मंथन- पंचनद : विमर्श का सांगोपांग मंथन (5)

पार्थसारथि थपलियाल
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पंचनद -क्षमता और दुर्बलता पर अध्यक्षीय संवाद

14 जून को पंचनद मंथन शिविर में पंचनद शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला चतुर्थ सत्र के प्रस्तोता थे। प्रोफेसर कुठियाला वयोवृद्ध ऊर्जावान-युवा हैं। इस वर्ष (2022-23 में) वे अपने जीवन का अमृतमहोत्सव मना रहे हैं। वे हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद के अध्यक्ष हैं, इसके अलावा भी कई सामाजिक कार्यों से जुड़े हुए हैं। वे पंचनद शोध संस्थान के अध्यक्ष हैं। उनकी कार्यशैली और चम्बकीय आकर्षण का व्यक्तित्व हर किसी को आकर्षित करता है। सारपूर्ण कथन और लोकतांत्रिक सहमति से आगे बढ़ने की कला उनसे सीखने योग्य है।
उनका सत्र पंचनद की क्षमताओं और दुर्बलताओं पर केंद्रित था। अनेक संस्थानों में एक शब्द उपयोग में लाया जाता है-KYC (know your customer), उसी तरह “पंचनद अपनी क्षमताओं और दुर्बलताओं को समय समय पर जांच्छता रहता है। जो संगठन अपनी अच्छाइयों और कमियों के विश्लेषण नही करते वे शीघ्र ही समापन की ओर बढ़ते हैं। प्रबल, सबल, निर्बल, दुर्बल, क्षमता और दुर्बलता शब्द एक ही कुनबे के सदस्य है। कोई सक्षम है कोई अक्षम। ये सभी शब्द परिभाषा भी चाहते हैं। प्रबल वह है जिसमें आवश्यकता से अधिक बल है। सबल वह है जो बल से युक्त है। निर्बल वह है जो शक्ति से हीन है। दुर्बल वह है जो कमजोर है। सक्षम वह है जो निर्धारित उद्देश्य की आवश्यकताओं को निभाने में उपयुक्त है, और अक्षम वह है जो मन से चाहता है कि यह उद्देश्य पूरा हो लेकिन संसाधनों की कमी के कारण वह व्यक्ति उसे कर नही पा रहा है। क्या बनना था?, क्या बने?, और क्या बनना है? इसे समझे बिना आगे के बारे में कैसे सोचें? पंचनद के अध्यक्ष मा. प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला ने इन बिंदुओं को अपनी मथनी (Churner) का आधार बनाया।
पंचनद के उद्देश्य को रेखांकित करते हुए मा. कुठियाला जी ने बताया- हमारा ध्येय है बुद्धिशील वर्ग में संवाद स्थापित करना। विभिन्न विषयों को विशेष दृष्टि से प्रस्तुत करना। समाज मे राष्ट्रत्व आधारित मंतव्य/नैरेटिव तैयार करना और आमजन के चित्त में राष्ट्र के स्व को जागृत करना। इसके लिए लक्ष्य के लिए सुविचारित और परीक्षित मार्ग पर चलना आवश्यक है। इसके लिए पंचनद ने प्रत्यक्ष संवाद का मार्ग अपनाया। जनसंचार के पारंपरिक माध्यमों को उपयोग में लाना, इस मार्ग का पंचनद ने भरपूर उपयोग किया। रेडियो, टेलीविजन, पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें, फ़िल्म आदि पंचनद की क्षमताओं को बढ़ाये हैं। ऐसा अनुभव हमारे पास है। संवाद के डिजिटल माध्यम भी पंचनद की शक्ति है। कोरोना काल में व्याख्यानों और वेबिनारस के आयोजनों ने हमें सिखा दिया कि डिजिटल मीडिया आपात स्थितियों में कितना उपयोगी है। स्थापित बुद्धिजीवी वर्ग सकारात्मक संवाद के लिए विश्वसनीय माध्यम बन जाता है। यह पंचनद की एक बड़ी ताकत है। बुद्धिशील व्यक्तियों का एक वर्ग है जो समाज मे सक्रिय है। इस वर्ग के लोगों का समाज पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसी क्रम में प्रभावकारी साधु- संत भी किसी संवाद को विश्वसनीय ढंग से आगे बढ़ाने में बहुत उपयोगी होते हैं। इस प्रकार के लोग पंचनद को अपना भरपूर सहयोग देते है। यदि ये क्षमताएं यदि हमारे साथ नही है तो हमारी जमजोरी है। हमारी दुर्बलताएं इन क्षमताओं का अभाव है।
अध्यक्ष, पंचनद प्रोफेसर कुठियाला ने पंचनद के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कुछ उपाय भी बताए। उनके अनुसार- (1) सामाजिक उद्बोधन (2) जनसंचार एवं जनसंवाद (3) पुस्तकें और पत्रपत्रिकाएँ (4) गोष्ठियां और (5) कार्यशालाएं, समाज में समरसता स्थापित करने के लिए बहुत उपयोगी विधाएं हैं।
कुठियाला जी, जो संचार और संवाद के स्थापित गुरु हैं, उन्होंने एकाग्रचित्त होकर सुन रहे सँभागियों में तब उत्सुकता पैदा कर दी जब वे अपने आजमाए लघु सर्वेक्षण के लिए एक प्रश्नावली लेकर एक सुहृद अध्यापक के रूप में मंच से प्रश्न पूछ रहे थे। पैदा किया। उन्होंने पंचनद की क्षमताएं और दुर्बलताएं पता करने के लिए उपस्थित संभागियों से विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से जनमत पता किया। इसका परिणाम यह रहा कि पंचनद बहुत अच्छा काम कर रहा है लेकिन इस पर संतोष करने की बजाय वर्तमान स्थिति में और अच्छा कर उत्तम उपलब्धियां प्राप्त की है सकती हैं जहां संवाद के माध्यम से सामाजिक समरसता स्थापित की जा सकती हैं।

लेखक परिचय -श्री पार्थसारथि थपलियाल,
वरिष्ठ रेडियो ब्रॉडकास्टर, सनातन संस्कृति सेवी, चिंतक, लेखक और विचारक। (आपातकाल में लोकतंत्र बचाओ संघर्ष समिति के माननीय स्वर्गीय महावीर जी, तत्कालीन विभाग प्रचारक, शिमला के सहयोगी)

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