पार्थसारथि थपलियाल
वैचारिक युद्ध के नए आयाम- मा. जे. नंदकुमार
14 जून को तीसरे सत्र का विषय था वैचारिक युध्द के नए आयाम। विशेषज्ञ वक्ता थे मा. जे.नंदकुमार। जे.नंदकुमार जी मूल रूप से आदि गुरु शंकराचार्य की जन्मभूमि केरल में जाये जन्मे है। “संघ” (RSS) की बौद्धिक शाखा प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक हैं। भारतीयता लकदक। गहन विचारक और प्रखर वक्ता।। आत्मीयता से हिंदी में उनका प्रबोधन बहुत ही लालित्यपूर्ण और सरस होता है।
सत्र के आरंभ के मा. जे. नंदकुमार जी ने प्रश्नवाचक भाव से कहा- संघ क्या है? कुछ संभागी उत्तर देने के लिए सकपकाए, लेकिन उन्होंने अपनी बात को बढ़ाते हुए बताया कि जब एक स्वयं सेवक से यह पूछा गया तो उनका उत्तर था- “RSS is the evolution of the life mission of Hindu nation.” उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती के घोष वाक्य को उद्धृत करते हुए “कृण्वन्तो विश्व आर्यम” के महत्व पर बल दिया। उन्होंने बताया कि हमारी वैमनष्यता किसी से नही लेकिन हमारे संस्कार मानवीय हैं जो बसुधैवकुटुम्बकं की भावना से ओतप्रोत हैं, इस भावना से हमारा मानवीय दृष्टिकोण है। संघ राष्ट्र की अंतरात्मा से उत्पन्न भाव को समझता है। उन्होंने यह भी बताया कि संघ का शताब्दी वर्ष निकट है इस पर अभी से कार्यक्रमों की योजना पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
मा. जे. नंदकुमार जी ने वैचारिक युद्ध के नए आयाम विषय पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया। उन्होंने चाणक्य नीति का एक श्लोक सुनाया-
एकं विषरसं हन्ति, शस्त्रेण एकश्च वध्यते ।
सराष्ट्रं सप्रजं हन्ति, राजानं मंत्र-विप्लव: ।।
अर्थात “विष से केवल एक की मृत्यु हो सकती है । शस्त्र से भी केवल एक ही मर सकता है । किन्तु राजा के ग़लत निर्णय से राजा स्वयं, पूरा राष्ट्र और उसकी पूरी प्रजा का विनाश हो सकता है।” आज वैमनष्य को बढ़ाने के लिए अनेक प्रकार के मंतव्य (नैरेटिव) बहुत आकर्षक ढंग से स्थापित किये जा रहे है। उन्होंने बताया कि किसी ने कहा है-To position a nation position the story. मीडिया चैनल्स पर बैठे लोग जिन्हें लोग बार बार देखते/सुनते हैं उनमे से कुछ लोग तो दुर्विचारों से प्रभावित होते हैं और बिना चिंतन मनन किये दुश्मनी पर उतर आते हैं। यह मंतव्य देशभर में अनेक रूपों में फैलाया जा रहा है। आधुनिक भारतीय समाज अपनी संस्कृति और सभ्यता से दूर हो रहा है इसलिये वह निष्क्रिय हो रहा है। संस्कृति से दूर होना अर्थात जड़ों से कटना। आवश्यकता है कि हम समाज के सामने सही मंतव्य प्रस्तुत करें। अल्पज्ञान भी एक आयाम है। अल्पज्ञान का मुख्य कारण सही ज्ञान न होना है। समाज मे स्वाध्याय की प्रवृति भी कम हो रही है। उन्होंने अंग्रेज़ी के अक्षर आई से शुरू होने वाले 7 शब्दों की व्याख्या की। इनमें असंवेदनशीलता भी है। सामाजिक अपनापन के अभाव में मानवीय संवेदनाएं भी खत्म हो रही है। भारतीय जीवन परंपरा पर यूरोप का प्रभाव बढ़ रहा है, भारतीय दर्शन गायब हो गया है। अब भारतीय सोच का केंद्र यूरोप बन गया है। अंतरराष्ट्रीय पारिस्थितिकी (International ecosystem) को भारत के संदर्भ में गहराई से समझने की आवश्यकता है। हाल की घटनाओं को समझें क्या हम दुनिया में अकेले नही हो रहे हैं।
देश में कई तरह के दुश्मन विषवमन कर रहे हैं। जिनमें स्वच्छंदतावादी (Librals), अनीश्वरवादी (Atheist), वामपंथी (Leftist), धर्मनिरपेक्षतावादी (Secularism) और मुसलमान भारतीय समाज मे विद्रूपता ला रहे हैं। हम इनके दुष्चक्र को समझें। स्वामी शास्वतानंद जी के बुद्धिचेता शब्द को उन्होंने भी प्रभावकारी ढंग से आगे बढ़ाया। यह वर्ग बुद्धिशील है, लेकिन समाज में इनकी उपस्थिति न के बराबर है, ऐसे लोग कुछ बेहतर करने की सोचते तो हैं परंतु उपयुक्त वातावरण न मिल पाने के कारण आगे बढ़ने में संकोच करते हैं। ऐसे लोगों को जोड़कर उनका समर्थन कर राष्ट्रीय चेतना जागृत की जाय।
लेखक परिचय -श्री पार्थसारथि थपलियाल,
वरिष्ठ रेडियो ब्रॉडकास्टर, सनातन संस्कृति सेवी, चिंतक, लेखक और विचारक। (आपातकाल में लोकतंत्र बचाओ संघर्ष समिति के माननीय स्वर्गीय महावीर जी, तत्कालीन विभाग प्रचारक, शिमला के सहयोगी)
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