सुनील अग्रवाल
भागलपुर, (बिहार)9जून। पश्चिम बंगाल के हालात किसी से छिपा नहीं है। भाजपा समर्थित हिन्दू परिवारों पर तृणमूल कांग्रेस के लाइसेंसी गुण्डों द्बारा कत्लेआम व मां-बहनों को खुलेआम हवश का शिकार बनाया जा रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तमाशबीन बनी हुई है। बंगाल पुलिस पहले ही अपनी जमीर तृणमूल कांग्रेस के हाथों गिरवी रख चुकी है। राज्य के पहले नागरिक महामहिम राज्यपाल जगदीप धनखड़ लगातार प्रभावित इलाकों का दौरा कर पीड़ित परिवारों से रूबरू होकर स्थिति का जायजा लेने में लगे हुए हैं, लेकिन उन्हें भी टीएमसी के इन लाइसेंसी गुण्डों के कोपभाजन का शिकार होना पड़ रहा है। दुखद तो यह है कि जिस राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा पोषित गुण्डें महामहिम तक को आंख दिखाने से बाज नहीं आते,उस राज्य की सरकार से शांति की बहाली की बात करना बेमानी नहीं तो और क्या है।
बहरहाल इतना तो तय है कि ममता के मुस्लिम तुष्टिकरण के सामने भाजपा का राष्ट्रवादी चिंतन बौना साबित हुआ है। ममता चुनाव पूर्व से हुंकार भरती रही है कि बंगाल में “खेला होवे” और वह हो गया। भले ही भाजपा तीन सीट से 77 पर पहुंच कर खुद का पीठ ठपठपा ले, किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ममता की राजनीतिक दांव पेंच के समक्ष भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह की राष्ट्रवादी नीति पूरी तरह धराशाई होकर रह गई और ‘अबकी बार दो सौ पार’ की ऐसी हवा निकल गई कि अब इन नेताओं ने मानों बंगाल से तौबा हीं कर लिया हो। भले पार्टी के समर्थित कार्यकर्ताओं को इसके लिए खून की कीमत क्यों न चुकानी पड़ रही हो। आज पार्टी के हजारों पीड़ित परिवार अपना सब कुछ गंवाकर खानाबदोश की जिंदगी जीने को विवश हो रहे हैं,जिसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं। जिन लोगों ने अपने खून पसीने से बंगाल की भूमि को सींचा,वे खुद के गांवों से बेघर वार होकर पड़ोसी प्रान्त असम के जंगलों में धूल फांकने को विवश हो रहे हैं, जबकि रोहिंग्या व बंगलादेशी घुसपैठिए बंगाल में शानो-शौकत से 56 इंच का सीना लिए डंके की चोट पर डटे हुए हैं। जबकि वहां के हिन्दू परिवार खुद का घर वार होने के बावजूद दर – दर की ठोकरें खाने को विवश हैं।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने कहें वाक्यों को शत् प्रतिशत चरितार्थ किया कि चुनाव बाद गिन – गिनकर एक – एक से हिसाब चुकता किया जायेगा और आज वही नजारा बंगाल में देखने को मिल रहा है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि ईद पर्व की समाप्ति होते हीं कोरोना का हवाला देते हुए लाॅकडाउन की घोषणा कर दी गई। इससे साफ जाहिर होता है कि ममता बनर्जी अपने मतदाताओं को खुश रखने के लिए कुछ भी कर सकती हैं। भले हीं आमजनों को लानत भरी जिंदगी क्यों न झेलनी पड़े।
दुखद तो यह है कि इतना कुछ होने के बावजूद मोदी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी क्यों है। क्या और किसी भयावह मंजर के आने का इंतजार किया जा रहा है। अगर सचमुच ऐसा है तो इस देश का भगवान भी भला नहीं कर सकता। बंगाल में सुनियोजित तरीके से एक और कश्मीर बनाने की मुकम्मल तैयारी पूरी कर ली गई है,भले ही मोदी जी अपने 56 इंच सीने की दुहाई देते विदेशी भ्रमण करते रहें। यह समय सोचने, समझने का नहीं बल्कि त्वरित कार्रवाई करने का है। वास्तव में मोदी समर्थित भाजपा राष्ट्रहित के लिए समर्पित है तो उसे कड़े फैसले लेने हीं होंगे,वरना बंगाल को हाथ से निकला समझना चाहिए। मामला महज एक बंगाल का नहीं है बल्कि ऐसे कई गिद्ध इस प्रयास में लगे हुए हैं कि भारत को कैसे छिन्न-भिन्न किया जाए। केरल में भी तुष्टिकरण की नीति भारत को मुंह चिढ़ाती रही है। हाल ही में कांग्रेस शासित राज्य पंजाब में मुस्लिम बहुल जगह को वहां के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ईद मुबारकवाद के रूप में जिला का दर्जा प्रदान कर दिया, ताकि बंगाल की हीं भांति आगामी चुनाव में उनकी जीत सुनिश्चित की जा सके। और तो और बंगाल चुनाव के पूर्व तक ममता के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर को बजाप्ता अमरिंदर सिंह ने मोटी कीमत अदा कर अपना रणनीतिकार सफलता पूर्वक बना लिया है।
दुखद तो यह है कि खुद को देश की सबसे पुरानी व 70 सालों से भारत पर हुकूमत करने वाली पार्टी कांग्रेस बंगाल में सबसे बड़ी दूसरी पार्टी होने के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत पाई, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के हार पर वह जश्न मनाने में अपनी शान जरूर समझ रही है। खैर भाजपा ने असम में भले हीं पहले के मुकाबले ज्यादा दम-खम के साथ सत्ता काबिज कर ली है,जो गर्व की बात है। शर्मसार करने वाली बात तो यह भी है कि कांग्रेस को पाण्डुचेरी से भी हाथ धोना पड़ा, बावजूद वह खुश है। कारण साफ है कि उसके लिए राज्यों का चुनाव उतना महत्व नहीं रखता बल्कि उसकी गिद्ध दृष्टि केन्द्र पर काबिज होने का है, ताकि राज्यों को अपने इशारों पर नचाया जा सके। इसके पीछे एक सुनियोजित साजिश रची जा रही है। वक्त विवादों का नहीं बल्कि कांग्रेस समेत तमाम उनके पिछलग्गू विपक्षी पार्टियों के षड़यंत्रों को समझने का है। अगर देश भक्तों की टोली अब भी एकजूट नहीं होती है तो आने वाली पीढ़ी उन्हें कभी माफ नहीं कर पाएंगी। इशारों को अगर समझो तो राज को राज हीं रहने दो।
Prev Post
Comments are closed.