश करती हैं।

  • सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन: सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलनों के दौरान ममता ने खुद को किसानों और गरीबों की “पीड़िता” के रूप में पेश किया। उन्होंने पश्चिम बंगाल के किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और इसे अपने राजनीतिक ब्रांड का हिस्सा बना लिया। इन आंदोलनों ने ममता की छवि को एक मजबूत संघर्षशील नेता के रूप में स्थापित किया, जिसने औद्योगीकरण के नाम पर किसानों के अधिकारों का हनन नहीं होने दिया।
  • केंद्र सरकार के साथ टकराव: केंद्र सरकार के साथ कई मुद्दों पर ममता बनर्जी का टकराव रहा है। उन्होंने बार-बार दावा किया है कि केंद्र सरकार उनकी सरकार को कमजोर करने की साजिश कर रही है और बंगाल की जनता के साथ अन्याय हो रहा है। इस रणनीति ने उन्हें बंगाल की “संरक्षक” के रूप में जनता के सामने पेश किया है।

रणनीति या आवश्यकता?

विक्टिम कार्ड का इस्तेमाल ममता बनर्जी की राजनीति में एक रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। यह उन्हें न केवल सहानुभूति दिलाता है, बल्कि उनके समर्थकों को यह संदेश भी देता है कि ममता बनर्जी हमेशा जनता के हक की लड़ाई लड़ रही हैं और किसी भी परिस्थिति में हार मानने वाली नहीं हैं।

हालांकि, आलोचक कहते हैं कि ममता बनर्जी इस कार्ड का उपयोग तब करती हैं जब उनकी राजनीतिक स्थिति कमजोर होती है या जब विपक्षी पार्टियाँ उन्हें घेरने की कोशिश करती हैं। उनके विरोधियों का मानना है कि यह एक प्रकार की राजनीतिक हथकंडा है, जो ममता को लगातार सहानुभूति की राजनीति करने की छूट देता है।

विक्टिम कार्ड का प्रभाव

इस रणनीति का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि ममता बनर्जी जनता के बीच एक मजबूत और जन-समर्थक नेता के रूप में उभरती हैं। वह अपने समर्थकों के लिए एक ऐसी नेता बन जाती हैं, जो लगातार संघर्ष कर रही हैं और जिनके खिलाफ हर कोई साजिश रच रहा है।

उनके राजनीतिक जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ों पर, चाहे वह कांग्रेस से अलग होने का निर्णय हो या फिर तृणमूल कांग्रेस को एक प्रमुख पार्टी के रूप में स्थापित करना, ममता बनर्जी ने हर बार विक्टिम कार्ड का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है। इसका असर उनके वोट बैंक पर भी देखने को मिला है, खासकर बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां जनता उन्हें अपने हितों की सबसे बड़ी प्रतिनिधि मानती है।

निष्कर्ष

ममता बनर्जी का विक्टिम कार्ड खेलना उनकी राजनीतिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह उन्हें बार-बार विपरीत परिस्थितियों से उबारने में मदद करता है और उन्हें जनता की नज़रों में एक मजबूत और संघर्षशील नेता के रूप में स्थापित करता है। चाहे यह रणनीति हो या वास्तविकता, यह निश्चित है कि ममता बनर्जी का यह तरीका उन्हें बंगाल की राजनीति में एक अद्वितीय स्थान दिलाता है।

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