छह महीने की हुई ” मोहन सरकार” , “योगी राज” का इंतजार बरकरार
जनता से जुड़े मुद्दों पर मुखरता में कमी, अब फिर से एक्शन में सरकार
नितिनमोहन शर्मा
प्रदेश में ” मोहन राज ” कायम हुए आज 180 दिन पूर्ण हुए। यानी डॉ मोहन सरकार छह मासी हो गई। अभी वर्षगांठ में इतना ही वक्त शेष है लेकिन इस अल्प समय मे ही “मोहन राज” से उम्मीदें हजार बंध गई हैं। ये उम्मीदें समाज के हर वर्ग को सरकार से हैं। इसमें युवा, महिला, किसान, मजदूर, कर्मचारियों के साथ साथ व्यापारी वर्ग भी है। आमजन को भी सरकार से गुड गवर्नेंस की उम्मीदें हैं। सबसे ज़्यादा आस से सरकार के मुखिया यानी मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से हैं। जमीनी संघर्ष के बाद सीएम बने यादव में आमजन अपनी छवि देखता हैं। जनमानस को ये अच्छे से पता है कि प्रदेश के मुखिया को अलग से कुछ बताने या समझाने की जरूरत नही। वह हम सबके बीच से वहां तक गए हैं। बस इसी एकमात्र उम्मीद ने मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी को बड़ा दिया है। प्रदेश की जनता उनसे वो ही उम्मीद कर रही है जो बगल के राज्य उत्तरप्रदेश में वहां के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कर दिखाया हैं।
उत्तरप्रदेश के चुनावी नतीजे कुछ भी रहे हो लेकिन ये सत्य तथ्य है कि वहां की जनता में सीएम का काम और व्यवहार बोलता है। हर घटना में त्वरित एक्शन लेने की योगी की कार्यशैली ने उन्हें समूचे प्रदेश में लोकप्रिय बना रखा है। आमजन उनसे सीधा जुड़ाव महसूस करता हैं। “यूपी में का बा? यूपी में बाबा” जैसे नारो का चलन यू ही नही आया। इसके लिए योगी बाबा ने सबसे पहले प्रदेश के ” ला एंड ऑर्डर” को दुरुस्त किया। गुंडागर्दी पर नकेल कसी गई और प्रदेश की राते बेफिक्र की गई। ये सब उम्मीदें मध्यप्रदेश के मुखिया से भी प्रदेश वासियों की है।
मोहन सरकार ने अपनी पारी का आगाज़ योगी राज जैसा ही किया था। हर तरह के ध्वनि विस्तारक यंत्र पर रोक का फैसला जनसामान्य में बेहद पसंद किया गया। बाद में इसे ब्यूरोक्रेसी के भरोसे छोड़ दिया गया। जिसका नतीजा ये निकला कि स्वयम सीएम को इस मामले में फिर से आदेश जारी कर कार्रवाई के लिए कहना पड़ा। हाल ही में इस मामले में पुलिस की फिर से शुरू हुई सक्रियता इस बात का सबूत है कि महकमे ने सीएम की मंशा के अनुरूप जमीन पर काम नही किया। खुले में मांसाहार नही बिकने का फैसला भी ऐसे ही ठंडे बस्ते से फिर बाहर निकाला गया। क्योंकि इस मामले में भी स्थानीय निकायों ने सीएम की इच्छा के अनुरूप मैदान पर काम नही किया। ये दो फैसले बताते है कि प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी का ढर्रा जस का तस है। सीएम यादव ने बेशक इस पर लगाम कसी लेकिन सरकार की मोहताजी अभी अफसरों पर बरकरार नजर आ रही है।
देश के आम चुनाव में सरकार के मुखिया डॉ मोहन यादव का रुतबा बड़ा दिया है। सभी 29 सीट की विजय ने उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और संगठन की नज़र में ऊंचा उठा दिया है। मध्यप्रदेश से भी कांग्रेस राजस्थान जैसी बहुत उम्मीद से थी। पार्टी 2 से 5 सीट पर जीत मानकर चल रही थी लेकिन डॉ मोहन यादव की सक्रियता व संगठन के परिश्रम ने वो कर दिखाया, जिसकी कल्पना ” दिल्ली” ने भी नही की थी। मध्यप्रदेश में भाजपा 40 साल बाद न केवल सभी 29 सीटें जीतने में कामयाब हुई बल्कि कमलनाथ जैसे दिग्गज नेता के गढ़ छिंदवाड़ा को भी भेद दिया। इसके पहले अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने 1984 में सभी सीट जीती थी। हारने वालो में दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेताओं से लेकर आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया भी रहे। इस जीत का सेहरा निसन्देह मुख्यमंत्री डॉ यादव के माथे ही बंधा। इस जीत ने उन्हें राहत भी दे दी है। अन्यथा उनकी ताजपोशी पर सवाल खड़े होने लगते।
गुंडों-माफियाओं पर लगाम का इंतजार
180 दिन की मोहन सरकार से प्रदेश की जनता को सबसे ज्यादा उम्मीदें प्रदेश में पनप रहे गुंडे बदमाशो व माफियाओं पर अंकुश की हैं। नई सरकार ने इस मामले में जो शुरुआत की थी, वो थम सी गई है। नतीज़े में इंदौर जैसे शहर में आये दिन अपराध बढ़ रहे है। संगठित अपराध गिरोह का रुतबा बरकरार है। माफियाओं को राजनीतिक सरंक्षण भी जस का तस बना हुआ हैं। इंदौर- भोपाल इसका उत्कृष्ट उदाहरण बने हुए है। मोहन राज से आम आदमी को योगिराज की आस इसलिए ही है कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव भी गुंडागर्दी खत्म कर संगठित अपराध करने वाले गिरोह को जमीदोज करें। सरकार से ये आस भी है कि वे ये भी चिन्हित करें कि गुंडों को राजनीति प्रश्रय कहा से मिल रहा है। अभी इस मामले में नई सरकार पर उंगलियां उठ रही है कि मोहन राज आते ही प्रदेश में अपराधों में तेजी आ गई हैं। ये हकीकत भी है और इंदौर इसका उदाहरण हैं। यहां पुलिस कमिश्नरी लागू है लेकिन अपराध बेकाबू हैं।
कब बन्द होगी गंदी व नंगी राते? कब जारी होगा आदेश?
इंदौर को तो मोहन सरकार से उस आदेश का बेसब्री से इंतजार है जिसके जारी करने के दावे, वादे चुनाव के पहले बहुत हुए और फिर भुला दिया गया। ये है इंदौर जैसे सांस्कृतिक शहर पर जबरिया थोपा गया नाईट कल्चर। विधानसभा चुनावों के पहले इस कल्चर को हटा देने के भरोसे इस शहर को दिये गए। इसके गुणदोष भी बताए गए। अब जबकि सरकार को आये 180 दिन हो गए तो फिर इस नंगाई और गुंडाई को बढ़ावा देने वाले फैसले पर कोई रोक अब तक क्यो नही? जबकि समूचा शहर इसके विरोध में। फिर भी इंदौर की संस्कृति को दूषित करने वाली ये रातें क्यो जिंदा हैं? इस कल्चर से देखते ही देखते ये शहर ड्रग नशाखोरी का अड्डा बनता जा रहा है। सरकार को अपने छह मासी उत्सव में इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि उसका वादा था सरकार बनते ही ये गंदी ओर नंगी रातें बन्द कर दी जाएगी। सीएम से इस मामले में सीधे हस्तक्षेप की उम्मीदें इंदौर को अब है।
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