मंथन- पंचनद : विमर्श का सांगोपांग मंथन (3)

पार्थसारथि थपलियालपार्थसारथि थपलियाल

उद्देश्य का ज्ञान होने पर भी केवल आगे दौड़ने का मतलब यह है कि आप सिर्फ उद्देश्य के लिए दौड़ते रहे। जैसा कुछ किताबों को पढ़ने के बाद उत्तम स्मृति का प्रदर्शन सफल व्यक्ति की पहचान बन जाती है लेकिन गौर करने की बात तो यह भी है कि सफल व्यक्ति योग्य भी है या नही। कुछ लोग योग्य दिखाई देते हैं लेकिन क्या वे उपयुक्त भी हैं या नही। इसके लिए अनुभव की आवश्यकता होती है। सेरोगेट मदर और जन्मदायी माता में अंतर है। इसीलिए राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने अपनी “आर्य” कविता में स्वयं को पहचानने, अपने गौरव को जानने की बात कही-

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी।।
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां।।
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है।।
विमर्श के इस पहलू पर विहंगावलोकन पंचनद के अनुभवी निदेशक डॉ. कृष्ण चंद्र पांडेय ने भले ही पारिभाषिक रूप में प्रतिवेदन प्रस्तुत किया लेकिन भारतीय पद्धति में इसे संस्थान की विकास यात्रा के मील के पत्थरों पर दृष्टिपात करना जैसे था। 38 वर्ष पूर्व इस संस्थान के पुरोधाओं ने जिस परिदृश्य में संवाद का मार्ग पंचनद को बनाकर सामाजिक समरसता के सूत्र को मजबूत किया और पारस्परिक संवाद को रक्षासूत्र की तरह बांधा, सामान्य स्थितियों में उसकी कल्पना करना कठिन है। उन तपस्वियों को नमन जिहोनें आशा के इस दीपक को जलाया और उन कर्मवीरों को भी जिन्होंने विपरीत हवाओं के दौर में दीपक को बुझने से बचाया भी और प्रकाशवान भी बनाया। उन्होंने कुछ प्रयासों को रेखांकित किया। इस दौरान कई नए लोग पंचनद से जुड़े और वे बहुत सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं। पंचनद ने संख्या की बजाय गुणवत्ता पर ध्यान रखा। अबतक 3500 लोग पंचनद से जुड़े हैं। जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, हरियाणा और दिल्ली राज्यों में पंचनद की कुल 42 अध्ययन केंद्र हैं।
विशेषकर कोरोना काल में त्रिस्तरीय ऑन लाइन कार्यक्रमों की केंद्रीय टोली का विस्तृत विवरण तथा प्रांत टोली व अध्ययन केंद्रों का संदर्भीय विवरण प्रस्तुत किया। पंचनद के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. कृष्ण सिंह आर्य की वार्ताश्रृंखला- “सत्य की अनंत खोज- भारतीय जीवन की संस्कार परंपरा” जो 8 भागों में ऑन लाइन आयोजित की गई, स्मरणीय थी। तत्कालीन निदेशक और वर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला की अध्यक्षता में गंभीर राष्ट्रीय विषयों पर राष्ट्रीय, स्तर और आंचलिक स्तर की वेबी आयोजित किये गए। इस दौरान पंचनद ने अनेक प्रकाशन व सर्वेक्षण भी किये गए। वार्षिक व्याख्यान और कोरोना काल में जीवन जीने के दर्शन पर भी अनेक वेबिनार आयोजित किये गए। उन्होंने वर्ष 2020 में वार्षिक शोध पत्रिका जो लोक परंपराओं पर आधारित थी के प्रकाशन के साथ साथ भारतीय आज़ादी के अमृतमहोत्सव के अवसर पर “स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर” तथा आज़ादी के सौ साल होने तक भारत की प्रगति की एक सामुहिक संकल्पना “भारत -2047” और Bharat-2047: A collective Vision का विशेष उल्लेख किया। डॉक्टर पांडेय ने तिथिवार बहुत से आयोजनों का विस्तार से वर्णन किया जिसका सभागार में उपस्थित सभी सदस्यों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। पंचनद के निदेशक डॉ. कृष्ण चंद्र पांडे के वक्तव्य में भूतकाल की दशा, वर्तमान की स्थिति और भविष्य की दिशा का बोध केवल बताने और सुनाने को नही था, बल्कि लक्ष्य की ओर आत्मप्रेरणा से सामूहिकता के साथ आगे बढ़ने का संकेत निहित था।
मैथिली शरण गुप्त की संदर्भित कविता का एक और पद प्रेरणा के लिए प्रस्तुत है।
वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे।।
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा।।

 

लेखक परिचय -श्री पार्थसारथि थपलियाल,
वरिष्ठ रेडियो ब्रॉडकास्टर, सनातन संस्कृति सेवी, चिंतक, लेखक और विचारक। (आपातकाल में लोकतंत्र बचाओ संघर्ष समिति के माननीय स्वर्गीय महावीर जी, तत्कालीन विभाग प्रचारक, शिमला के सहयोगी)

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