कश्मीर में 100 से ज्यादा सक्रिय पर्माफ्रॉस्ट को पिघलने का खतरा, पारा चढ़ा तो केदारनाथ-चमोली-सिक्किम जैसी आपदा
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,10 जनवरी। कश्मीर में पड़ रही गर्मी की वजह से वहां के 100 से ज्यादा सक्रिय पर्माफ्रॉस्ट को पिघलने का खतरा है. इन्हें रॉक ग्लेशियर भी कहते हैं. जिनके अंदर भारी मात्रा में पानी जमा होता है. अगर तापमान ज्यादा बढ़ा तो ये पिघल कर घाटी में भारी तबाही मचा सकते हैं. सबसे ज्यादा असर झेलम नदी के बेसिन में होगा.
हाल ही में हुई एक स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है. यह स्टडी केरल के अमृता विश्व विद्यापीठम के अमृता स्कूल फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर्स के शोधकर्ताओं ने की है. स्टडी करने वाली टीम का नेतृत्व रेम्या एस. एन ने किया है. जो यहां असिस्टेंट प्रोफेसर भी हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक रेम्या की स्टडी में पता चला कि 100 से ज्यादा रॉक ग्लेशियर पर रिज बन गए हैं. उनके हिस्से फूले हुए हैं. ये बताता है कि पर्माफ्रॉस्ट अब पिघलने लगा है. अपनी जगह से हिलने लगा है. अगर यह इलाका और गर्म होता है तो झेलम बेसिन में भारी तबाही आ सकती है.
सबसे बड़ा खतरा होगा केदारनाथ-सिक्किम जैसी आपदा
रेम्या ने बताया कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. अब वह रॉक ग्लेशियर में बदलते जा रहे हैं. इससे चिरसार लेक और ब्रमसार लेक के पास का इलाका ज्यादा रिस्की हो गया है. यहां पर केदारनाथ, चमोली या सिक्किम जैसे ग्लेशियल लेकर आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) जैसे हादसे हो सकते हैं. चिरसार लेक रॉक ग्लेशियर के कोने पर बना है.
ये दोनों लेक एक ग्लेशियर से पानी पाते हैं. अगर इनके आसपास के पर्मफ्रॉस्ट पिघला तो निचले इलाके में तेजी से जलजला आएगा. ऊपर से भारी मात्रा में पानी पहते हुए घाटी की तरफ जाएगा, जहां निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को बड़ी आपदा का सामना करना होगा. यहां पर 12 डिग्री के स्लोप से लेकर 25 से 65 डिग्री तक के स्लोप हैं. यानी आपदा की तीव्रता बहुत भयानक होगी.
रॉक ग्लेशियर के अंदर जमा होता है बहुत सारा पानी
पर्माफ्रॉस्ट असल में जमीन की वो परतें होती हैं, जो कम से कम दो साल से जमी हुई हों. आमतौर पर इनकी खबरें ग्रीनलैंड, अलास्का और साइबेरिया से आती हैं. वहां ये ज्यादा पाए जाते हैं. लेकिन हिमालय के रॉक ग्लेशियर्स के बारे में जानकारी कम पता है. दुनिया के कुछ पहाड़ी इलाकों में जलवायु परिवर्तन के हिसाब से रॉक ग्लेशियर काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. क्योंकि इनके अंदर भारी मात्रा में जमी हुई बर्फ और पानी होता है.
देश-विदेश के बड़े वैज्ञानिक संस्थान भी स्टडी मे शामिल
रेम्या का स्टडी अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन के अर्थ एंड स्पेस साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है. इस स्टडी में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, IIT Bombay, मोनाश रिसर्च एकेडमी, नॉर्थथ्रंबिया यूनिवर्सिटी, ISRO और IISc बेंगलुरू के वैज्ञानिक भी शामिल हैं.
कहां और कैसे बनते हैं रॉक ग्लेशियर?
पहाड़ों पर रॉक ग्लेशियर तब बनते हैं जब पर्माफ्रॉस्ट, पत्थर और बर्फ एकसाथ जम जाते हैं. सामान्य प्रक्रिया के मुताबिक पहले से मौजूद ग्लेशियर से पत्थर और मिट्टी का कचरा आकर मिल जाए. जैसे-जैसे यह ग्लेशियर पिघलेगा ये पथरीली मिट्टी और बर्फ रॉक ग्लेशियर में बदल जाएंगे. पिछले पांच दशकों में धरती पर यह प्रक्रिया बहुत तेजी से हुई है. वजह है ग्लोबल वॉर्मिंग.
कैसे दिखते हैं रॉक ग्लेशियर?
देखने में ये किसी घास के मैदान या सामान्य मैदान की तरह ही दिखाई देते हैं. कई बार इनके ऊपर लोग घर वगैरह भी बना लेते हैं. या इनके ऊपर छोटे-मोटे जंगल भी पनप जाते हैं. लेकिन जब इनका जियोमॉर्फोलॉजिकल व्यू देखा जाता है तब पता चलता है कि ये रॉक ग्लेशियर है.
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