श्री पी.एन. पणिक्कर ने एक बहुत सरल और बड़े शक्तिशाली संदेश “वायचु वलारुका” का प्रचार कियाः राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24दिसंबर। राष्ट्रपति कोविंद ने 24 दिसंबर को पूजाप्पुरा, तिरुवनंतपुरम में श्री पी.एन. पणिक्कर की प्रतिमा का अनावरण किया। यहां जनसभा को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा कि स्वर्गीय श्री पी.एन. पणिक्कर निरक्षरता की बुराई को दूर करना चाहते थे। उन्होंने एक बहुत सरल और बड़े शक्तिशाली संदेश “वायचु वलारुका” का प्रचार किया, जिसका अर्थ है- “पढ़ो और बढ़ो।” उन्होंने कहा कि श्री पणिक्कर ने पुस्तकालयों और साक्षरता को एक जन आंदोलन बनाया। वास्तव में उन्होंने इसे एक लोकप्रिय सांस्कृतिक आंदोलन बना दिया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि केरल की एक अनूठी विशेषता यह है कि राज्य के हर गांव में, यहां तक ​​कि दूर-दराज के गांवों में भी पुस्तकालय हैं और लोग अपने गांव में किसी मंदिर, मस्जिद, चर्च या स्कूल से जुड़कर जिस प्रकार का विशेष जुड़ाव अनुभव करते हैं वैसा ही भावनात्मक जुड़ाव यहां के लोग किसी पुस्तकालय के साथ जुड़कर महसूस करते हैं। श्री पणिक्कर के आंदोलन द्वारा स्थापित किए गए पुस्तकालय बाद में सभी सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के तंत्रिका केंद्र बन गए, जिनका केरल के साक्षरता अभियान में प्रभावशाली उदाहरण है। उन्होंने कहा कि केरल की संस्कृति में पुस्तकालयों का केंद्रीय स्थान होने का श्रेय श्री पी.एन. पणिक्कर को जाता है, जिन्होंने आम लोगों को पुस्तकालयों से जोड़ा है। उन्होंने कहा कि श्री पणिक्कर ने अब 50 छोटे पुस्तकालयों के साथ वर्ष 1945 में जो ‘ग्रंथशाला संगम’ शुरू किया था वह अब हजारों पुस्तकालयों के एक बड़े नेटवर्क में विकसित हो गया है। उन्होंने कहा कि पुस्तकालयों के इस विशाल नेटवर्क के माध्यम से केरल की आम जनता श्री नारायण गुरु, अय्यंकाली, वी.टी. भट्टाथिरीपाद और अन्य महान गुरुओं के विचारों और आदर्शों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकती हैं। केरल के एक औसत व्यक्ति के महानगरीय दृष्टिकोण का पता श्री पणिक्कर के पुस्तकालय और साक्षरता आंदोलन से लगाया जा सकता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि केरल भारत के सांस्कृतिक और श्रेष्ठ सद्भाव का सर्वोत्तम रूप में प्रदर्शन करता है। केरल ने दुनिया के सभी हिस्सों के लोगों को आकर्षित किया और अपनी गौरवमयी विशेषताओं को बनाए रखते हुए विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों को अपनाया है। केरल के लोगों ने शेष भारत और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में सम्मान और सद्भावना अर्जित की है। केरल के प्रवासी भारतीयों के उद्यमी सदस्य न केवल बड़ी मात्रा में जमा राशि घर भेज रहे हैं, बल्कि उन्होंने जिन देशों को अपने कार्यस्थलों के रूप में अपनाया है, वहां भी उन्होंने भारत की प्रतिष्ठा को बहुत ऊंचा रखा है। केरल के सेवा क्षेत्र के पेशेवरों, विशेष रूप से नर्सों और डॉक्टरों को हर जगह बहुत सम्मान दिया जाता है और उन पर विश्वास भी किया जाता है। हाल में जब कोविड-महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया था तो केरल के नर्स और डॉक्टर भारत, मध्य-पूर्व और दुनिया के कई अन्य क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देने वाले कोविड-योद्धाओं में शामिल थे। केरल के लोग भारत का गौरव बढ़ाते हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि ‘साक्षरा केरलम’ आंदोलन श्री पणिक्कर द्वारा रखी गई नींव के कारण ही लोकप्रिय और प्रभावी हुआ है। केरल में उच्च साक्षरता और शिक्षा के स्तर पर इसका कई गुना प्रभाव पड़ा है। केरल सतत विकास के पहलुओं सहित मानव विकास के कई सूचकांकों में अन्य राज्यों से आगे है। उन्होंने कहा कि केरल की सरकारों ने लगातार प्रगति और विकास के एजेंडे पर निरंतर अपना ध्यान केंद्रित किया है। इसलिए राज्य ने उत्कृष्टता के अनेक पैमानों पर अपने नेतृत्व की स्थिति बरकरार रखी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि श्री पणिक्कर की पुण्यतिथि 19 जून को ‘पठन दिवस’ के रूप में मनाना इस महान राष्ट्र निर्माता को श्रद्धांजलि देने का सबसे अच्छा तरीका है। राष्ट्रपति ने समर्पण भाव से श्री पणिक्कर के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए पी.एन. पणिक्कर फाउंडेशन की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह फाउंडेशन समावेशी विकास के कारण को साकार करने के लिए एक उपकरण के रूप में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दे रहा है। उन्हें यह जानकर खुशी हुई है कि फाउंडेशन ने इस सदी की शुरुआत से ही ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल शिक्षा शुरू की है और उनका यह प्रयास हजारों घरेलू डिजिटल पुस्तकालयों को स्थापित करने में सफल रहा है। उन्होंने पी.एन. पणिक्कर नेशनल रीडिंग मिशन जैसी पहलों के माध्यम से वंचितों तक पहुंचने में इस फाउंडेशन के प्रयासों की सराहना की। राष्ट्रपति ने संस्कृत की एक कहावत ‘अमृतं तू विद्या’ (जिसका अर्थ है- शिक्षा या विद्या अमृत के समान है) का उल्लेख करते हुए कहा कि पणिक्कर फाउंडेशन विद्या के इस अमृत को पूरे देश में बांट रहा है।

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