मायावती ने अखिलेश पर साधा निशाना, सपा को बताया दलित विरोधी

समग्र समाचार सेवा
लखनऊ, 7 अक्टूबर: उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर गरमाने लगी है। कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस से ठीक पहले राजनीतिक दलों के बीच बयानबाज़ी तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी (सपा) जहां अपने नए पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है, वहीं बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर सीधा हमला बोलते हुए उन्हें ‘दलित विरोधी’ करार दिया है।

बसपा 9 अक्टूबर को लखनऊ में कांशीराम परिनिर्वाण दिवस पर एक बड़ी रैली आयोजित करने जा रही है, जिसे 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, सपा भी इसी अवसर पर एक संगोष्ठी आयोजित करने की तैयारी में है, जिससे राजनीतिक माहौल और भी गरमा गया है।

मायावती का तीखा हमला — “सपा और कांग्रेस दोनों ही जातिवादी पार्टियां”

मायावती ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट साझा करते हुए अखिलेश यादव और कांग्रेस दोनों पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने लिखा—
“देश में जातिवादी व्यवस्था से पीड़ित करोड़ों दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों को शोषित से शासक बनाने के बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के मिशन को कांशीराम जी ने नई दिशा दी। लेकिन सपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों का रवैया हमेशा से जातिवादी और द्वेषपूर्ण रहा है।”

मायावती ने कहा कि बसपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो डॉ. अंबेडकर और कांशीराम के मिशन को ईमानदारी से आगे बढ़ा रही है, जबकि बाकी पार्टियां उनके नाम का इस्तेमाल सिर्फ वोटों की राजनीति के लिए कर रही हैं।

सपा पर संस्थानों के नाम बदलने का आरोप

मायावती ने आगे कहा कि बसपा सरकार ने अपने कार्यकाल में कांशीराम जी के सम्मान में कई विश्वविद्यालय, कॉलेज, अस्पताल और संस्थान उनके नाम पर स्थापित किए थे।
लेकिन सपा सरकार ने बाद में इनमें से कई संस्थानों के नाम बदल दिए, जिसे मायावती ने ‘दलित विरोधी मानसिकता’ करार दिया।

उन्होंने कहा—
“कांशीराम जी ने दलितों और पिछड़ों को सशक्त बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित किया। लेकिन सपा सरकार ने उनके नाम से जुड़े संस्थानों को मिटाने का काम किया। यह उनके असली चरित्र को उजागर करता है।”

‘कांशीराम जी को याद करना दिखावा है’ – मायावती का कांग्रेस और सपा पर वार

बसपा प्रमुख ने सपा और कांग्रेस दोनों पर ‘राजनीतिक ढोंग’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जब कांशीराम जी का निधन हुआ था, तब सपा सरकार ने राजकीय शोक तक घोषित नहीं किया था और कांग्रेस की केंद्र सरकार ने भी राष्ट्रीय शोक की घोषणा नहीं की।

उन्होंने कहा—
“आज वही पार्टियां दिखावे के लिए कांशीराम जी को याद कर रही हैं। यह न केवल उनके प्रति अनादर है बल्कि समाज के उन वर्गों के साथ भी छल है जो कांशीराम जी को अपना मसीहा मानते हैं।”

2027 चुनावों से पहले दलित राजनीति में नया समीकरण

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह विवाद केवल परिनिर्वाण दिवस तक सीमित नहीं रहेगा। मायावती और अखिलेश दोनों ही दलित और पिछड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश में हैं।
सपा का पीडीए फॉर्मूला और बसपा का ‘बहुजन एकता’ अभियान आने वाले महीनों में उत्तर प्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदु बनने वाला है।

बसपा की 9 अक्टूबर की रैली जहां संगठन की ताकत दिखाने का मंच होगी, वहीं सपा की संगोष्ठी को भी एक राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है कि पार्टी अब दलित वर्ग तक अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।

 

Comments are closed, but trackbacks and pingbacks are open.