*डॉ ब्रह्मदेव राम तिवारी
लक्ष्मण रेखा आप सभी के संज्ञान में होगी परन्तु इसका मूल नाम शायद पता नहीं होगा। लक्ष्मण रेखा का मूल नाम सोमतिती विद्या है।
यह भारत की प्राचीन विद्याओं में से एक है जिसका अन्तिम प्रयोग महाभारत के युद्ध में हुआ था।
चलिए जानते हैं अपनी प्राचीन भारतीय विद्या को
👉 सोमतिती विद्या/लक्ष्मण रेखा….
महर्षि श्रृंगी कहते हैं कि एक वेदमन्त्र है –
सोमंब्रही वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव।
ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति।।
यह वेदमंत्र कोड है उस सोमना कृतिक यंत्र का जो पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है।
वह यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है। कोड को उल्टा कर देने पर विशेष प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है।
जब महर्षि भारद्वाज ऋषिमुनियों के साथ भ्रमण करते हुए वशिष्ठ जी के आश्रम पहुँचे तो उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से पूछा–राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा कहाँ तक पहुँची है ?
महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि यह जो ब्रह्मचारी राम है – इसने आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र और ब्रह्मास्त्र का संधान करना सीख लिया है।
यह धनुर्वेद में पारंगत हुआ है महर्षि विश्वामित्र के द्वारा।
यह जो ब्रह्मचारी लक्ष्मण है- यह एक दुर्लभ सोमतिती विद्या सीख रहा है। उस समय पृथ्वी पर चार गुरुकुलों में वह विद्या सिखाई जाती थी –
(1) महर्षि विश्वामित्र के गुरुकुल में।
(2) महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल में।
(3) महर्षि भारद्वाज के आश्रम में।
(4) उदालक गोत्र के आचार्य शिकामकेतु के गुरुकुल में।
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि लक्ष्मण उस विद्या में पारंगत था। एक अन्य ब्रह्मचारी वर्णित भी उस विद्या का अच्छा जानकार था।
सोमंब्रहि वृत्तं रत: स्वाहा वेतु सम्भव।
ब्रहे वाचम प्रवाणम अग्नं ब्रहे रेत: अवस्ति।।
इस मंत्र को सिद्ध करने से उस सोमना कृतिक यंत्र में जिसने अग्नि के वायु के जल के परमाणु सोख लिए हैं। उन परमाणुओं में फोरमैन आकाशीय विद्युत मिलाकर उसका पात बनाया जाता है।
फिर उस यंत्र को एक्टिवेट करें और उसकी मदद से एक लेज़र बीम जैसी किरणों से उस रेखा को पृथ्वी पर गोलाकार खींच दें।
उसके अंदर जो भी रहेगा वह सुरक्षित रहेगा। लेकिन बाहर से अंदर अगर कोई बलात प्रवेश करना चाहे तो उसे अग्नि और विद्युत का ऐसा झटका लगेगा कि वहीं राख बनकर उड़ जाएगा।
ब्रह्मचारी लक्ष्मण इस विद्या के इतने निपुण हो गए थे कि कालांतर में यह विद्या सोमतिती न कहकर लक्ष्मण रेखा कहलायी जाने लगी।
महर्षि दधीचि, महर्षि शांडिल्य भी इस विद्या को जानते थे।
श्रृंगी ऋषि कहते हैं कि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस विद्या को जानने वाले अन्तिम थे।
उन्होंने कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में मैदान के चारों ओर यह रेखा खींच दी थी ताकि युद्ध में जितने भी भयंकर अस्त्र- शस्त्र चलें उनकी अग्नि, उनका ताप युद्धक्षेत्र से बाहर जाकर दूसरे प्राणियों को संतप्त न करे।
आक्रान्ताओं द्वारा असंख्य ग्रन्थों के जलाए जाने पर और अंग्रेज़ों द्वारा महत्वपूर्ण ग्रन्थों को लूटकर ले जाने के कारण कितनी ही अद्भुत विधाएं जो हमारे यशस्वी पूर्वजों ने खोजी थी विलुप्त हो गई।
*डॉ ब्रह्मदेव राम तिवारी
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