भाजपा में मिल सकते हैं कई दल

त्रिदीब रमण 
त्रिदीब रमण 

त्रिदीब रमण 
‘सवालों के झुरमुठ हैं, अनिश्चय की धुंध है
जहां सत्य नहीं उगते, ये उन आत्माओं की ठूंठ है
जब से तेरी अंतरात्मा उनकी हुई है गला अवरुद्ध है
भले राह कितनी भी मुश्किल है, चलना जरूर है’
इस बदलते मौसम में जैसे पीली धूप ने भी अपना लिबास बदल कर गेरूआ कर लिया हो, 10 तारीख को जब मतों का डिब्बा खुला तो कई पार्टियों की उम्मीदें भी डब्बा हो गईं, भाजपा ने अपनी दुलकी चाल से भले ही अपने विरोधियों को धूल चटा दी हो, पर कई सवाल अब भी अनुतरित रह गए हैं। जैसा कि कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि ’नरेंद्र मोदी की यह जीत भीतर से भुरभुरी है, क्योंकि पांच राज्यों के ताज़ा चुनावी नतीजे आने से पहले इन कुल 690 सीटों में से भाजपा के पास पहले से 399 सीटें थीं, अब नतीजों के बाद यह 356 रह गईं हैं यानी 43 सीटें कम हो गई हैं।’ पर पूछा तो यह भी जाना चाहिए कि कांग्रेस के अपने नैतिक बल का क्या हुआ? पंजाब की जीती-जिताई बाजी उसने आप के हाथों सौंप दी, उत्तराखंड में जीत का आह्वान हार के हाहाकार में कैसे तब्दील हो गया? यूपी में ’लड़की हूं लड़ सकती हूं’ के प्रियंका की हुंकार को जनता ने क्यों अस्वीकार कर दिया? लिहाजा आज आत्ममंथन की जरूरत भाजपा को नहीं कांग्रेस को है, जिसके कई बड़े नेता अब भी टूटने को तैयार बैठे हैं। इन पांच में से चार राज्यों में विपक्षी पताका लहराने के बाद भगवा हौंसले बम-बम है, भाजपा की योजना इस साल के आखिर तक कम से कम तीन दलों का विलय भगवा पार्टी में कराने की है। बहन मायावती तो इस बात के लिए तैयार बताई जाती हैं, जिन्होंने डंके की चोट पर इस दफे के चुनाव में अपना 70 से 80 फीसदी कोर वोट बैंक सीधे भाजपा में ट्रांसफर करा दिया, उनकी नज़र राजनीति से एक सम्मानजनक विदाई पर है, उनकी निगाहें राष्ट्रपति पद पर हैं, पर अगर वह नहीं मिला तो बहिन जी उप राष्ट्रपति पद पर भी मान सकती हैं, तमाम मुकदमों से पीछा छूटेगा और एक चैन की संवैधानिक जिंदगी बसर कर पाएंगी। अगर ऐसा होता है तो वह अपनी पार्टी बसपा का विलय भी भाजपा में करने को तैयार हो सकती हैं। कमोबेश यही हाल नीतीश कुमार का है, उनकी पहली कोशिश तो केंद्र में विपक्षी एका का चेहरा बनने की थी, उन्होंने दुबारा इस बाबत पीके से संपर्क भी साधा, अपने लिए संभावनाएं भी टटोली, पर दाल अगर गली नहीं तो वे भी भगवा समर्पण के लिए सहज़ तैयार हो सकते हैं, यानी अगर वे राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति बनाए जाते हैं तो वे अपनी पार्टी जदयू का विलय भाजपा में करने को तैयार हो सकते हैं, जिसका प्रभाव अब बस बिहार तक सीमित रह गया है। एक पुरोधा और हैं वीआईपी पार्टी वाले मुकेश सहनी, इनकी चर्चा आगे है।

क्या होगा मुकेश सहनी का?
यूपी में भाजपा को पानी पी-पी कर कोसने वाले मुकेश सहनी का अब क्या होगा? क्या भाजपा अब इनका पानी उतारेगी? मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी बिहार के मल्लाहों-निषादों के बीच एक लोकप्रिय पार्टी है जो फिलहाल बिहार में एनडीए का एक हिस्सा है। पर इसके बावजूद सहनी ने एनडीए की मान्य परंपराओं का उल्लंघन कर इस यूपी चुनाव में अपनी पार्टी से 53 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए। यूपी में भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का खम्म ठोकने वाले सहनी इस दफे यह भूल गए कि बिहार में वे भाजपा की वजह से ही सत्ता का स्वाद चख पाए थे, उन्हें बिहार के विधान परिषद में भाजपा ने ही पहुंचाया था और शायद वे यह भी भूल गए थे कि उनकी विधान परिषद की सदस्यता भी इस आने वाले जुलाई माह में समाप्त हो रही है। उन्हें दुबारा से एमएलसी बनाने की डोर भी भाजपा के हाथों में है। सनद रहे कि सहनी की वीआईपी पार्टी के बिहार में 4 विधायक थे, जिनमें से एक मुसाफिर पासवान का निधन हो गया। 3 बचे हैं जो कभी भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं, क्योंकि भाजपा ने ही इन्हें वीआईपी के सिंबल से चुनाव लड़वाया था। तो फिर क्या करेंगे मुकेश सहनी? पानी में रह कर मगर से बैर?

भाजपा संगठन में बड़े बदलाव की आहटें
आने वाले दिनों में भाजपा संगठन से जुड़े कई बड़े फैसले देखने को मिल सकते हैं। मसलन अमित शाह का मानना है कि अगर हिमाचल बचाना है तो वहां की कमान जेपी नड्डा को सौंपनी ही होगी। सूत्रों की मानें तो वहीं संघ की राय है कि गुजरात में भाजपा को तुरंत नेतृत्व परिवर्तन करना होगा, अगर वहां भाजपा को सरकार में पुनर्वापसी करनी है तो भूपेंद्र पटेल की जगह आनन-फानन में गुजरात की कमान अमित शाह को सौंपनी होगी जो कि एक गजब के संगठनकर्ता हैं। ऐसी सूरत में क्या होगा जब शाह गुजरात चले जाते हैं और नड्डा हिमाचल जाने से मना कर देते हैं। तो सूत्र बता रहे हैं कि वैसी सूरत में अनुराग ठाकुर को हिमाचल भेजा जा सकता है जो पिछले काफी समय से वहां जाने के लिए छटपटा रहे हैं। ऐसे में क्या जेपी नड्डा अमित शाह की जगह देश के अगले गृह मंत्री हो सकते हैं? खबर तो यह भी गर्म है कि भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष को भी बदले जाने की तैयारी है, उनकी जगह नागेंद्रनाथ त्रिपाठी को लाया जा सकता है जो अभी बिहार और झारखंड के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री हैं। यूपी के प्रदेश महासचिव संगठन सुनील बंसल और योगी आदित्यनाथ में रार की खबरें काफी पुरानी हैं अब भाजपा केंद्रीय नेतृत्व और संघ दोनों ही चाहते हैं कि योगी को उनकी दूसरी पारी में ’फ्री-हेंड’ दिया जाए, यानी सुनील बंसल को भी दिल्ली बुलाने की तैयारी है। कहते हैं योगी ने प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह को भी बदलने की मांग की है, सो मुमकिन है कि स्वतंत्रदेव सिंह की जगह यूपी भाजपा को एक नया प्रदेश अध्यक्ष मिल जाए। सबसे बड़ा सवाल कि अगर जेपी नड्डा सरकार में शामिल होते हैं तो उनकी जगह भाजपा की कमान कौन संभालेगा? क्या धर्मेंद्र प्रधान?

मौर्य को ऐसे निपटाया योगी ने
10 मार्च की मतगणना के रोज सबकी नज़र सिराथु सीट पर टिकी थी जहां प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को अपना दल कमेरावादी की डॉ. पल्लवी पटेल से कड़ी टक्कर मिल रही थी। तभी शाम को अचानक से यह खबर आई कि सिराथु में मतों की गिनती रोक दी गई है और शायद मौर्य के कहने पर पुलिस ने वहां लाठी चार्ज भी कर दिया है। जैसे इस बात की खबर योगी को लगी तो उन्होंने फौरन फोन कर अधिकारियों से कहा-’मतगणना में कोई धांधली नहीं होनी चाहिए, ईमानदारी से कार्य निर्वहन होना चाहिए।’ तब जाकर मतों की गिनती दुबारा शुरू हो सकी, जिसमें पल्लवी पटेल ने मौर्य को शिकस्त दे दी।

’एक देश, एक चुनाव’ की अटकलें तेज
पीएम मोदी का यह पुराना आइडिया ’वन नेशन, वन इलेक्शन’ चार राज्यों में भाजपा की बंपर जीत के बाद फिर से हिलौरे मारने लगा है। मोदी पहले भी कहते रहे हैं कि ’संसदीय चुनाव और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ होने चाहिए, इससे देश का काफी पैसा बचेगा।’ पीएम मोदी कोई चार साल पहले यह आइडिया लेकर सामने आए थे। अकेले 2019 के लोकसभा चुनाव पर ही 60 हजार करोड़ से ज्यादा का खर्च आया था। कहते हैं देश का चुनाव आयोग भी पीएम की इस राय से इत्तफाक रखता है, पर ऐसा करने के लिए अन्य राजनैतिक दलों के बीच एक आम सहमति बनाने की जरूरत होगी, बल्कि ऐसा करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172 और 174 में भी संशोधन करना होगा। तो क्या अभी संपन्न हुए 5 राज्यों के चुनाव 2024 में दुबारा होंगे?

क्या भाजपा के करीब आ रही है शिवसेना?
शिवसेना प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे इन दिनों किंचित बीमार चल रहे हैं, वैसे भी उनकी असली चिंता अपने पुत्र आदित्य ठाकरे को राजनीति में स्थापित करने की है। कहते हैं इस बारे में वे अक्सर अन्य पार्टियों के नेताओं से बात कर इसकी टोह लेते रहते हैं। उद्धव की असली चिंता दरअसल उनकी सरकार में सहयोगी एनसीपी के रुख को लेकर है। उद्धव को लगता है कि शरद पवार स्वयं आदित्य को स्वीकार करने के लिए इतने सहज़ और खुले नहीं हैं। वहीं जब पिछले साल वे अपने पुत्र आदित्य को साथ लेकर पीएम मोदी से मिलने गए थे तो उनके पुत्र को लेकर पीएम मोदी का रुख उन्हें बेहद सकारात्मक लगा था। शायद यही वजह है कि इन दिनों उद्धव भाजपा के साथ एक बार फिर से पींगे बढ़ा रहे हैं। सो, मुमकिन है कि आने वाले दिनों में एकबारगी फिर से आपको महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा का पुराना गठबंधन आकार लेता दिखे।

…और अंत में
10 मार्च के चुनावी नतीजों के बाद सोशल मीडिया पर क्या वायरल है-
(एक) जयंत का उतना साथ दिया जाटों ने
जितना यूक्रेन का दिया नाटो ने
(दो) मोंक इन यूपी, ओल्ड मोंक इन पंजाब यानी कि यूपी में मोंक (योगी) पंजाब में ओल्ड मोंक (मान)
(तीन) पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सदन में 1997 में एनडीए सरकार गिरने पर दिए गए भाषण के वे शब्द जिसमें उन्होंने कहा था-’आज हमारी सरकार मात्र 1 वोट से गिर गई है। हमारे कम सदस्य होने पर कांग्रेस हम पर हंस रही है लेकिन मेरी बात कांग्रेस कतई न भूले कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब पूरे भारत में हमारी सरकार होगी और पूरा देश कांग्रेस पर हंस रहा होगा।’
(चार) मशहूर मौसम वैज्ञानिक स्वामी प्रसाद मौर्य फाजिल नगर (कुशीनगर) विधानसभा सीट से 33 हजार वोटों से चुनाव हारे।
(पांच) आए हैं सो जाएंगे, राजा, रंक, फकीर।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बंधे जंजीर।। 

(त्रिदीब रमण-न्यूज ट्रस्ट ऑफ इंडिया)

 

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