समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 7 अगस्त: विदेश नीति के नए मोड़ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महीने के अंत में जापान और चीन की संभावित यात्रा पर हैं। समाचार सूत्रों के अनुसार, वे लगभग 29 अगस्त को जापान की यात्रा कर सकते हैं, जिसके बाद 31 अगस्त से 1 सितंबर तक तियानजिन (चीन) में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भाग लेने की योजना है। यह यात्रा 2020 में गलवान घाटी झड़प के बाद भारत–चीन संबंधों में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण पहल हो सकती है। हालांकि, इस यात्रा की आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं हुई है।
नया मौका: जापान और चीन इंटरप्ले
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा एक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संवाद को संयोजक बनाने की दिशा में एक खास मील का पत्थर साबित हो सकती है। जापान में उनके संभावित दौरे का फोकस आर्थिक साझेदारी, निवेश आकर्षण और सुरक्षा साझेदारी पर होगा। इसके बाद SCO शिखर सम्मेलन में चीन समेत केंद्रीय एशियाई देशों के साथ गहरी बातचीत और सामूहिक रणनीतिक विमर्श का मार्ग खुलेगा।
गलवान से SCO तक: संबंध सुधार की राह
भारत–चीन संबंध 2020 में गलवान घाटी में हुई लड़ाई के बाद तनावपूर्ण हो गए थे। हाल के वर्षों में सीमावर्ती तनावों को हल करने के कई प्रयास किए गए, जिसमें दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की वार्ता शामिल थी। अब SCO के मंच पर मोदी और शी जिनपिंग की आमद से यह संकेत मिलेगा कि मौक़ा बातचीत और विश्वास बहाली का विकल्प बना हुआ है।
SCO शिखर सम्मेलन: स्थिरता और साझेदारी का मंच
नए SCO शिखर सम्मेलन में मुख्य विषयों में क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, आर्थिक इंटीग्रेशन, जलवायु लचीलापन और साझा प्रौद्योगिकी विकास शामिल होंगे। भारत की भागीदारी यह दिखाएगी कि वह सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार है और अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ संवाद को बढ़ावा दे रहा है।
2018 में यह पहला शिखर सम्मेलन था, जब मोदी चीन आए थे। अब दोबारा वह SCO में शामिल होकर यह संदेश देंगे कि भारत संभालता भी है और संवाद में विश्वास भी करता है।
दौरे का संभावित प्रभाव
- नया दौर: गलवान संकट के बाद पीएम मोदी द्वारा चीन की यात्रा एक बड़ा कूटनीतिक कदम है।
- चौकस संवाद: क्षेत्रीय रणनीति, निवेश, रक्षा व साइबर सुरक्षा पर सार्थक बातचीत की संभावना।
- आत्मनिर्भरता की पुष्टि: भारत की नीति यह दिखाती है कि वह स्वाभिमानी बहुपक्षवाद के सिद्धांत पर आधारित है।
- आर्थिक विजन: जापान यात्रा निवेश और तकनीकी साझेदारी को मजबूत करने में मदद कर सकती है।
मोदी की संभावित जापान और SCO सम्मेलन यात्रा भारत की जमीनी कूटनीतिक कौशल को परखने का बड़ा अवसर है। यह सिर्फ दौरा नहीं, बल्कि विश्वस्तरीय दृढ़ता और रणनीतिक संवाद का प्रतीक हो सकता है। बातचीत की प्लेटफॉर्म पर आकर भारत स्पष्ट संदेश देता है: चाहे सीमाओं पर तनाव हो, लेकिन संवाद का द्वार बंद नहीं होता।
इस यात्रा की पुष्टि होने से भारत-चीन संबंधों में सुधार की दिशा मजबूत होगी और जापानी सहयोग से भारत की आर्थिक प्रवृत्ति वैश्विक मानचित्र पर और उज्जवल दिखेगी।
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